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भारत मंडपम में नई आपराधिक कानूनों पर भव्य प्रदर्शनी, आपराधिक न्याय प्रणाली में डिजिटल बदलाव की झलक

भारत मंडपम, नई दिल्ली में 1 से 6 जुलाई 2025 तक आयोजित विशेष प्रदर्शनी में नए आपराधिक कानूनों की पहली वर्षगांठ पर देश की आपराधिक न्याय प्रणाली में तकनीकी और संस्थागत सुधारों की झलक पेश की गई है.

नई दिल्ली स्थित भारत मंडपम में 1 जुलाई से 6 जुलाई 2025 तक एक विशेष प्रदर्शनी का आयोजन किया गया है, जिसका उद्देश्य देश में 1 जुलाई 2024 से लागू हुए नए आपराधिक कानूनों—भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम—की पहली वर्षगांठ को चिह्नित करना है. यह प्रदर्शनी भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली के पांच स्तंभों—पुलिस, अस्पताल, फॉरेंसिक विभाग, अभियोजन और न्यायालय—के बीच तकनीकी और संस्थागत समन्वय को दर्शाने के लिए आयोजित की गई है.

इंटरेक्टिव अनुभव और लाइव डेमोंस्ट्रेशन

यह प्रदर्शनी एक इंटरेक्टिव अनुभव प्रदान करती है, जहां विज़िटर्स को ऑडियो-विजुअल, एनीमेशन और लाइव अभिनय के ज़रिए यह दिखाया गया है कि एक आपराधिक मामले की रिपोर्ट दर्ज होने से लेकर जांच, सबूत इकट्ठा करने, ट्रायल और अपील तक की पूरी प्रक्रिया किस तरह डिजिटल और वैज्ञानिक तरीके से संचालित हो रही है. प्रदर्शनी को नौ थीम आधारित स्टेशनों में विभाजित किया गया है, जो न्यायिक प्रक्रिया की हर महत्वपूर्ण कड़ी को दर्शाते हैं और बताते हैं कि कैसे नए कानूनों और तकनीकी उपकरणों ने इसे अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाया है.

प्रदर्शनी में कुछ प्रमुख सुधारों को विशेष रूप से दर्शाया गया है, जैसे कि सात साल से अधिक की सजा वाले मामलों में फॉरेंसिक विशेषज्ञों की अपराध स्थल पर उपस्थिति अब अनिवार्य कर दी गई है. ई-साक्ष्य प्लेटफॉर्म के ज़रिए डिजिटल तरीके से सबूतों का संग्रह और सुरक्षित भंडारण सुनिश्चित किया जा रहा है, जिससे कोर्ट में उनकी विश्वसनीयता बनी रहती है. ई-फॉरेंसिक 2.0 के तहत CCTNS नेटवर्क से सीधे फॉरेंसिक लैब्स तक इलेक्ट्रॉनिक सैंपल भेजे जा रहे हैं, जिससे समय की बचत हो रही है.

बायोमेट्रिक पहचान और ट्रायल इन एब्सेंशिया

हॉस्पिटल से मेडिकल रिपोर्ट और पोस्टमार्टम रिपोर्ट अब MedLEaPR ऐप के ज़रिए सीधे जांच एजेंसियों को भेजी जा रही हैं. पुलिस को अब आरोपी की गिरफ्तारी के 60 दिनों के भीतर कभी भी पुलिस रिमांड की मांग करने का अधिकार है, जो पहले सीमित समय तक ही था. डिजिटल चार्जशीट को अब बिना साइज लिमिट के अभियोजन पक्ष से साझा किया जा सकता है. गवाह अब वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए बयान दर्ज करा सकते हैं, जिससे सुरक्षा और समय दोनों की बचत होती है.

इसके अलावा, NAFIS (फिंगरप्रिंट आइडेंटिफिकेशन) और चित्रखोजी (फेशियल रिकग्निशन) जैसे बायोमेट्रिक टूल्स का उपयोग दोहराए गए अपराधियों की पहचान में किया जा रहा है. ट्रायल इन एब्सेंशिया का प्रावधान भी शामिल किया गया है, ताकि फरार आरोपियों की वजह से मामलों में देरी न हो. साथ ही, जिन विचाराधीन कैदियों ने अपने संभावित सजा का एक-तिहाई समय काट लिया है, उनकी ओर से अब जेल अधीक्षक खुद बेल अर्जी दायर कर सकते हैं.

यह प्रदर्शनी देश में आपराधिक न्याय प्रणाली में हो रहे बदलावों की जीवंत झलक देती है और यह दिखाती है कि कैसे नए कानूनों और तकनीकी नवाचारों के ज़रिए न केवल अपराधियों पर कार्रवाई तेज़ हुई है, बल्कि पीड़ितों को भी त्वरित और प्रभावी न्याय मिल रहा है. यह प्रदर्शनी आम जनता, कानून प्रवर्तन एजेंसियों, विधिक सेवा से जुड़े लोगों, शिक्षाविदों और सिविल सोसायटी के लिए खुली है और इसमें सभी को भाग लेने का आमंत्रण दिया गया है.

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-भारत एक्सप्रेस 



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