फूट न जाए ध्रुवीकरण का ‘गुब्बारा’
अगर चीन ने जानबूझकर नहीं भी चाहा होगा कि उसका गुब्बारा पकड़ा जाए, तो भी उसके लिए इस ‘चूक’ का इससे अच्छा समय कोई दूसरा नहीं हो सकता था।
बजट 2023-24 बेहद खास, अर्थव्यवस्था पर मजबूत विश्वास
निर्मला सीतारमन के बजट की एक और खासियत यह है कि राजस्व जुटाने में कॉरपोरेट टैक्स और इनकम टैक्स बराबर का योगदान करने जा रहे हैं।
बीबीसी डॉक्यूमेंट्री: पीएम मोदी की वैश्विक छवि को धूमिल करने की औपनिवेशिक मानसिकता
राजनीतिक तौर पर प्रधानमंत्री के विरोध का उन्हें पूरा अधिकार है लेकिन जब वैश्विक स्तर पर प्रधानमंत्री पद पर सवाल उठते हैं तो उसका मतलब देश पर सवाल उठना होता है।
‘शरीफ’ नहीं हैं पाकिस्तान के इरादे
शरीफ पर विश्वास करने की कोई वजह भी नहीं है। पाकिस्तान जब तक सीमा पार से आतंकवाद को नहीं रोकता, तब तक भारत को उससे क्यों बात करनी चाहिए?
दांव पर ‘विश्वगुरु’ की साख
जी-20 इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह संयुक्त राष्ट्र के सभी पांच स्थायी सदस्यों, G-7 के सभी सदस्यों और सभी BRICS देशों का प्रतिनिधित्व करता है।
कंझावला हादसे से महिला सुरक्षा पर गंभीर सवाल: नया साल, पुराना हाल
हमें समझना होगा कि महिला सुरक्षा को लेकर जीरो टॉलरेंस की नीति से कोई भी समझौता होगा, तो निर्भया, कंझावला जैसे मामलों पर रोक नहीं लग सकेगी।
आर्थिक मोर्चे पर ‘कुछ बड़ा’ करने का साल
2023 में जो एक चुनौती दिख रही है वो रोजगार के क्षेत्र से आती दिख रही है। हालांकि दुनिया के मुकाबले भारत में बेरोजगारी की स्थिति उतनी भयावह नहीं है लेकिन हालात कोई बहुत अच्छे भी नहीं हैं।
जेलेंस्की-बाइडेन का मिलन, अमन की उम्मीद पर ग्रहण?
दुनिया को और खासकर अमेरिका को यह बात समझनी होगी कि यूक्रेन-रूस युद्ध का अंत यूक्रेन के हाथ में नहीं है। नाटो के देश और खुद अमेरिका के साथ बातचीत से ही इस युद्ध का शांतिपूर्ण अंत हो सकता है।
मोदी से जिनपिंग को क्यों लगता है डर?
जाहिर है लगातार मजबूत होता जा रहा भारत चीन की आंखों में चुभता है। भारत खुद एक परमाणु शक्ति है, इसलिए खुले मैदान में तो लाल सेना की हिम्मत नहीं कि वो हिंद के वीरों को चुनौती दे सके।
जीत कर भी ‘दिल्ली दूर’!
यह भी मानना होगा कि विधानसभा चुनावों में आगे की कई चाल पहले से सोच कर विपक्षियों को धूल चटाने में माहिर हो चुकी बीजेपी एमसीडी चुनाव में आम आदमी पार्टी की ‘कल्पनाशीलता’ के सामने कमजोर साबित हुई।