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विश्व पुस्तक मेले के 5वें दिन तक पुराण, अध्यात्म और लोक साहित्य की ओर लौटते दिखे बच्चे और युवा

साहित्यकारों को प्रौद्योगिकी से डरना नहीं है उसे मित्र बनाना है. देवनागरी लिपि में उत्तर भारत के साथ-साथ दक्षिण, पूर्व, पश्चिम के साहित्य को भी लोगों तक पहुंचाने की ताकत है.

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धर्म-अध्यात्म, योग, स्वास्थ्य, पुराण, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, व्यक्तित्व विकास, व्यापार, आत्मकथा, देशभक्ति, जीवन—चरित, फिक्शन और नॉन फिक्शन पाठकों के लिए हर तरह की किताबें नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेले में हैं. बच्चे, बड़े, वृद्ध हर आयु के पाठक पुस्तक मेले में आ रहे हैं और अपने मनपसंद विषय, लेखक, भाषा की किताबें खरीद रहे हैं, लेकिन यदि बात करें कि विश्व पुस्तक मेले में पाठक किस विषय की किताबें सबसे अधिक पसंद कर रहे हैं, इस पर बात करने के लिए प्रकाशकों का उत्साह देखते ही बना.

ओम बुक्स के सीईओ संजय माग्गो कहते हैं- इस बार किताबों के प्रति बच्चों और युवाओं की रुचि बढ़ी है. वे पौराणिक किताबें ज्यादा खरीद रहे हैं। बच्चे रामायण और महाभारत को पढ़ना चाहते हैं और युवा अपनी संस्कृति को समझने के लिए क्षेत्रीय भाषाओं में प्रकाशित पुस्तकों की माँग कर रहे हैं. युवा जिस विषय से ज्यादातर घिरे रहते हैं या सोशल मीडिया पर जैसी रील्स या पोस्ट देखते हैं, उनकी समझ भी उसी के अनुरूप विकसित होती है और वे उन्हीं विषयों की किताबें भी पढ़ना पसंद करते हैं. हालांकि हिंदी और अंग्रेजी में किताबें अधिक प्रकाशित होती हैं, लेकिन अपनी लोकल कल्चर पर गर्व या कहें दोबारा से उससे जुड़ने के लिए युवा माँग कर रहे हैं कि किताबें गुजराती, मराठी, बांग्ला सहित अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में भी प्रकाशित हों.

रूपा पब्लिकेशन के सीनियर सेल्स एक्जीक्यूटिव अजीत कुमार सिंह के अनुसार आत्मकथा, जीवनचरित, सेल्फ हैल्प, क्लासिक्स सभी सेक्शन की किताबें खरीदी जा रही हैं लेकिन अयोध्या मंदिर बनने से चार-पाँच महीने पहले और बाद में भी लोग धर्म और पुराणों को समझना चाह रहे हैं, इसलिए वे श्रीमद्भगवत गीत, रामायण, हनुमान चालीसा अधिक खरीद रहे हैं. पाठकों की बदलते रुझान को देखते हुए रूपा पब्लिकेशन ने अपनी 1500 रुपये की रामायण 200 रुपये में पाठकों के लिए रखी है और पाठकों की हमें खूब सराहना मिल रही है. पहले हम 50 साल से ऊपर के पाठकों को माइथोलॉजी की किताबें खरीदते देखते थे, लेकिन इस बार ताज्जुब भी हो रहा है और खुशी भी है कि इन विषयों को पढ़ने वाले 25 से 35 साल के युवाओं की तादाद बढ़ी है. स्कूली किताबों से हटकर बच्चे बाल रामायण भी पढ़ रहे हैं. यहां विदेश मंत्री एस. जयशंकर की पुस्तक ‘व्हाई भारत मैटर्स’ युवाओं की डिमांड पर है.

अटलांटिक पब्लिशर के जनरल मैनेजर नितिन शर्मा मानते हैं कि फिक्शन और नॉन फिक्शन पहले से ही लोगों की पसंद थी, खासकर युवाओं की, लेकिन इस बार शास्त्रीय साहित्य भी उनकी रीडिंग हैबिट में शुमार हुआ है. हालांकि हमारे पास ज्यादातर इंग्लिश के टाइटल होते हैं लेकिन अब अन्य भाषाओं की मांग बढ़ी है और इस पर हर प्रकाशक काम कर रहा है. वे भाषाओं में प्रकाशन को बेहतरीन अवसर के रूप में देख रहे हैं.

प्रभात प्रकाशन पर प्रसिद्ध लेखक अक्षत गुप्ता की पुस्तक ‘द हिडन हिंदू’ के स्टॉल पर पाठकों की भारी भीड़ है. मोहित शर्मा जो प्रभात प्रकाशन के बिजनेस डिवेलपमेंट मैनेजर हैं, उनका मानना है कि पाठकों में धार्मिक पुस्तकें या कहें ऐसे स्क्रिप्टिड उपन्यास अधिक पसंद किए जा रहे हैं, जिनका संबंध कहीं-न-कहीं धर्म या पुराणों से है. युवा पाठक मनुस्मृति, रामचरितमानस भी ले रहे हैं और स्टॉक मार्केट या ऐसी किताबें भी माँग रहे हैं जो उनकी सेल्फ वेल्यू और ग्रोथ से जुड़ी हैं. हमारे पास 28 विभिन्न राज्यों की लोककथाओं की किताबें हैं. पहली बार ऐसा हो रहा है कि पाठक इन्हें खूब पसंद कर रहे हैं. वे जिस राज्य से जुड़े हैं, वहाँ की क्या परंपराएँ, संस्कृति है, उन्हें वे इन लोककथाओं के जरिये जानना चाहते हैं.

लगभग एक साल पहले स्थापित पैंग्विन स्वदेश का लक्ष्य है कि अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी भाषा के पाठकों को भी आकर्षित किया जाए. बहुचर्चित उपन्यास ‘अग्नि की लपटें’ के लेखक और पैंग्विन स्वदेश के संपादक तेजपाल सिंह धामा कहते हैं- पैंग्विन ग्रुप के पास वैसे तो हर विषय की किताबें हैं, लेकिन नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेले के पिछले पांच दिनों की बात करें तो युवा सबसे पहले तो इस बात के लिए बड़े उत्साहित हैं कि पैंग्विन की बेस्ट सेलिंग टाइटल हिंदी में उनके लिए उपलब्ध हैं. वे सेल्फ हैल्प की पुस्तकें ले रहे हैं, जो उनके नैतिक विकास, देश के विकास या उनके आत्मनिर्भर बनने में मददगार होती हैं. पैंग्विन के बाल साहित्य की बच्चों के बीच अलग पहचान बनी है. सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहे युवा हमारी इतिहास की पुस्तकें भी खूब खरीद रहे हैं.

सांसद डॉ. एमपी अब्दुस्समद समदानी और भारतीय राजनीतिज्ञ तथा जनता दल (यूनाइटेड) के राष्ट्रीय महासचिव के. सी. त्यागी ने बुधवार को नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेले का दौरा किया. अब्दुस्समद समदानी और भारतीय राजनीतिज्ञ तथा जनता दल (यूनाइटेड) के राष्ट्रीय महासचिव के. सी. त्यागी द्वारा नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेले का आज दौरा किया गया. के. सी. त्यागी ने मेले की भव्यता की सराहना करते हुए कहा, मैं जयपुर, पटना और विभिन्न राज्यों में आयोजित पुस्तक मेलों में जाता हूँ. प्रगति मैदान के पुनरुत्थान के बाद इतना शानदार पुस्तक मेला आयोजित हो रहा है.

नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेले के लेखक मंच में पुणे पुस्तक महोत्सव, महाराष्ट्र, जागतिक पुस्तक महोत्सव और राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में डॉ. श्यामा घोणसे की पुस्तक ‘क्रांतदर्शी महात्मा बसवेश्वर’ और वर्षा परगट की पुस्तक ‘श्री कृष्ण’ का विमोचन भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव विनोद तावड़े, महाराष्ट्र सरकार के वन, सांस्कृतिक मामलों और मत्स्य पालन के कैबिनेट मंत्री सुधीर सच्चिदानंद मुनगंटीवार, राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत के अध्यक्ष प्रोफेसर मिलिंद सुधाकर मराठे एवं निदेशक युवराज मलिक द्वारा किया गया. आयोजित सत्र में विनोद तावड़े ने कहा कि “हर महापुरुष के विचार अपने आप में प्रेरणादायक हैं. महात्मा बसवेश्वर जी की कई बातें आज के समय में भी प्रासंगिक हैं. मुझे खुशी है कि आजकल के युवा अच्छा साहित्य पढ़ रहे हैं.” बुधवार को अनुराग अग्रवाल हरियाणा के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने भी नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेले का दौरान किया और सभी से पुस्तकें पढ़ने का आह्वान किया.

प्रौद्योगिकी से डरने की नहीं उसे मित्र बनाने की जरूरत

लेखक मंच पर आज नागरी लिपि परिषद की ओर से ‘राष्ट्रीय एकता में नागरी लिपि का योगदान’ विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया. इसमें डॉ. श्याम सुन्दर कथूरिया, संयुक्त निदेशक, राजभाषा, कर्मचारी राज्य बीमा निगम, चेन्नई ने कहा कि हिंदी साहित्यकारों या नागरी लिपि के साहित्यकारों को प्रौद्योगिकी और एआई का इस्तेमाल बेहतर तरीके से करना है. उनके लिए यूनिकोड में टाइप करने के लिए स्क्रिप्ट टाइप, वर्बल टाइपिंग जैसे बहुत से विकल्प हैं. साहित्यकारों को प्रौद्योगिकी से डरना नहीं है उसे मित्र बनाना है. देवनागरी लिपि में उत्तर भारत के साथ-साथ दक्षिण, पूर्व, पश्चिम के साहित्य को भी लोगों तक पहुंचाने की ताकत है. देवनागरी लिपि में ताकत है उत्तर भारत के साथ-साथ दक्षिण, पूरब पश्चिम के साहित्य को भी लोगों तक पहुंचाने की. इसलिए अनुवादकों का काम अहम हो जाता है. वे प्रौद्योगिकी और एआई का इस्तेमाल भरपूर तरीके से कर सकते हैं ताकि भारत की संस्कृति जो विभिन्न भाषाओं में समाई हुई है, उसे हर पाठक वर्ग तक पहुंचाया जा सके.

कार्यक्रम के दौरान ही लेखक डॉक्टर रंजीत सिंह अरोड़ा ‘अर्श’ की पुस्तक ‘सफर ए शहादत’ का लोकार्पण किया गया. उन्होंने नागरी लिपि परिषद और नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला के आयोजकों का धन्यवाद ज्ञापित किया और देवनागरी लिपि पर विचार रखते हुए कहा कि देश में सबसे ज्यादा पढ़ी जाने वाली भाषा हिंदी है. इसलिए गुरुवाणी और गुरु गोविंद सिंह के वचनों और सिख साहित्य को पूरे भारतवर्ष में और विश्व तक पहुंचाने की ताकत केवल हिंदी में ही है. कार्यक्रम में उपस्थित संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के निदेशक (राजभाषा) डॉ. आर. रमेश आर्य ने कहा, दक्षिण भारत का साहित्य और संस्कृति प्राचीन है और इसे दक्षिण से उत्तर में पहुँचाने का काम देवनागरी लिपि के माध्यम से तेजी से चल रहा है. कार्यक्रम में कन्नड़ से हिंदी में उनके द्वारा अनूदित पुस्तक लांबाणी (बांजारा) रामायण को भी मंच से विमोचन किया गया. यह रामायण की लोककथा है, जो लांबानी बांजारा रामायण कहलाती है. इसमें मूल रामायण से थोड़े अंतर के साथ इस कथा को प्रस्तुत किया गया है. दक्षिण भारत में इसे नाटक के माध्यम से भी प्रदर्शित किया जाता है. इस कार्यक्रम का संचालन नागरी लिपि परिषद के महामंत्री डॉ हरिसिंह पाल ने किया.

शिक्षा में रामत्व

भारतीय शिक्षण मंडल, दिल्ली द्वारा ‘शिक्षा में रामत्व’ विषय पर परिचर्चा आयोजित हुई. राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत के निदेशक युवराज मलिक ने कहा कि शिक्षा में रामत्व अर्थात राम का तत्व, राम जैसा तत्व अगर शिक्षा में आ जाएगा तो हम एक ऐसे समाज की परिकल्पना कर पाएँगे जो रामराज्य की ओर लेकर जाएगा. उन्होंने नई शिक्षा नीति में रामत्व को कहानी वाचन के माध्यम से जोड़ने की बात की.

निधि चापेकर की कहानी उन्हीं की जुबानी

‘अनब्रोकन : द ब्रुसेल्स टेरर अटैक-सर्वाइवर’ पुस्तक की लेखिका निधि चापेकर ने भी बुधवार को नई दिल्ली विश्व अपनी पुस्तक में शिरकत की. उन्होंने मंच से अपनी आपबीती सुनाते हुए पाठकों को बताया कि किस तरह ब्रुसेल्स टेरर अटैक ने उनके जीवन को बदलकर रख दिया. यहां तक पहुंचने के लिए उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा. साहित्य अकादेमी द्वारा आयोजित होने वाले ‘बहुभाषी युवा साहिती’ कार्यक्रम में हिंदी, पंजाबी, संस्कृत, उर्दू भाषा के लेखकों ने अपने विचार व्यक्त करते हुए हर भाषा के महत्व को रेखांकित किया.

विश्व पुस्तक मेले के लेखक मंच पर भारतीय शिक्षण मंडल द्वारा ‘शिक्षा में रामत्व’ विषय पर परिचर्चा का आयोजन किया गया. इस सत्र में उपस्थित राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत के निदेशक युवराज मलिक, भारतीय शिक्षण मंडल दिल्ली प्रांत के अध्यक्ष डॉ. ऋषि मोहन भटनागर, प्रो. अजय कुमार सिंह, प्रोफेसर डॉ. रचना विमल और प्रोफेसर प्रकाश कांडपाल द्वारा शिक्षा में रामत्व की आवश्यकता पर चर्चा की गई. इस सत्र में वैज्ञानिक दृष्टि से रामायण का विश्लेषण करते हुए कई तथ्यों को भी प्रस्तुत किया गया.

बाल मंडप

बाल मंडप में बुधवार को मशहूर लेखिका और कहानीकार इशिता दीनानाथ बिस्वास ने एक इंटरैक्टिव सत्र का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने कवर डिजाइन और चित्रों के चयन के महत्व पर बात करते हुए बाल पुस्तकें तैयार करने की प्रक्रिया के बारे में बताया. बाल मंडप से ही लेखिका स्वाति सिन्हा ने “द मैजिक रिंग” महाराष्ट्र की लोककथा बच्चों को सुनाई और पशुओं के प्रति दया और सहानुभूति का संदेश प्रसारित किया. साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित बाल साहिती कार्यक्रम में प्रसिद्ध कथाकार शकुंतला कालरा ने बच्चों को जीवन में नैतिक मूल्यों के महत्व को समझाते हुए “पतंग और डोरी” और “मेरी अम्मा मेरे पापा” नामक हिंदी कविताएँ सुनाईं. इसी सत्र में प्रख्यात कथाकार सुमन नागी ने दो तोता राम और तोता श्याम पर आधारित “असली खजाना” नामक कहानी सुनाते हुए फ़्लैप और क्लैप गतिविधियों के माध्यम से कर्म के फल का संदेश बच्चों तक पहुँचाया.

‘बहुभाषी भारत: एक जीवंत परंपरा’ थीम के अंतर्गत सांस्कृतिक कार्यक्रम के अंतर्गत बहुभाषी कवि सम्मेलन का आयोजन हुआ, जिसमें हिंदी, उर्दू, गुजराती, राजस्थानी, पंजाबी आदि भाषाओं में कविता पाठ किया गया. सांस्कृतिक कार्यक्रमों के अंतर्गत महाराष्ट्र राज्य के सांस्कृतिक प्रदर्शनों का भी आयोजन हुआ. युवा देर रात तक इन कार्यक्रमों में थिरकते लेते नजर आए.

-भारत एक्सप्रेस

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