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UP News: इस नोटिस के कारण एक बार फिर से चर्चा में है आगरा की जामा मस्जिद, जानें क्या है पूरा मामला

Agra: श्रीकृष्ण जन्मभूमि संरक्षित सेवा ट्रस्ट द्वारा दायर वाद में प्रतिवादियों को नोटिस जारी किए जाने के बाद इसको लेकर चर्चा जोरों पर है. बीते वर्ष 23 दिसंबर को अधिवक्ता महेंद्र प्रताप सिंह ने वाद दायर किया था.

आगरा जामा मस्जिद (फोटो सोशल मीडिया)

Agra: एक बार फिर से आगरा की जामा मस्जिद चर्चा में है. श्रीकृष्ण जन्मभूमि संरक्षित सेवा ट्रस्ट द्वारा दायर वाद में प्रतिवादियों को नोटिस जारी किए जाने के बाद इसको लेकर चर्चा जोरों पर है. इतिहासकारों की मानें तो शाहजहां की बेटी और औरंगजेब की बड़ी बहन जहांआरा ने इसका निर्माण 375 साल पहले वर्ष 1644-48 के बीच में कराया था. बताया जाता है, उस समय इसके निर्माण पर पांच लाख रुपये खर्च हुए थे. जानकारी सामने आ रही है कि बेगम मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे दबे श्रीकृष्ण जन्मस्थान स्थित ठाकुर केशवदेव मंदिर के श्रीविग्रह को निकलवाने संबंधी वाद मथुरा कोर्ट में लंबित है. इसमें पुरातत्व सर्वेक्षण के निदेशक को प्रतिवादी बनाया है. 23 दिसंबर 2022 को अधिवक्ता महेंद्र प्रताप सिंह ने वाद दायर किया था.

अधिवक्ता ने किया बड़ा खुलासा

वहीं इस मामले में जानकारी सामने आई है कि ईदगाह न्यायालय में श्रीकृष्ण जन्मभूमि संरक्षित सेवा ट्रस्ट ने प्रार्थना की है कि छोटी मस्जिद (जहांआरा बेगम मस्जिद) को वर्तमान में शाही मस्जिद, ईदगाह के नाम से जाना जाता है. उसकी सीढ़ियों के नीचे ही केशव देव का विग्रह दबा हुआ है. जामा मस्जिद आगरा किला के नजदीक और शाही मस्जिद ईदगाह मोहनपुरा में है. जबकि ट्रस्ट की लीगल टीम में शामिल वरिष्ठ अधिवक्ता विनोद शुक्ला ने बताया कि विदेशी लेखक ने अपनी पुस्तक में जहांआरा की मस्जिद को ही शाही मस्जिद ईदगाह लिखा है.

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जानें क्या कहते हैं इतिहासकार

इतिहासकारों की मानें तो वर्ष 1670 में औरंगजेब ने मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर बने प्राचीन ठाकुर केशवदेव मंदिर को तोड़कर उसी जगह पर मस्जिद का निर्माण करवा दिया था. जबकि वह जानता था कि मथुरा हिंदुओं का पवित्र तीर्थ स्थान है. बावजूद इसके उसने ये कृत्य किया और सभी हिंदुओ की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाते हुए औरंगजेब ने इसका नाम बदलकर इस्लामाबाद कर दिया था. वहीं औरंगजेब के दरबारी मुस्ताक खान की फारसी में लिखित पुस्तक मआसिर-ए-आलमगीरी और विदेशी लेखक फ्रेंकोस गौटियर की पुस्तक औरंगजेब आइकोनोलिज्म समेत कई भारतीय इतिहासकारों की पुस्तकों में विग्रह को सीढ़ियों में दबाने का उल्लेख मिलता है.

लाल पत्थरों से हुआ था जामा मस्जिद का निर्माण

जामा मस्जिद के बारे में इतिहासकार बताते हैं कि इसका निर्माण लाल पत्थरों से किया गया था. इसका मुख्य द्वार पूर्वी दिशा में है और उत्तरी व दक्षिण की ओर भी इसमें दरवाजे हैं. बताते हैं कि दक्षिणी दरवाजे का उपयोग भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के कर्मचारी करते हैं. पूर्वी द्वार से ऊपर मस्जिद तक जाने के लिए करीब दर्जन भर सीढ़ियां बनी हुई हैं. तो वहीं मस्जिद में तीन गुंबद हैं. बता दें कि 20वें रमजान को जहांआरा का उर्स मस्जिद में ही मनाया जाता है. इतिहासकार बताते हैं कि जामा मस्जिद और आगरा किला के दिल्ली दरवाजे के मध्य त्रिपोलिया चौक बना हुआ था जो कि अष्टकोणीय.

बदले जा चुके हैं पत्थर

इतिहासकार बताते हैं कि जामा मस्जिद के पूर्वी गेट की सीढ़ियों का एक दशक पहले एएसआई द्वारा संरक्षण कराया गया था तो कुछ सीढ़ियां अंदर से खोखली निकली थीं. इसके बाद तीन से चार सीढ़ियों के पत्थर बदल दिए गए थे. बता दें कि यहां पर दीवार में आड़े पत्थर के ऊपर पत्थर लगाकर सीढ़ियां बनाई गई थीं.

इसे तोड़ दिया गया था ब्रिटिश काल में

इतिहासकार राजकिशोर राजे ने बताया कि आगरा फोर्ट रेलवे स्टेशन बनाते वक्त ब्रिटिश काल में इसको तोड़ दिया गया था. उन्होंने बताया कि, जहांआरा को बेगम साहिबा कहा जाता था. जामा मस्जिद ही बेगम साहिबा द्वारा बनवाई गई मस्जिद है.

 

-भारत एक्सप्रेस

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