करता था सो क्यों किया, अब कर क्यों पछिताय। बोया पेड़ बबूल का, आम कहां से खाय। कबीर ने सदियों पहले जो बात कही, वो आज के दौर में भी कितनी प्रासंगिक है इसका ताजातरीन उदाहरण हमारा पड़ोसी पाकिस्तान है। जिस तालिबान को पाकिस्तान ने भारत में आतंक फैलाने के लिए पाल-पोस कर बड़ा किया, आज वही तालिबान पाकिस्तान को केवल आंख ही नहीं दिखा रहा है, बल्कि उसे नेस्तनाबूद करने पर आमादा है। तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के नाम से कुख्यात यह उग्रवादी संगठन बलूच अलगाववादियों के साथ मिलकर पाकिस्तान के उत्तरी क्षेत्र में समानांतर सरकार चला रहा है और पूरे पाकिस्तान में कहर बरपा रहा है। टीटीपी की बढ़ती चुनौती ने पाक सेना को देश के अंदर ही मैदान में उतरने के लिए मजबूर कर दिया है। टीटीपी के हौसले इतने बुलंद हैं कि अपने खिलाफ सैन्य अभियान को लेकर उसने प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ, बिलावल भुट्टो समेत देश के शीर्ष नेताओं को निशाना बनाने की खुलेआम चेतावनी जारी की हुई है। नौबत यहां तक पहुंच गई है कि टीटीपी पाकिस्तान का वही हाल करने की धमकी दे रहा है जो भारत ने 1971 की जंग में नया बांग्लादेश बना कर किया था।
पाकिस्तान में तालिबान के बढ़ते आतंक ने समय को एक दशक पीछे धकेल दिया है। आज पाकिस्तान उसी संगठन की आतंकी गतिविधियों पर लगाम लगाने के लिए छटपटा रहा है, जिसे कभी उसने पनाह दी थी। अफगानिस्तान पर तालिबान के लगभग बिना किसी चुनौती के अनियंत्रित कब्जा कर लेने से तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान का हौसला बढ़ा है। बरसों तक पाकिस्तानी सुरक्षा बलों ने टीटीपी की आतंकी हरकतों पर आंखें मूंद रखी थीं। पाकिस्तान की नींद तब खुली जब 2008 में टीटीपी ने स्वात घाटी पर कब्जा कर लिया। तब भी अगले छह साल तक पाकिस्तानी सरकार ने तालिबान के खिलाफ किसी बड़ी कार्रवाई की जरूरत नहीं समझी। 2014 में जब तालिबान ने पेशावर आर्मी पब्लिक स्कूल में आतंक का कोहराम मचाते हुए 132 बच्चों और 17 शिक्षकों को मौत के घाट उतार दिया, तब जाकर पाकिस्तानी सेना ने तालिबान के खिलाफ अपना सबसे बड़ा ऑपरेशन शुरू किया। सेना के ऑपरेशन के बाद, टीटीपी का अधिकांश नेतृत्व और कैडर अफगानिस्तान भाग गया। सितंबर 2021 में जब अफगानिस्तान में गनी सरकार गिरी तो टीटीपी ने एक बार फिर पाकिस्तान का रुख किया। पिछले साल जून में पाकिस्तान सरकार और टीटीपी के बीच युद्धविराम पर राजीनामा भी हुआ लेकिन स्थायी हल नहीं निकला। पांच महीनों में ही पाकिस्तानी तालिबान का सब्र जवाब दे गया।
सीजफायर समाप्त होने के बाद से ही पाकिस्तान में सुरक्षा बलों और नागरिकों के खिलाफ टीटीपी के हमलों में 51 फीसद की वृद्धि हुई है। वर्ष 2022 में पाकिस्तान में 250 आतंकी हमले हुए जिनमें करीब 440 लोग मारे गए और 700 से ज्यादा घायल हुए। इनमें ज्यादातर हमलों के साथ टीटीपी का नाम जुड़ा था। इस्लामाबाद स्थित थिंक-टैंक सेंटर फॉर रिसर्च एंड सिक्योरिटी स्टडीज के खुलासे तो और चौंकाने वाले हैं। 2022 की अपनी सालाना रिपोर्ट में सेंटर ने टीटीपी के उभार को पाकिस्तान के लिए सबसे बड़ा खतरा बताया है। इस रिपोर्ट के अनुसार केवल एक साल में ही पाकिस्तान-अफगान सीमा क्षेत्रों में आईईडी, आत्मघाती और सुरक्षा चौकियों पर तालिबानी हमलों में पाकिस्तानी सुरक्षा बलों के 282 कर्मियों को जान गंवानी पड़ी है।
साफ दिखता है कि पाकिस्तान अब अफगान-तालिबान और तहरीक-ए-तालिबान के दलदल में फंस गया है। बलूचिस्तान में अस्थिरता के साथ ही खैबर पख्तूनख्वा क्षेत्र में जबरन वसूली और फिरौती के लिए अपहरण आम हो गए हैं। अस्थिरता पर काबू पाने के लिए अब पाकिस्तान को अमेरिकी मदद भी मयस्सर नहीं है। अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी ने जहां पाकिस्तान को सीमा पार से आ रहे खतरों का सामना करने के लिए अकेला छोड़ दिया है, वहीं देश के अंदर कई गुटों से चल रही छद्म लडाई ने उसकी सुरक्षा व्यवस्था की कमर तोड़ दी है। अगर टीटीपी के हमलों के कारण चीन प्रायोजित सीपीईसी परियोजनाएं प्रभावित होती हैं, तो पाकिस्तान के लिए ये एक नया सिरदर्द खड़ा कर देगा। गंभीर राजनीतिक अस्थिरता और सिकुड़ती अर्थव्यस्था के बीच दांव पर लगी सुरक्षा के कारण पाकिस्तान आज एक ऐसे टाइम बम पर बैठा दिख रहा है जो किसी भी वक्त फट सकता है।
पड़ोस में जब इतनी उथल-पुथल मची हो तो भारत भला कैसे निश्चिंत रह सकता है। चीन के साथ जारी संकट के बीच पाकिस्तान में तालिबान का बढ़ता आतंक हमारे लिए दोहरी परेशानी खड़ी कर सकता है। ऐसी भी आशंकाएं हैं कि एक मजबूत टीटीपी इस्लामिक स्टेट खुरासान के पाकिस्तान में प्रवेश के लिए दरवाजे खोल देगा जो आने वाले दिनों में भारत के लिए भी चुनौती बन सकता है। हाल के वक्त में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कई सार्वजनिक मंचों से भारत की चिंता को जाहिर किया है। पिछले महीने ऑस्ट्रिया के ZIB2 पॉडकास्ट के साथ एक साक्षात्कार में विदेश मंत्री ने पाकिस्तान की भूमिका का वर्णन करते हुए उसे आतंक का केन्द्र बताया था। ऑस्ट्रियाई विदेश मंत्रालय के साथ एक संयुक्त प्रेस वार्ता के दौरान भी जयशंकर ने पाकिस्तान का नाम तो नहीं लिया, लेकिन स्पष्ट संदर्भ के साथ दुनिया को चेताया कि चूंकि आतंकवाद का केन्द्र भारत के करीब स्थित है, इसलिए हमारे अनुभव और अंतर्दृष्टि दूसरों के लिए मूल्यवान हो सकते हैं। इससे पहले संयुक्त राष्ट्र में भी विदेश मंत्री ने दुनिया को हिलेरी क्लिंटन के करीब एक दशक पुराने उस ऐतिहासिक बयान की याद दिलाई थी जब क्लिंटन ने आतंकियों को पनाह देने की पाकिस्तान की नीति की तुलना घर के आंगन में सांप पालने से की थी। क्लिंटन ने तब कहा था कि अगर आप घर में सांप पालते हैं, तो उनसे केवल अपने पड़ोसियों को काटने की उम्मीद नहीं कर सकते। एक न एक दिन ये सांप अपने पालने वालों को भी काट लेंगे।
लेकिन इतिहास गवाह है कि पाकिस्तान कभी अच्छी सलाह पर चलने के लिए तैयार नहीं हुआ। यही वजह है कि इस बार इसका नतीजा वो खुद भुगत रहा है। आंगन में पले सांप अब उसे ही डसने की तैयारी में हैं। अफगान तालिबान को काबुल पर कब्जा करने में मदद करने के लिए आईएसआई ने ही बनाया था। उस मिशन में सफलता से प्रेरित तहरीक-ए-तालिबान अब पाकिस्तान पर कब्जे का सपना देख रहा है। पाकिस्तान के आंतरिक हालात और अफगानिस्तान से बिगड़े रिश्तों ने तहरीक-ए-तालिबान को सीमा के दोनों तरफ अपनी पकड़ मजबूत करने का मौका दिया है। अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता ने आधुनिक तकनीक वाले सैन्य साजो-सामान और विदेशी हथियारों तक उसकी पहुंच को भी आसान बना दिया है। अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद तहरीक-ए-तालिबान का रूप भी बदला है। उसके कई छोटे गुट मिलकर एक हो गए हैं। भारत के खिलाफ इस्तेमाल के लिए पाकिस्तान जिन आतंकी संगठनों को पालता-पोसता रहा है, उन्होंने भी तहरीक-ए-तालिबान से हाथ मिला लिया है। ऐसे में अगर अफगानिस्तान में सत्ता में बैठा तालिबान भी उसके साथ आ जाता है तो पाकिस्तानी फौज इस गठबंधन को कितने दिन तक रोक पाएगी? इन सबके बीच सबसे चिंता की बात ये है कि पाकिस्तान के पास परमाणु बम भी है। पाकिस्तान पर कब्जे का मतलब ये होगा कि ये विनाशकारी ताकत तालिबान के हाथों तक भी पहुंच सकती है। बेशक ये स्थिति फिलहाल दूर की कौड़ी लगती हो लेकिन भविष्य में ऐसा नहीं होगा इसकी भी कोई गारंटी नहीं है।