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याचिका वापस लेने की एवज में 50 लाख रुपये की मांग करने वाले याचिकाकर्ता को कोर्ट ने ठहराया दोषी, एक लाख का लगाया जुर्माना

कोर्ट ने कहा कि अवमानना करने वाले व्यक्ति को अदालत की कार्यवाही समाप्त होने तक अदालत में ही बैठे रहने की सजा सुनाई जाती है.

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दिल्ली हाई कोर्ट

दिल्ली हाई कोर्ट ने अदालत का उपयोग निजी स्वार्थ के लिए करने के जुर्म में एक याचिकाकर्ता को अवमानना का दोषी ठहराया है. कोर्ट ने आरोपी को सजा के तौर पर अदालत की कार्यवाही समाप्त होने तक कोर्टरूम में बैठे रहने का निर्देश दिया. साथ ही उसे दिल्ली हाईकोर्ट विधिक सेवा समिति में एक लाख रुपए की राशि जमा करने को कहा.

याचिकाकर्ता प्रदीप अग्रवाल ने अनाधिकृत निर्माण का आरोप लगाते हुए एक याचिका दाखिल की थी, जिसे वापस लेने के लिए वह दूसरे पक्ष से 50 लाख रुपए की मांग की थी. इसके तहत उसे आपराधिक अवमानना का दोषी ठहराया गया है. न्यायमूर्ति प्रतिबा मनिंदर सिंह एवं न्यायमूर्ति अमित शर्मा की पीठ ने कहा कि 62 वर्षीय याचिकाकर्ता ने अपने निजी लाभ के लिए न्यायिक प्रणाली का फायदा उठाने की कोशिश की और इसके लिए अदालत का रूख किया. इसके लिए उसे अवमानना का दोषी ठहराया जाता है और उसकी चिकित्सा स्थिति और उम्र की वजह से उसके सजा पर नरम रूख अपनाया जा रहा है. दोषी ने अपने आचरण के लिए कोर्ट से माफी मांग ली थी.

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कोर्ट ने कहा कि अवमानना का कानून अदालत के अधिकार और गरिमा की रक्षा के लिए कार्य करता है और याचिकाकर्ता को अदालत की अवमानना अधिनियम की धारा 12 के तहत अवमानना का दोषी ठहराता है. उसने कहा, बात यह है कि अवमानना का दोषी याचिका वापस लेने के लिए प्रतिवादियों से बातचीत कर उनसे रुपए ऐंठने के लिए तैयार था. इसलिए अदालत इस कृत्य को अवमाननापूर्ण मानती है. यह अदालत की प्रक्रिया की घोर अवहेलना और दुरुपयोग को दर्शाता है, जिसे अदालत माफ नहीं कर सकती.

कोर्ट में बैठे रहने की सुनाई सजा

कोर्ट ने आदेश दिया कि न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग करने वाले किसी भी व्यक्ति के ऐसे आचरण को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. इसलिए अवमानना करने वाले व्यक्ति को अदालत की कार्यवाही समाप्त होने तक अदालत में ही बैठे रहने की सजा सुनाई जाती है. इसके अलावा दोषी को दिल्ली हाईकोर्ट विधिक सेवा समिति में एक लाख रुपए की राशि जमा करनी होगी. अवमानना के दोषी ने वर्ष 2021 में बुराड़ी में कुछ जमीनों पर अनाधिकृत निर्माण के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए एक याचिका दाखिल की थी. इसके बाद अनधिकृत निर्माण करने वाले पक्षों में से एक कथित पक्ष ने दावा किया कि याचिकाकर्ता ने याचिका वापस लेने के लिए 50 लाख रुपए की मांग की.

-भारत एक्सप्रेस

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