अमिताभ बच्चन (फाइल फोटो-सोशल मीडिया)
Siyasi Kissa: जब राजीव गांधी ने उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को फिर से संजीवनी देने की ठानी तो इलाहाबाद से उन्होंने अपने जिगरी दोस्त अभिनेता अमिताभ बच्चन को उतारने की प्लानिंग बनाई. क्योंकि ये दौर अमिताभ बच्चन का था और बूढ़े से लेकर बच्चों की जुंबा पर अमिताभ का नाम गूंज रहा था. कहा जाता है कि चुनाव में उतरने से पहले अमिताभ ने राजीव गांधी से कहा था‘मुझे पॉलिटिक्स के P के बारे में भी नहीं पता.’बावजूद इसके जब वह पहली बार मंच पर जनता को सम्बोधित करने के लिए पहुंचे थे तो लड़कियों में इस कदर अमिताभ के लिए दीवानगी दिखाई दी थी कि अमिताभ की तरफ चुन्नी (दुपट्टे) फेंकना तक शुरू कर दिया था. अमिताभ की एक झलक पाने के लिए लड़कियों में दीवानगी देखते ही बनती थी. इस सम्बंध में कांग्रेस के एक नेता ने एक साक्षात्कार में बताया था कि जब उन दुपट्टों को गिना गया तो कुल 1,785 दुपट्टे निकले थे.
बता दें कि साल 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के दो महीने बाद लोकसभा के लिए चुनाव होने वाला था. राजीव गांधी ने कांग्रेस के साथ ही देश की बागडोर भी सम्भाल ली थी. यानी कांग्रेस ने उनको अपना प्रधानमंत्री बनाने का दावेदार घोषित कर दिया था. चूंकि उत्तर भारत में 1977 के चुनाव में कांग्रेस को बड़ी हार का सामना करना पड़ा था तो हिंदी बेल्ट में कांग्रेस में फिर से जान फूंकना राजीव के लिए एक बड़ी चुनौती थी. इसके लिए उनको एक ऐसे आकर्षक चेहरे की जरूरत थी जो पूरे यूपी को आकर्षित करने की क्षमता रखता हो. तब राजीव के जेहन में अभिनेता अमिताभ को इलाहबाद से उतारने का विचार कौंधा और उन्होंने पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारियों से सलाह लेकर एक ही रात में पूरी रणनीति बना डाली थी.
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गुपचुप तरीके से भरवाया गया था पर्चा
राजीव गांधी ने पार्टी में ये ऐलान कर दिया था कि जब तक अमिताभ नामांकन नहीं करा देते तब तक किसी को नहीं मालूम होना चाहिए कि कांग्रेस अमिताभ को उतारने जा रही है. उस समय उत्तर प्रदेश में चुनावी योजनाओं के बारे में पूरी जिम्मेदारी अरुण नेहरू के पास थी. वह अमिताभ और जया बच्चन को बड़े ही गुपचुप तरीके से लेकर लखनऊ पहुंचे और फिर एयरपोर्ट से दोनों को सीधे सीएम आवास ले गए थे और फिर यहीं से अमिताभ को सभी की नजरों से बचाकर इलाहाबाद ले जाया गया था. राजीव गांधी की रणनीति के हिसाब से ही आखिरी वक्त तक किसी को इस बात की जरा भी जानकारी नहीं थी कि कांग्रेस ने अमिताभ को चुनावी मैदान में उतारा है. चुनाव के लिए पर्चा दाखिल करने का आखिरी समय शाम चार बजे का था और अमिताभ ने 3:30 बजे के आस-पास पर्चा भरा.
अमिताभ ने हरा दिया था पूर्व सीएम को
उस समय अमिताभ के प्रति लोगों की दीवानगी क्या थी, ये इसी से साफ होता है कि उन्होंने पूर्व सीएम तक को हरा दिया था. दरअसल इलाहाबाद अमिताभ की जन्मभूमि रही, तो वहीं तब हेमवती नंदन बहुगुणा का ये गढ़ हुआ करता था. बहुगुणा 1973 से 1975 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. 1979 में देश के वित्त मंत्री भी रहे. उनका नाम देश के कद्दावर नेताओं में गिना जाता था. 1984 में इलाहाबाद से उन्होंने लोकदल की टिकट पर चुनाव लड़ा था, विपक्षी दल भई उनका पूरा समर्थन कर रहे थे और तब की राजनीतिक में ये पक्का हो चुका था कि इस बार बहुगुणा को सांसद बनने से कोई नहीं रोक सकता लेकिन जब अमिताभ का नाम सामने आया तो बहुगुणा के पास इतना भी वक्त नहीं बचा था कि वह कहीं और से नामांकन कर पाते और फिर इस चुनाव में बहुगुणा को हार का मुंह देखना पड़ा था.
अमिताभ ने जब बहुगुणा को किया था नमस्कार
बताया जाता है कि इलादाबाद में चुनाव प्रचार के लिए अमिताभ बच्चन पहुंचे थे और एक बार हेमवती नंदन बहुगुणा व अमिताभ का काफिला आमने-सामने हो गया था. दोनों ओर के समर्थकों ने नारेबाजी करनी शुरू कर दी और एक पल के लिए लगा कि दोनों ओर से समर्थक भिड़ जाएंगे. इस स्थिति में प्रशासन के भी पसीने छूट गए थे लेकिन अमिताभ गाड़ी से उतरे और बहुगुणा के पास जाकर प्रणाम कर आशीर्वाद लिया और बहुगुणा को पहले निकलने के लिए कहा. बताया जाता है कि अमिताभ के इस व्यवहार ने तब बहुगुणा के साथ ही इलाहाबाद की जनता का भी दिल जीत लिया था.
कुछ इस तरह रहे थे चुनावी नतीजे
इस चुनाव में बहुगुणा को अमिताभ ने भारी मतों से हरा दिया था. दिग्गज नेता हेमवती नंदन बहुगुणा 1.87 लाख के भारी मार्जिन से चुनाव हार गए थे. अमिताभ बच्चन को 2.97 लाख वोट मिले थे और बहुगुणा को 1.09 लाख वोट हासिल हुए थे. इस तरह अमिताभ बच्चन सांसद बन गए थे लेकिन तीन साल बाद ही उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था. 1987 के बीच में ही जब भाई अजिताभ पर बोफोर्स मामले में आरोप लगे थे तब अमिताभ ने राजनीति को अलविदा कह दिया था.
-भारत एक्सप्रेस
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