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चुनावी बॉन्ड की संख्या का खुलासा नहीं करने पर सुप्रीम कोर्ट ने SBI को फिर फटकारा, जारी किया नोटिस

कोर्ट ने कहा कि एसबीआई ने 11 मार्च के आदेश का पूरी तरह से पालन नहीं किया है, जिसमें उसने चुनावी बॉन्ड के संबंध में बैंक को सभी विवरणों का खुलासा करने का आदेश दिया था.

सुप्रीम कोर्ट ने आज शुक्रवार को भारतीय स्टेट बैंक (SBI) को चुनावी बॉन्ड की संख्या (अल्फा-न्यूमेरिक नंबरों) के साथ प्रस्तुत नहीं करने पर आपत्ति जताई. यह संख्या बॉन्ड की पहचान करने में मदद करता है. वहीं सुप्रीम कोर्ट ने इसे लेकर बैंक को नोटिस भी जारी किया है. बता दें कि बॉन्ड को लेकर सोमवार से ही बैंक से जवाब मांगा जा रहा है. भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, बीआर गवई, जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि एसबीआई ने 11 मार्च के आदेश का पूरी तरह से पालन नहीं किया है, जिसमें उसने चुनावी बॉन्ड के संबंध में बैंक को सभी विवरणों का खुलासा करने का आदेश दिया था.

चुनाव आयोग ने कोर्ट से कही यह बात

चुनाव आयोग ने पीठ को बताया कि उसने गोपनीयता बनाए रखने के लिए इन दस्तावेजों की कोई भी प्रति अपने पास नहीं रखी है और अपनी वेबसाइट पर डेटा अपलोड करने के अदालत के निर्देश पर आगे बढ़ने के लिए सीलबंद लिफाफे वापस करने की मांग की. इस पर शीर्ष अदालत ने कहा कि उसके रजिस्ट्रार न्यायिक यह सुनिश्चित करेंगे कि दस्तावेजों को स्कैन और डिजिटलीकृत किया जाए और एक बार प्रक्रिया पूरी होने के बाद मूल दस्तावेजों को ईसीआई को वापस दे दिया जाएगा और वह उन्हें 17 मार्च को या उससे पहले वेबसाइट पर अपलोड कर देगा.

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SBI को करना होगा खुलासा

सुनवाई की शुरुआत में शीर्ष अदालत ने कहा, “भारतीय स्टेट बैंक की ओर से कौन पेश हो रहा है? उन्होंने बॉन्ड संख्या का खुलासा नहीं किया है. इसका खुलासा भारतीय स्टेट बैंक को करना होगा.” सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत से बैंक को नोटिस जारी करने का आग्रह किया क्योंकि उन्हें कुछ कहना हो सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फरवरी के फैसले में चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया था, जिसने राजनीतिक दलों को गुमनाम फंडिंग की अनुमति दी थी, और एसबीआई को चुनावी बॉन्ड जारी करना तुरंत बंद करने का आदेश दिया था. इसने सर्वसम्मति से चुनावी बांड योजना के साथ-साथ आयकर अधिनियम और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम में किए गए संशोधनों को रद्द कर दिया था, जिसने दिए जाने वाले दान को गुमनाम बना दिया था.

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