
CBI - सांकेतिक फोटो
राऊज एवेन्यू कोर्ट ने 2435 करोड़ रुपये के बैंक धोखाधड़ी मामले में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को कड़ी फटकार लगाई है. कोर्ट ने कहा कि जांच एजेंसी ‘गोपनीयता का पर्दा’ डालकर सच्चाई को दबाना चाहती है, जिससे मामला फाइलों में ही दफन रहे.
विशेष न्यायाधीश संजीव अग्रवाल ने कहा कि परिस्थितियों से स्पष्ट होता है कि जांच एजेंसी अदालत से कुछ महत्वपूर्ण बातें छिपाने की कोशिश कर रही है. उन्होंने कहा कि एफआईआर दर्ज होने के बाद किसी भी जांच एजेंसी को निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से जांच करनी चाहिए.
अपराध फाइल पेश न करने पर उठे सवाल
कोर्ट ने कहा कि किसी भी मामले में जांच पूरी होने के बाद अंतिम रिपोर्ट न्यायालय में दाखिल की जाती है. ऐसे में यह न्यायालय का अधिकार है कि वह एफआईआर दर्ज होने से लेकर आरोप पत्र दाखिल होने तक की प्रक्रिया की जांच करे.
कोर्ट ने यह भी कहा कि अपराध फाइल को छिपाने या पेश न करने से संदेह पैदा होता है कि जांच एजेंसी न्यायालय से कुछ महत्वपूर्ण तथ्य छिपा रही है, खासकर जब मामला 2435 करोड़ रुपये की सार्वजनिक धनराशि के गबन से जुड़ा हो. यह मामला भारतीय स्टेट बैंक की औद्योगिक वित्त शाखा, मुंबई से जुड़ा है.
कोर्ट ने 03 फरवरी को सीबीआई को मामले की सभी अपराध फाइलें पेश करने का निर्देश दिया था, लेकिन न्यायिक आदेश के बावजूद सीबीआई इसमें विफल रही. अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत रिपोर्टों की जांच के लिए ये फाइलें आवश्यक थीं.
न्यायालय ने सीबीआई की जांच को बताया लापरवाह
अदालत ने कहा कि प्रथम दृष्टया मुख्य और पूरक आरोपपत्र से स्पष्ट होता है कि सीबीआई द्वारा जांच ठीक से नहीं की गई थी. जांच में लापरवाही बरती गई और कई महत्वपूर्ण पहलुओं को नजरअंदाज किया गया. कोर्ट ने कहा कि यह एक गंभीर आर्थिक अपराध है, जिससे देश के ईमानदार करदाताओं और राज्य के राजकोष पर बड़ा प्रभाव पड़ा है. ऐसे में अपराध फाइलें प्रस्तुत न करना इस बात का संकेत देता है कि जांच एजेंसी अदालत से कुछ महत्वपूर्ण तथ्य छिपा रही है.
कोर्ट ने कहा कि केस फाइलें पेश करने के आदेश का पालन न करना सीबीआई की ओर से “स्पष्ट अवज्ञा और अड़ियलपन” का संकेत देता है. इससे यह प्रतीत होता है कि एजेंसी को न्यायिक आदेश की कोई परवाह नहीं है और न ही वह उसका पालन करने को तैयार है.
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न्यायाधीश ने कहा कि यह गंभीर चिंता का विषय है और यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 की भावना के भी विपरीत है, जो निष्पक्ष जांच और निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित करता है. कोर्ट ने संबंधित शाखा प्रमुख को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि मामले के जांच अधिकारी अगली सुनवाई की तारीख 21 फरवरी को अपराध फाइल के साथ अनिवार्य रूप से उपस्थित हों.
-भारत एक्सप्रेस
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