Bihar News: जंगलराज और रामराज की बातें करनी यूं तो सबको अच्छी लगती हैं लेकिन इसकी गंभीरता को वही समझता है जिसने हर दौर को देखा होता है. आजादी से पहले एवं आजादी के बाद 80 के दशक के पहले तक बिहार का इतिहास बेहद ही गौरवशाली रहा लेकिन बदलते वक्त के साथ बिहार में बहार की जगह बारूद ने ले लिया. उस दौर में लोगों ने अपने प्राणों और परिजनों की रक्षा के लिए हथियार तक उठा लिया था.
उसी दौर में एक नाम बहुत तेजी से लोगों को पसंद आ रहा था, वह नाम था कौशलेंद्र कुमार शुक्ला उर्फ छोटन शुक्ला का. छोटन शुक्ला उन दिनों ठेकेदारी के साथ – साथ समाजसेवा में सक्रिय था. 80 के दशक के आखिरी और 90 के दशक में बिहार के एक बहुचर्चित नेता और दबंग हुआ करता था कौशलेंद्र उर्फ छोटन शुक्ला. उसका रसूख इतना कि मुजफ्फरपुर समेत अगल – बगल के 10-12 जिलों में हर सरकारी टेंडर में उसका हस्तक्षेप रहता था. स्थानीय लोगों के अनुसार उसके दरवाज़े से उस दौर में कोई खाली हाथ नहीं लौटता था. छोटन, भूटकुन, मुन्ना और मनमर्दन चार भाई थे, शुक्ला बन्धुओं का पैतृक गॉव मुजफ्फरपुर जनपद के लालगंज विधानसभा क्षेत्र में है.
1995 में बिहार विधानसभा के चुनाव होने थे और छोटन शुक्ला भी चुनावी राजनीति में आने का मन बना चुका था. वह बिहार पीपुल्स पार्टी से केेसरिया विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहा था, इस दौरान उसका ज्यादा वक्त वहीं गुजरने लगा. इसी क्रम में 4 दिसम्बर 1994 की रात केसरिया से जनसंपर्क कर साथियों के साथ कार से लौट रहा था.
रात को तकरीबन 9 बजे मुजफ्फरपुर के संजय सिनेमा के पास रास्ते में छोटन शुक्ला की कार को पुलिस की वर्दी में खड़े अपराधियों ने रोककर एके-47 से अंधाधुंध फायरिंग कर छोटन व उनके चार समर्थकों की हत्या कर दी थी. करीब 20 मिनट तक गोलियाँ बरसाई गई कि कहीं कोई गलती से भी बच ना जाए. उनके साथ मरने वालों में लालगंज के जलालपुर निवासी रेवती रमण शुक्ला उर्फ चिकरू शुक्ला, समस्तीपुर के कल्याणपुर निवासी नारायण झा, पूर्वी चंपारण के केसरिया निवासी ओमप्रकाश सिंह थे जबकि एक मृतक की पहचान नहीं हो सकी पायी थी.
डीएम को सड़क पर मार दिया गया
छोटन शुक्ला की हत्या के अगले ही क्षण से उसके साथी और समर्थक बदला लेने के लिए तैयार दिख रहे थे. हत्या के अगले ही दिन 5 दिसम्बर को छोटन शुक्ला की शवयात्रा निकाली गई, इस दौरान आक्रोशित जनसमूह ने सदर थाना के खबड़ा गांव के निकट पटना से गोपालगंज लौट रहे गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी. कृष्णैया की हत्या कर दी. कुछ समय बाद हत्या के आरोपी ओंकार सिंह सहित सात लोगों को अहियापुर के जीरोमाइल चौक गोलंबर के निकट एके-47 से भून दिया गया.
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13 जून 1998 को मेधा घोटाले में न्यायिक हिरासत में वहां इलाज के लिए भर्ती बिहार सरकार के विज्ञान व प्राविधिक मंत्री बृज बिहारी प्रसाद की पटना के इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान के पार्क में सुरक्षाकर्मियों के बीच टहलते हुए गोलियों से छलनी कर दिया गया था.
अब तक की जांच में यह बात सामने आई है कि अपराधियों ने छोटन शुक्ला को गोली मारकर हत्या कर दी थी, लेकिन छोटन शुक्ला मर्डर केस (Chhotan Shukla Murder Case) मामले की जांच में हत्या करने वाले के विरुद्ध साक्ष्य नहीं मिला है. इस मामले को 29 साल होने को हैं लेकिन पुलिस के हाथ पूरी तरह खाली हैं.
-भारत एक्सप्रेस
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