Electoral Bonds Scheme Update: इलेक्टोरल बाॅन्ड पर सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यीय पीठ ने आज 15 फरवरी को फैसला सुना दिया. कोर्ट ने कहा कि बाॅन्ड को इस तरह गोपनीय रखना अंसवैधानिक है. यह सूचना के अधिकार का उल्लंघन है. सभी पार्टियों को 6 मार्च तक इसका हिसाब देना होगा.
फैसला सुनाते हुए सीजेआई ने कहा कि राजनीतिक प्रकिया में पार्टियां अहम हैं. पाॅलिटिकल फंडिंग के जरिए मतदाताओं को वोट डालने के लिए सही च्वाॅइस मिल जाती है. वोटर्स को चुनावी फंडिंग के बारे में जानने का पूरा अधिकार होता है. राजनीतिक पार्टियों को बड़ा चंदा गोपनीय रखना असंवैधानिक है.
2023 में कोर्ट ने सुरक्षित रखा था फैसला
बता दें कि इस मामले में कोर्ट ने 2 नवंबर 2023 को फैसला सुरक्षित रख लिया था. सुनवाई के दौरान इलेक्टोरल बाॅन्ड की जानकारी को लेकर कोई जानकारी नहीं होने पर सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग पर नाराजगी जताई थी. सीजेआई ने कहा कि इलेक्टोरल बाॅन्ड की सरकार को क्या जरूरत है. सरकार और पार्टियां तो सब कुछ जानती है उसे चंदा कौन दे रहा है.
CPM समेत इन्होंने दायर की थी याचिका
इस पर साॅलिसिटर जनरल ने कहा कि किसने कितना पैसा डोनेट किया. यह सरकार नहीं जानना चाहती है. उन्होंने कहा कि सरकार को जानकारी से कोई मतलब नहीं है. लेकिन चंदा देने वाला नहीं चाहता कि इसकी जानकारी किसी अन्य पार्टी को हो. बता दें कि मामले को लेकर 2018 में एसोसिएशन फाॅर डेमोक्रेटिक, सीपीएम और कांग्रेस नेता जया ठाकुर की ओर से याचिका दायर की गई थी.
सरकार विपक्षी पार्टियों के चंदे की जानकारी क्यों लेती है?
मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से साॅलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि इस बाॅन्ड से राजनीतिक चंदे में पारदर्शिता आई है. पहले चंदा गोपनीय था अब इसे लेकर पारदर्शिता रखी जाती है. तुषार मेहता ने कहा कि पहले नकद में चंदा लिया जाता था. अब चंदे की गोपनीयता कायम रखने की कोशिश की गई है.
तुषार मेहता ने कहा कि चंदा देने वाले नहीं चाहते हैं कि उनके दान के बारे में दूसरी पार्टी का पता चले. इससे उनके प्रति दूसरी पार्टी की नाराजगी नहीं बढ़ेगी. उन्होंने कहा कि अगर ऐसी बात है तो सत्ताधारी दल विपक्षियों के चंदे की जानकारी क्यों लेता है?
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