सुप्रीम कोर्ट.
मनी लॉन्ड्रिंग मामले में एक आरोपी को निचली अदालत से मिली जमानत को दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा लंबे समय पर रोक लगाने के आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि जमानत आदेशों पर आम तौर पर रोक नहीं लगाई जानी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि जमानत आदेशों पर सिर्फ असाधारण परिस्थितियों में ही रोक लगाई जा सकती है। यह फैसला जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने दिया है। बता दें कि मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जमानत के आदेश पर रोक दुर्लभ और असाधारण मामलों में ही लगनी चाहिए।
आदेश पर रोक लगाते समय व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का हनन होगा
कोर्ट ने ये भी कहा कि अगर जमानत के आदेश पर रोक लगाते समय व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का हनन होता है तो ये विनाशकारी होगा। बता दें कि दिल्ली हाई कोर्ट ने एक मामले में परविंदर सिंह खुराना की जमानत पर रोक लगा दी थी। यही नहीं ये मामला एक साल से ज्यादा समय तक लंबित रहा। मनी लॉन्ड्रिंग मामले में पिछले साल ट्रायल कोर्ट ने खुराना को जमानत दे दी थी। लेकिन हाई कोर्ट ने इस आदेश पर रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने 7 जून को हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाई और खुराना की जमानत बहाल कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि अदालतों को केवल दुर्लभ और आसाधारण मामलों में ही जमानत के आदेश पर रोक लगानी चाहिए, जैसे कि कोई आतंकवादी मामलों में शामिल ना हो।
कोर्ट ने कहा था स्वतंत्रता को प्रतिबंधित नहीं कर सकते
कोर्ट ने कहा था कि इसके अलावे जहां आदेश की अवहेलना हुई हो या फिर कानून के प्रावधानों को दरकिनार किया गया हो। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि आप इस तरह स्वतंत्रता को प्रतिबंधित नहीं कर सकते। गौरतलब है कि दिल्ली हाई कोर्ट की ओर से उनकी जमानत पर रोक लगाए जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले पर जोर दिया था कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता एक मौलिक अधिकार है।
-भारत एक्सप्रेस