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ऐतिहासिक अवसर है संसद का विशेष सत्र

विशेष सत्र में पांच नए विधेयक भी पेश किए जाएंगे जिनका उद्देश्य शासन और सार्वजनिक सेवा के विभिन्न पहलुओं में सुधार और आधुनिकीकरण करना है.

September 14, 2023
Parliament Special Session

Parliament Special Session

18 से 22 सितंबर तक विशेष सत्र के साथ संसद 75वीं वर्षगांठ मनाने के लिए तैयार है. यह सत्र न केवल भारत की समृद्ध और विविध संसदीय यात्रा का जश्न मनाएगा, बल्कि इसके लोकतांत्रिक इतिहास में एक नया अध्याय भी जोड़ेगा. सत्र की शुरुआत 9 दिसंबर, 1946 को पहली बार हुई संविधान सभा से लेकर संसद की उपलब्धियों, अनुभवों, यादों और सीखों पर चर्चा के साथ होगी. संविधान सभा निर्वाचित प्रतिनिधियों का एक निकाय था जिसने भारत के संविधान का मसौदा तैयार किया था. और 26 जनवरी 1950 को देश में संविधान लागू हुआ था. संविधान सभा ने 1951-52 में पहले आम चुनाव होने तक अनंतिम संसद के रूप में भी कार्य किया. तब से, संसद ने 17 लोकसभा (लोवर हाउस) और 14 राज्यसभा (अपर हाउस) चुनाव देखे हैं और देश और उसके लोगों को प्रभावित करने वाले विभिन्न मुद्दों पर कई कानून और प्रस्ताव पारित किए हैं.

नए बिल

विशेष सत्र में पांच नए विधेयक भी पेश किए जाएंगे जिनका उद्देश्य शासन और सार्वजनिक सेवा के विभिन्न पहलुओं में सुधार और आधुनिकीकरण करना है. डाकघर विधेयक, 2023 भारत में डाकघर से संबंधित कानून को संशोधित करेगा, जो दुनिया के सबसे पुराने और सबसे बड़े डाक नेटवर्क में से एक है. मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की अवधि) विधेयक, 2023 मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति, सेवा की शर्तों और कार्यालय की अवधि को विनियमित करेगा, जो स्वतंत्र चुनाव कराने के लिए जिम्मेदार हैं. निरसन और संशोधन विधेयक, 2023 कुछ अप्रचलित अधिनियमों को निरस्त करेगा और मौजूदा अधिनियम में संशोधन करेगा. अधिवक्ता (संशोधन) विधेयक, 2023 कानूनी पेशे को विनियमित करने और इसकी जवाबदेही और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए अधिवक्ता अधिनियम, 1961 में संशोधन करेगा. प्रेस और पत्रिकाओं का पंजीकरण विधेयक, 2023 पत्रिकाओं के पंजीकरण को विनियमित करने और प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा करने के लिए प्रेस और पुस्तकों के पंजीकरण अधिनियम, 1867 की जगह लेगा.

विशेष सत्र की एक और महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसे नए संसद भवन में आयोजित किया जा सकता है. नए संसद भवन का उद्घाटन 2 मई, 2023 को पीएम मोदी ने किया था. नई इमारत सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट का एक हिस्सा है. इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य नई दिल्ली के केंद्रीय प्रशासनिक क्षेत्र को बदलना है. नई इमारत का आकार त्रिकोणीय है जो लोकतंत्र की विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका जैसी तीन शाखाओं का प्रतीक है. इसमें लोकसभा में 888 सदस्यों और राज्यसभा में 384 सदस्यों की बैठने की क्षमता है, जिसे संयुक्त सत्र को समायोजित करने के लिए बढ़ाया जा सकता है. इसमें चार बड़े समिति कक्ष, एक पुस्तकालय, सदस्यों के लिए एक लाउंज, एक भोजन क्षेत्र और एक बड़ा कांस्टीट्यूशन हॉल भी है.

भारत की गौरवशाली संसदीय यात्रा

भारत की संसदीय यात्रा संविधान सभा से शुरू हुई, जिसे 1946 में प्रांतीय विधानसभाओं द्वारा चुना गया था. संविधान सभा ने भारत के संविधान का मसौदा तैयार किया, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ. पहली लोकसभा (लोवर हाउस) में 489 सदस्य थे और पहली राज्यसभा (अपर हाउस) में 216 सदस्य थे. भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू थे, जिन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व किया था. तब से, भारत में 17 लोकसभा और 14 राज्यसभा चुनाव हुए हैं, जिसमें विभिन्न राजनीतिक दल और गठबंधन सत्ता में आए हैं.

संसद ने सामाजिक न्याय, आर्थिक विकास, विदेश नीति, राष्ट्रीय सुरक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण और कई अन्य मुद्दों पर कानून और प्रस्ताव पारित करके देश की नियति को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. संसद ने कई ऐतिहासिक बहसें, भाषण, प्रस्ताव और विरोध प्रदर्शन भी देखे हैं, जिन्होंने भारतीय लोकतंत्र की विविधता और जीवंतता को दर्शाया है.

भारतीय संसद की उपलब्धियां:

• 1971 में पूर्व शासकों के प्रिवी पर्स और उपाधियों की समाप्ति.
• 2005 में सूचना का अधिकार अधिनियम का अधिनियमन, जिसने नागरिकों को सरकारी महकमा से जानकारी प्राप्त करने का अधिकार दिया.
• 2017 में वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम पारित हुआ, जिसने पूरे देश में एक समान इनडायरेक्ट टैक्स सिस्टम शुरू की.
• 2019 में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए 10% आरक्षण प्रदान करने के लिए संविधान में संशोधन.
• 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त करना और जम्मू और कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करना.

भारतीय संसद को भी पिछले कुछ वर्षों में कई चुनौतियों और विवादों का सामना करना पड़ा है, जैसे:

• 1975-77 में इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल लागू करना, जिसने नागरिक स्वतंत्रता खत्म हो गई थी और संसदीय कामकाज में भी इसका असर पड़ा.
• व्यक्तिगत या राजनीतिक लाभ के लिए सांसदों का एक पार्टी से दूसरी पार्टी में जाना, जिससे सरकारों की स्थिरता और विश्वसनीयता कम हुई.
• अनियंत्रित व्यवहार, नारेबाजी, वाकआउट और संसदीय कार्यवाही में व्यवधान, जिससे कानून की उत्पादकता और गुणवत्ता प्रभावित हुई.
• कुछ सांसदों के खिलाफ भ्रष्टाचार, आपराधिकता और भाई-भतीजावाद के आरोप, जिसने संस्था में जनता के विश्वास और विश्वास को खत्म कर दिया.

इस प्रकार संसद का विशेष सत्र एक ऐतिहासिक अवसर है जो भारतीय लोकतंत्र के अतीत, वर्तमान और भविष्य को दर्शाता है. यह सांसदों के लिए राष्ट्र के संस्थापकों को श्रद्धांजलि अर्पित करने का अवसर है, जिन्होंने एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक गणराज्य की कल्पना की थी. यह उनके लिए देश के सामने मौजूद मौजूदा चुनौतियों और अवसरों पर विचार-विमर्श करने और ऐसे कानून बनाने का भी मौका है जिससे लोगों को फायदा होगा और उनके अधिकार बरकरार रहेंगे. अंततः यह उनके लिए एक अत्याधुनिक इमारत के साथ संसदीय कामकाज के नए युग को अपनाने का क्षण है जो भारत की आकांक्षाओं और विविधता का प्रतिनिधित्व करता है.

-भारत एक्सप्रेस

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