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जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी आवास पर मिले कथित कैश की जांच की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट जल्द करेगा सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी आवास पर कथित कैश मिलने की जांच की मांग वाली याचिका पर जल्द सुनवाई करेगा. याचिकाकर्ता ने दिल्ली पुलिस को एफआईआर दर्ज करने और निष्पक्ष जांच के निर्देश देने की मांग की है.

Supreme Court
Edited by Akansha

जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी आवास पर मिले कथित कैश मिलने के मामले की जांच की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट जल्द सुनवाई को तैयार हो गया है. याचिकाकर्ता और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील मैथ्यूज जे नेदुम्परा सीजेआई बी. आर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष मेंशन कर जल्द सुनवाई की मांग की, जिसपर कोर्ट ने कहा कि 20 मई को सुनवाई होगी, लेकिन याचिकाकर्ता ने कहा कि वो 20 मई को उपलब्ध नहीं है. कोर्ट ने कहा कि उसके बाद सुनवाई करेंगे.

याचिकाकर्ता ने दिल्ली पुलिस को दिया ये निर्देश

यह याचिका सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील मैथ्यूज जे नेदुम्परा, हेमाली सुरेश कुर्ने, राजेश विष्णु आद्रेकर और चार्टर्ड अकाउंटेंट मंशा निमेश मेहता ने संयुक्त रूप से दायर की है. याचिका में जस्टिस यशवंत वर्मा, सीबीआई, ईडी और आयकर विभाग को पार्टी बनाया गया है. याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से दिल्ली पुलिस को मुकदमा दर्ज करने और प्रभावी तथा सार्थक जांच करने का निर्देश देने की मांग की है.

समिति पर सवाल

याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की ओर से 22 मार्च को गठित तीन सदस्यीय न्यायाधीशों की समिति को जस्टिस वर्मा के आवास पर आग लगने की घटना की जांच करने का कोई अधिकार नहीं है. जबकि संसद या संविधान ने ऐसा करने का अधिकार नहीं दिया है. याचिका में कहा गया है, जब अग्निशमन/पुलिस बल ने आग बुझाने के लिए अपनी सेवाएं दीं तो यह बीएनएस के विभिन्न प्रावधानों के तहत दंडनीय संज्ञेय अपराध बन गया और पुलिस का कर्तव्य है कि वह मुकदमा दर्ज करें. यह घटना भारतीय न्याय संहिता के तहत विभिन्न संज्ञेय अपराधों के दायरे में आती है.

याचिका में यह भी कहा गया है कि के वीरास्वामी बनाम भारत संघ (1991)में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय में यह निषिद्ध किया गया है कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की पूर्व अनुमति के बिना किसी हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के विरुद्ध कोई आपराधिक मामला दर्ज नही किया जाएगा. याचिका में कहा गया है कि यह न्याय को बेचकर जमा किए गए काले धन का मामला है.

जस्टिस वर्मा की चुप्पी पर सवाल

जस्टिस वर्मा के बयान पर विश्वास करने का प्रयास करने पर भी यह सवाल बना रहता है कि उन्होंने एफआईआर क्यों नहीं दर्ज कराई. पुलिस को साजिश के पहलू की जांच करने में सक्षम बनाने के लिए देर से ही सही एफआईआर दर्ज करना जरूरी है. हालांकि इस मामले की जांच को लेकर सीजेआई संजीव खन्ना ने इन-हाउस कमेटी का गठन किया है. इस कमेटी में पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शील नागू, हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जी एस संधावालिया और कर्नाटक हाई कोर्ट के जस्टिस अनु शिवरामन शामिल है. कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद सीजेआई ने राष्ट्रपति के पास भेज दिया है.

-भारत एक्सप्रेस 


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