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जमीयत उलमा-ए-हिंद का सांकेतिक विरोध, सेक्युलर नेताओं से नाता तोड़ेगा संगठन

जमीयत उलमा-ए-हिंद ने सेक्युलर नेताओं के आयोजनों में हिस्सा न लेने का फैसला लिया है. मौलाना मदनी का कहना है कि ये नेता मुसलमानों पर हो रहे अत्याचार पर चुप हैं.

Jamiat Ulama-e-Hind
Aarika Singh Edited by Aarika Singh

जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने एक बड़ा बयान देते हुए कहा कि उनकी संस्था अब उन नेताओं के इफ्तार, ईद मिलन और अन्य कार्यक्रमों में भाग नहीं लेगी, जो खुद को सेक्युलर बताते हैं, लेकिन मुसलमानों पर हो रहे अत्याचारों पर चुप रहते हैं. इस फैसले के पीछे की वजह ये है कि ऐसे नेता सत्ता के लिए मुसलमानों पर हो रहे अन्याय और अत्याचारों पर मौन साधे हुए हैं और सरकार के खिलाफ कोई कदम नहीं उठा रहे.

मौलाना अरशद मदनी ने साफ तौर पर कहा कि जिन नेताओं ने कभी मुसलमानों का हमदर्द बनने का दावा किया, वे अब सत्ता के लालच में मुसलमानों के खिलाफ हो रहे अन्याय को नजरअंदाज कर रहे हैं. उनका कहना था कि इस समय देश में मुसलमानों के साथ हो रहे अत्याचारों और हिंसा को लेकर ये नेता पूरी तरह से चुप हैं. इसलिए जमीयत उलमा-ए-हिंद ने इन नेताओं के आयोजनों में शामिल न होने का फैसला लिया है. यह निर्णय संगठन की तरफ से एक सांकेतिक विरोध है, ताकि इन नेताओं की चुप्पी और उनकी नीति को उजागर किया जा सके.

सांप्रदायिक घटनाओं पर चुप्पी

मौलाना मदनी ने कहा कि इस समय देश में मुसलमानों को हाशिये पर धकेलने की साजिशें हो रही हैं. धार्मिक भावनाओं को आहत किया जा रहा है, धार्मिक स्थलों को विवादों में घसीटा जा रहा है, और दंगे कराकर मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है. उन्होंने ये भी कहा कि यह बेहद दुखद है कि जिन नेताओं ने अपनी राजनीति में मुसलमानों का समर्थन लिया, वे अब सत्ता में आने के बाद इन मुद्दों पर खामोश हो गए हैं.

नीतीश कुमार, नायडू और चिराग पासवान पर हमला

मौलाना मदनी ने विशेष रूप से नीतीश कुमार, चंद्रबाबू नायडू और चिराग पासवान जैसे नेताओं पर हमला बोला. उन्होंने कहा कि ये नेता सत्ता पाने के लिए मुसलमानों पर हो रहे अन्याय को नजरअंदाज कर रहे हैं और लोकतांत्रिक मूल्यों की अनदेखी कर रहे हैं. वक्फ संशोधन बिल पर इन नेताओं का रवैया इनकी दोहरी नीति को साफ तौर पर दिखाता है. उनका कहना था कि ये नेता केवल मुसलमानों के वोट पाने के लिए दिखावे का सेक्युलरिज्म अपनाते हैं, लेकिन सत्ता में आने के बाद उनके लिए मुस्लिम समुदाय के मुद्दे गायब हो जाते हैं.

संविधान बचाओ सम्मेलन और अपील

मौलाना मदनी ने कहा कि जमीयत उलमा-ए-हिंद ने देशभर में ‘संविधान बचाओ’ सम्मेलन आयोजित किए थे ताकि इन नेताओं को जगाया जा सके, लेकिन इसका उन पर कोई असर नहीं पड़ा. उन्होंने अन्य मुस्लिम संस्थाओं और संगठनों से अपील की कि वे भी इस सांकेतिक विरोध में शामिल हों और इन नेताओं के आयोजनों में भाग लेने से परहेज करें. उनका कहना था कि जब ये नेता हमारे दर्द और दुख से कोई सरोकार नहीं रखते, तो हमें भी उनसे किसी प्रकार की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए.

जमीयत उलमा-ए-हिंद का यह कदम देश में बढ़ती नफरत और असहिष्णुता के माहौल के खिलाफ एक अहम संदेश है. मौलाना मदनी का कहना है कि जब तक ये नेता अपने रुख में बदलाव नहीं करते, तब तक उनका विरोध जारी रहेगा.

-भारत एक्सप्रेस



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