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UP Politics: जयंत के गठजोड़ से भाजपा ने यूपी की 80 सीटों को साधने का लगा लिया गुणा-भाग, सपा-कांग्रेस की बढ़ेगी टेंशन!

यूपी की 18 ऐसी सीटें हैं, जिनमे रालोद की भूमिका काफी अहम मानी जाती है. वहीं वो सात सीटें जिसे अखिलेश रालोद के लिए छोड़ रहे थे, उस पर अब सपा व कांग्रेस को माथापच्ची करनी पड़ेगी.

फोटो-सोशल मीडिया

UP Politics: लोकसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश की राजनीति में बड़ा उलटफेर देखने को मिल रहा है. भारत सरकार द्वारा चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न दिए जाने की घोषणा के बाद से ही उनके पोते व राष्ट्रीय लोकदल के प्रमुख जयंत चौधरी की नजदीकियां भाजपा से बढ़ती जा रही है और सपा अखिलेश यादव से वह अपनी दोस्ती तोड़ते हुए दिखाई दे रहे हैं तो इसी बीच माना जा रहा है कि, अगर भाजपा के साथ आरएलडी का गठजोड़ होता है तो कांग्रेस और सपा के लिए यूपी में बड़ी चुनौती खड़ी हो सकती है. हालांकि वो बात अलग है कि सपा नेता कहते दिख रहे हैं कि जयंत के जाने से कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन भाजपा ने जयंत को लेकर पूरा गुणा-भाग लगा लिया है.

जयंत के पाला बदलने से मुश्किल में

वहीं राजनीतिक जानकार मानते हैं कि, जयंत के पाला बदलने से सपा और कांग्रेस के सामने बड़ी मुसीबत खड़ी हो सकती है, क्योंकि जयंत जाट बहुल सीटों का एक पहचाना चेहरा हैं और अगर जयंत सपा से अलग होते हैं तो सपा और कांग्रेस को जाट बाहुल्य इलाकों के लिए अलग से मशक्कत करनी पड़ेगी. अगर 2022 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो मेरठ, मुरादाबाद और साहरनपुर मंडल में जाट मुस्लिम का गठजोड़ काफी कारगर साबित हुआ था. तो वहीं 2017 में भाजपा को यहां 50 से ज्यादा सीटों पर जीत हासिल हुई थी. तो 2022 के आंकड़े बताते हैं कि भाजपा 40 सीटों पर ही सिमट गई थी, जबकि विपक्ष की सीटें 20 से बढ़कर 31 हो गई थी तो वहीं 2019 के संसदीय चुनाव में आंकड़े बताते हैं कि, सपा, बसपा और आरएलडी के गठबंधन ने मोदी लहर होने के बाद भी सभी छह सीटों पर कब्जा जमा लिया था. बिजनौर, नगीना और अमरोहा सीटें बसपा को मिलीं, जबकि मुरादाबाद, संभल और रामपुर सीटों पर सपा ने जीत हासिल की थी लेकिन आरएलडी ने किसी सीट पर चुनाव नहीं लड़ा था.

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यूपी की 18 सीटों पर रालोद की भूमिका अहम

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो भाजपा इसीलिए रालोद से गठजोड़ को लेकर महत्व दे रही है क्योंकि, यूपी की 18 ऐसी सीटें हैं, जिनमे रालोद की भूमिका काफी अहम मानी जाती है. मसलन कैराना, मुरादाबाद, अलीगढ़, मुज्जफरनगर, मेरठ, साहरनपुर, बिजनौर, संभल, नगीना, इन पर मुस्लिम मतदाताओं की भी अहम भूमिका है. 2014 के बाद से जाट वोट बैंक पर भाजपा की पकड़ मजबूत दिखाई दी है. ऐसे में कहा जा रहा है कि अगर आरएलडी सपा का साथ छोड़ती है तो सपा को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है. इसी के साथ ही माना जा रहा है कि जयंत के साथ आने से भाजपा को जाट वोट का लाभ तो मिलेगा ही साथ ही पश्चिमी यूपी के साथ हरियाणा और राजस्थान की राजनीति साधेगी, क्योंकि चौधरी चरण सिंह के परिवार से बड़ा अभी तक कोई बड़ा जाट नेता नजर नहीं आ रहा है. भारत रत्न से इसकी बानगी भी देखने को मिल रही है. तो वहीं राजनीतिक जानकार ये भी मानते हैं कि अगर सरकार बनती है तो उनके मंत्री बनने का भी रास्ता साफ हो जाएगा. क्योंकि चाहे अनुप्रिया हो या रामदास आठवले, सभी गठबंधन में हैं लेकिन मंत्री भी हैं. वैसे भी भाजपा के पास जाट नेताओं की कमी हैं. इसीलिए भाजपा जयंत को शामिल कर इस कमी को पूरा करना चाहती है.

कांग्रेस-सपा को फिर से करना पड़ेगी माथा पच्ची

राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि, अगर जयंत चौधरी अखिलेश और कांग्रेस का साथ छोड़ते हैं तो कांग्रेस को उन 5-8 सीटों के बारे में माथापच्ची करनी पडेगी, जिसपर रालोद का दबदबा है. ये वो सीटें हैं जहां पर अखिलेश भी खुद को मजबूत नहीं समझते हैं. यही वजह थी कि वह जयंत के लिए सात सीटें छोड़ रहे थे लेकिन बात खटाई में चली गई. तो वहीं अब इन सीटों पर कांग्रेस-सपा को मेहनत करनी पड़ेगी क्योंकि, जाट बाहुल सीटों पर अब जयंत अपने लिए काम करेंगे या भाजपा के लिए.

भाजपा को मिलेगा सीधा फायदा

वहीं अगर जयंत भाजपा के साथ हो जाते हैं तो जाट और मुस्लिम, दोनों का फायदा मिलेगा. चूंकि पश्चिमी क्षेत्र में भाजपा भी मजबूत होती जा रही है तो वहीं जयंत को भी इसका लाभ मिलेगा और जयंत भी मजबूत होंगे. फिलहाल जयंत चौधरी ने अभी आधिकारिक कोई घोषणा भाजपा के साथ गठबंधन को लेकर नहीं की है लेकिन जिस तरह से वह पीएम मोदी की तारीफ करते नजर आ रहे हैं और जो बयान उनके सामने आ रहे हैं उससे साफ हो रहा है कि वह भाजपा के साथ जाने वाले हैं.

-भारत एक्सप्रेस

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