अडाणी ग्रुप के चेयरमैन गौतम अडाणी (दाएं)
इस सप्ताह भारतीय शेयर बाजार में अनपेक्षित रूप से खासी उथल-पुथल हुई और ये सब हुआ केवल एक रिपोर्ट की वजह से। ये रिपोर्ट जारी की है एक अमेरिकी फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च ने जिसके सामने आने के बाद बेंचमार्क इंडेक्स सेंसेक्स और निफ्टी तीन महीने के निचले स्तर पर आ गए। सारा उलट-पुलट महज दो कारोबारी सत्र में ही हो गया। अकेले शुक्रवार को ही शेयर बाजार दो फीसद से ज्यादा टूट गया। रिपोर्ट में निशाने पर था अडाणी समूह जिस पर टैक्स चोरी, मनी लॉन्ड्रिंग, भ्रष्टाचार और वित्तीय गड़बड़ी जैसे आरोप लगाकर उसकी इक्विटी से ज्यादा ऋण को लेकर सवाल उठाए गए हैं। साथ ही अडाणी समूह की कंपनियों को 85 फीसद से ज्यादा ओवरवैल्यूड भी बताया गया है। इसके साथ ही हिंडनबर्ग रिसर्च ने ये भी साफ कर दिया कि अडाणी समूह की कंपनियों के शेयर शॉर्ट पोजीशन पर हैं। जो शॉर्ट पोजीशन लेता है शेयर को लेकर उसका नजरिया मंदी का होता है। सरल भाषा में मतलब यह है कि हिंडनबर्ग रिसर्च ने कुछ तकनीकी जानकारियों को साझा करते हुए दुनिया को बता दिया कि उसे आने वाले दिनों के कारोबार में अडाणी समूह के शेयरों में गिरावट का अंदेशा है।
नतीजा क्या हुआ? अडाणी समूह के शेयरों में जमकर बिकवाली हुई। समूह के 10 में से पांच स्टॉक – अडाणी पोर्ट्स, अडाणी एंटरप्राइजेज, अडाणी ट्रांसमिशन, अडाणी ग्रीन एनर्जी, अडाणी टोटल गैस में से प्रत्येक में केवल शुक्रवार के कारोबार में ही लगभग 20% की गिरावट आ गई। अडाणी पावर और अडाणी विल्मर के शेयर भी जमकर टूटे। सबसे ज्यादा नुकसान अंबुजा सीमेंट्स को हुआ जो मामूली रिकवरी से पहले 25% तक टूट गया। केवल दो कारोबारी दिनों ने अडाणी समूह को लगभग 29 बिलियन डॉलर से अधिक गरीब बना दिया, जिससे गौतम अडाणी दुनिया के सबसे अमीर अरबपतियों की सूची में चौथे स्थान से फिसलकर सातवें स्थान पर पहुंच गए। बिल गेट्स और वारेन बफेट अब उनसे आगे निकल गए हैं। फोर्ब्स रियल-टाइम बिलियनेयर्स की सूची के डाटा से पता चलता है कि अकेले शुक्रवार के कारोबार में अडाणी समूह को लगभग 21.9 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ और उसकी संपत्ति अब 97.3 बिलियन डॉलर आंकी गई है।
और निवेशकों का हाल क्या हुआ? महज 2 दिन के अंदर उनके कुल मिलाकर करीब 4 लाख करोड़ रुपए डूब गए। इससे निवेशकों की घबराहट का पता चलता है जिसके कारण एक-दो नहीं, तमाम शेयरों में गिरावट आई। जब बहुत कम समय में इस तरह के स्तर की बिकवाली देखी जाती है, तो निवेशक उन स्टॉक को भी बेच देते हैं जो उन्हें मुनाफा दे रहे होते हैं या देने वाले होते हैं। इस मामले में भी ऐसा ही देखा जा रहा है। भले ही तमाम विश्लेषक हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के तथ्य साबित नहीं होने का हवाला देकर निवेशकों को संयम रखने की सलाह दे रहे हों लेकिन बिकवाली अपने चरम स्तर पर है।
क्या हिंडनबर्ग फर्म की यही मंशा थी? फर्म ने खुद ही कहा है कि वो अडाणी समूह को लेकर शॉर्ट पोजीशन पर है। शॉर्ट ट्रेड या शॉर्ट सौदे ऐसे सौदे होते हैं जिसमें शेयर बेचा पहले और खरीदा बाद में जाता है। शॉर्ट करने वाले को कीमत नीचे जाने पर फायदा होता है और कीमत ऊपर जाने पर नुकसान यानी अडाणी समूह के शेयर जितने गिरेंगे, हिंडनबर्ग फर्म का मुनाफा उतना ऊपर जाएगा। हिंडनबर्ग फर्म का पुराना इतिहास भी इसी तरह का रहा है। साल 2017 में फोरेंसिक वित्तीय शोध फर्म के रूप में स्थापित हिंडनबर्ग रिसर्च इक्विटी, क्रेडिट और डेरिवेटिव का विश्लेषण करते हुए वित्तीय अनियमितताओं की तलाश करती है और उसी के अनुसार अपनी पूंजी लगाती है। कंपनी के नाम का भी अपना अलग इतिहास है। अमेरिका में साल 1937 में हिंडनबर्ग एयरशिप की आपदा पर इसका नाम रखा गया है और अपने नाम के ही अनुसार वो आपदा में अवसर ढूंढने के लिए कुख्यात है। खुद कंपनी के अनुसार अपनी स्थापना के पांच साल में ही हिंडनबर्ग रिसर्च सोशल नेटवर्किंग साइट ट्विटर, इलेक्ट्रिक वाहन कंपनी निकोला और बॉलीवुड की मशहूर मीडिया प्रोडक्शन कंपनी इरोस इंटरनेशनल जैसी 16 हाई प्रोफाइल कंपनियों को अपना निशाना बना चुकी है। कुछ मामलों में उसके पेश किए गए तथ्य सही साबित हुए हैं, तो कुछ में गलत। लेकिन हर मामले में मॉडस ऑपरेंडी एक जैसी रही है – आरोप लगाकर शेयर गिराओ और मोटा मुनाफा कमाओ। अडाणी समूह के मामले में भी अभी फर्म के लगाए गए आरोप साबित नहीं हुए हैं लेकिन मुनाफा उसकी जेब में जा चुका है।
हिंडनबर्ग के दावों को लेकर संदेह इसलिए भी लाजिमी लगता है क्योंकि वो निवेश और शोध करने वाली उन 30 कंपनियों में शामिल है जिनके खिलाफ अमेरिका का न्याय विभाग बड़ी कंपनियों को निशाना बनाने के आरोप की जांच कर रहा है। ये आरोप उसी तरह के मामलों से जुड़े हैं जैसा अडाणी समूह के साथ हुआ है। फर्म के संस्थापक नैट एंडरसन के लिए कहा जाता है कि वे कॉरपोरेट आपदाओं को पहचानने और उन्हें मुनाफा कमाने के अवसर में बदलने की कला में पारंगत हैं। हिंडनबर्ग रिसर्च पर शॉर्ट सेलिंग से फायदा कमाने के लिए बड़े फंड से जानकारी निकालने के आरोप भी लगते रहे हैं।
साख के साथ-साथ हिंडनबर्ग रिसर्च अपनी रिपोर्ट जारी करने की टाइमिंग को लेकर भी सवालों के घेरे में है। रिपोर्ट अडाणी समूह की प्रमुख कंपनी अडाणी एंटरप्राइजेज के फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफर (एफपीओ) से पहले आई है। यह एफपीओ सब्सक्रिप्शन के लिए 27 से 31 जनवरी तक डिस्काउंट पर उपलब्ध है। लेकिन 20 हजार करोड़ रुपये जुटाने के लक्ष्य के साथ भारतीय पूंजी बाजार के इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा एफपीओ होने के कारण लोगों में इसको लेकर जिस तरह की उत्सुकता थी, एफपीओ का सब्सक्रिप्शन उस हिसाब से नहीं हुआ है। यानी मार्केट कैपिटलाइजेशन के साथ ही अडाणी समूह के एफपीओ पर भी हिंडनबर्ग की रिपोर्ट का नकारात्मक असर हुआ है।
बहरहाल अडाणी समूह ने इस मामले में कानूनी कार्रवाई के संकेत दिए हैं। इसकी कई अंतरराष्ट्रीय मिसालें पहले से मौजूद हैं। 2008 में फ्लोरिडा के बैंक अटलांटिक ने वॉल स्ट्रीट के एक विश्लेषक पर और 2009 में दुनिया की सबसे बड़ी कार रेंटल कंपनी हर्ट्ज ग्लोबल होल्डिंग्स ने एक अन्य नामी विश्लेषक पर इसी तरह के मामले में मानहानि का मुकदमा दायर किया था। साल 2020 में दुनिया के सबसे बड़े डिजिटल एसेट एक्सचेंजों में से एक, बिनेंस उसे नुकसान पहुंचाने वाली एक रिपोर्ट को लेकर फोर्ब्स मीडिया के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर कर चुकी है। साल 2020 में एडलवाइस फाइनेंशियल सर्विसेज ने वैश्विक रेटिंग एजेंसी मूडीज कॉर्पोरेशन पर गलत रिपोर्ट प्रकाशित करने का आरोप लगाकर बॉम्बे हाई कोर्ट के समक्ष $100 मिलियन का मुकदमा दायर किया था। हालांकि, ऐसे तमाम मामलों में सबसे बड़ा जोखिम यह साबित करना होता है कि रिपोर्ट असत्य है और प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के इरादे से ही प्रकाशित की गई है। अडाणी समूह के लिए भी ये काम चुनौतीपूर्ण रहने वाला है।
लेकिन अडाणी समूह को लेकर देश में एक अलग तरह की चिंता भी है। बंदरगाहों, सड़कों, रेल, हवा
एक लेखक होने के नाते मेरा मानना है कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट का निशाना भले ही देश का केवल एक औद्योगिक समूह हो लेकिन इससे विकास के अमृतकाल में प्रवेश कर रही हमारी आकांक्षाओं की रफ्तार के भी प्रभावित होने का अंदेशा है। एक दूसरा पक्ष उन तमाम निवेशकों की आर्थिक सुरक्षा के उचित प्रबंधन का भी है जिनकी जीवन भर की कमाई महज एक ऐसी रिपोर्ट के आधार पर चंद मिनटों में स्वाहा हो जाती है जिसकी सत्यता साबित होने में कई वर्ष भी लग सकते हैं।