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“मुझे इस महान देश से प्यार है, यहां रहने दीजिए”, तस्लीमा नसरीन ने गृहमंत्री Amit Shah से लगाई गुहार

तस्लीमा नसरीन 1990 के दशक की शुरुआत में अपने निबंधों और उपन्यासों के कारण खासी चर्चित रहीं. उनके लेखन में उन्होंने ‘उन धर्मों’ की आलोचना की, जिन्हें वे ‘महिला विरोधी’ मानती हैं.

Taslima Nasreen

तस्लीमा नसरीन.

बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन (Taslima Nasreen) भारत में अपने रेजिडेंस परमिट को लेकरपरेशान हैं. उन्होंने सोमवार को इस संबंध में एक ट्वीट करके गृहमंत्री अमित शाह से भी गुहार लगाई. तस्लीमा नसरीन ने एक्स पर लिखा, “प्रिय अमित शाहजी नमस्कार. मैं भारत में रहती हूं क्योंकि मुझे इस महान देश से प्यार है. पिछले 20 सालों से यह मेरा दूसरा घर रहा है, लेकिन गृह मंत्रालय जुलाई 22 से मेरे रेजिडेंस परमिट को आगे नहीं बढ़ा रहा है. मैं बहुत चिंतित हूं. अगर आप मुझे रहने देंगे तो मैं आपकी बहुत आभारी रहूंगी. हार्दिक शुभकामनाएं.”

Taslima Nasreen 2004 में भारत आईं

बता दें तस्लीमा नसरीन 1990 के दशक की शुरुआत में अपने निबंधों और उपन्यासों के कारण खासी चर्चित रहीं. उनके लेखन में उन्होंने ‘उन धर्मों’ की आलोचना की, जिन्हें वे ‘महिला विरोधी’ मानती हैं. नसरीन 1994 से निर्वासन में रह रही हैं. यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका में एक दशक से अधिक समय तक रहने के बाद, वह 2004 में भारत आ गईं.

लज्जा नॉवेल ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा

तस्लीमा नसरीन (Taslima Nasreen) के 1994 में आए ‘लज्जा’ उपन्यास ने पूरी दुनिया के साहित्यिक जगत का ध्यान खींचा था. यह पुस्तक दिसंबर 1992 में भारत में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद बंगाली हिंदुओं के खिलाफ हिंसा, बलात्कार, लूटपाट और हत्याओं के बारे में लिखी गई थी.

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बांग्लादेश में लगा प्रतिबंध

पुस्तक पहली बार 1993 में बंगाली में प्रकाशित हुई और बाद में बांग्लादेश में प्रतिबंधित कर दी गई. फिर भी प्रकाशन के छह महीने बाद इसकी हजारों प्रतियां बिकीं. ऐसा कहा जाता है कि इसके बाद उन्हें मौत की धमकियां मिलने लगी जिसके चलते उन्हें देश छोड़ने को मजबूर होना पड़ा.

-भारत एक्सप्रेस



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