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UP News: प्रसिद्ध अधिवक्ता और बीजेपी के रायबरेली से सांसद उम्मीदवार रहे अजय अग्रवाल ने रविवार को एक बड़े ही ऐतिहासिक मगर शोकाकुल सभा में 7 जनवरी 1921 में अंग्रेजों की बर्बरता के कारण शहीद हुए 750 किसानों को श्रद्धांजली दी। इस अवसर पर उन्होंने अंग्रेज सरकार की कड़ी भर्त्सना करते हुए इस घटना को दूसरा जलियांवाला बाग बताया।
साथ ही साथ अजय अग्रवाल ने इस बात के लिए रोष जताया कि कांग्रेस के इतने वर्षों के शासन और नेहरू गांधी परिवार के लगातार ही इस पाक सरजमीं से संसद पहुंचने के बावजूद इसे न तो राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा मिला और न ही इस स्थान को वो तरजीह और सम्मान मिल सका जो मिलना चाहिए था। उन्होंने कहा कि उनकी पूरी कोशिश होगी कि इस ऐतिहासिक भूमि के साथ न्याय हो और इसके लिए जो भी जरूरी कदम उठाने होंगे, वो करेंगे।
अजय अग्रवाल ने कहा कि अंग्रेज शासन के हुक्म से सभा में मौजूद सैकड़ों निहत्थे और बेकसूर किसानों पर पुलिस बलों द्वारा गोलियों की बौछार कर दी गई। इसके बाद सई नदी की धारा किसानों के खून से रक्त रंजित हो उठी थी। 750 से ज्यादा किसान मारे गए थे और 1500 से ज्यादा घायल हुए थे। उन्होंने मुंशीगंज (रायबरेली) में एक बड़ी जनसभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि इतिहास के आइने में तमाम आंदोलन दर्ज हैं, जो आजादी दिलाने में सहायक बने। उनमें से एक रायबरेली जिले में मुंशीगंज किसान आंदोलन है। यहां शहीद किसानों की याद में स्मारक है, जो अंग्रेजों के जुल्म और सितम के काले अध्याय के विरुद्ध भारतीय किसानों के बलिदान की याद दिलाता है।
अजय अग्रवाल ने कहा कि इस माटी में देश के उस किसान आंदोलन की खुशबू है, जिसने अंग्रेजी हुकूमत की जड़े हिला दी थी। भारतीय किसानों के इस आंदोलन को मुंशीगंज गोलीकांड का नाम दिया गया। कई जानकर इसे जलियांवाला बाग कांड से भी बड़े हत्याकांड का दर्जा देते हैं।
उन्होंने कहा कि राष्ट्र के लिए सैकड़ों किसानों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी। भारतीय किसानों के उस अदम्य साहस और शौर्य की अमर गाथा मुंशीगंज गोली कांड के कुछ अनछुए पहलुओं से आजय अग्रवाल ने सबको रूबरू कराया।
रायबरेली जिले में शहर के एक क्षोर पर स्थित मुंशीगंज कस्बा सई नदी के तट पर बसा है। 5 जनवरी 1921 को किसान तत्कालीन कांग्रेस शासकों के अत्याचारों से तंग आकर, अमोल शर्मा और बाबा जानकी दास के नेतृत्व में एक जनसभा कर रहे थे। दूर-दूर के गांव के किसान भी सभा में भाग लेने के लिए आए थे। इस जनसभा को असफल करने के मकसद से तालुकेदार ने तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर एजी शेरिफ से मिलकर दोनों नेताओं को गिरफ्तार करवा कर लखनऊ जेल भिजवा दिया।
दोनों नेताओं की गिरफ्तारी के अगले ही दिन रायबरेली में लोगों के बीच तेजी से यह खबर फैल गई कि लखनऊ के जेल प्रशासन द्वारा दोनों नेताओं की हत्या करवा दी गई है। इसके चलते 7 जनवरी 1921 को रायबरेली के मुंशीगंज में सई नदी के तट पर अपने नेताओं के समर्थन में एक विशाल जनसमूह एकत्रित होने लगा। किसानों के भारी विरोध को देखते हुए नदी किनारे बड़ी मात्रा में पुलिस बल तैनात कर दिया गया था।
अंग्रेजी शासन ने सभा में मौजूद किसानों पर पुलिस बलों द्वारा गोलियों की बौछार करा दी। इसके बाद सई नदी की धारा किसानों के खून से लाल हो गई। 750 से ज्यादा किसान इस नरसंहार में मारे गए थे और 1500 से ज्यादा हताहत हुए थे।
मुंशीगंज गोलीकांड कई मायनों में बेहद खास है। इसकी तुलना अन्य किसी आंदोलन से करना भी उचित नहीं होगा। हालांकि, यह बात सही है कि मुंशीगंज गोलीकांड को स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में वह दर्जा नहीं मिल सका, जिसका यह हकदार रहा। लेकिन जंगे आजादी की दिशा और दशा बदलने में यह जरूर कामयाब रहा।
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