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Karwa Chauth 2023: करवा चौथ की कथा बिना इसका व्रत है अधूरा, जानें पूरी कथा

Karwa Chauth 2023: पति की लंबी उम्र की कामना के लिए रखे जाने वाले इस व्रत में माता पार्वती और भगवान गणेश की पूजा-अर्चना के साथ ही करवा चौथ की कथा भी सुनी जाती है.

करवा माता

Karwa Chauth 2023: हिंदू धर्म में सुहागिन महिलाओं के लिए करवा चौथ का व्रत बेहद ही खास होता है. हर साल कार्तिक मास के कृष्‍ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ का व्रत रखा जाता है. इस दिन सुहागिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं. वहीं शाम को चांद देखकर अपना व्रत खोलती हैं. चांद को अर्घ्‍य देने के बाद ही यह व्रत पूर्ण माना जाता है. पति की लंबी उम्र की कामना के लिए रखे जाने वाले इस व्रत में माता पार्वती और भगवान गणेश की पूजा-अर्चना करने का विधान है. वहीं इस दिन करवा चौथ की कथा भी सुनी जाती है. आइए जानते हैं क्या है इस दिन से जुड़ी कथा.

यह है करवा चौथ की कथा

एक समय की बात है किसी राज्य में एक साहूकार रहता था. जिसके सात बेटे और एक बेटी थी. उसकी बेटी अपने पूरे परिवार की चहेती थी. सभी उसको बहुत स्नेह करते थे. साथ में बैठाकर भोजन कराते थे. एक दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन करवाचौथ के अवसर पर साहूकार की सभी बहुएं और इकलौती बेटी व्रत रखती हैं. रात के समय सभी भाई भोजन करने बैठते हैं. छोटे भाई ने जब अपनी लाडली बहन से भोजन करने को कहा तो उसने बताया कि आज चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद मैं खाना खाऊंगी.

सुबह से ही बिना अन्न जल के निर्जला व्रत रखने के कारण बहन की हालत छोटे भाई से देखी नहीं गई. ऐसे में उसे एक उपाय सूझा. छोटे भाई ने दूर पीपल के पेड़ के पास एक दीपक जला कर उसे चलनी की ओट में रख दिया. देखने पर यह बिलकुल चतुर्थी के चांद की तरह ही दिखता था. ऐसे में उसकी बहन उस दीपक को चांद समझकर करवा का अर्घ्य देकर खाना खाने लगती है. भोजन के पहले निवाले को मुंह में डालते ही उसे छींक आ जाती है. इसके बाद जब वह दूसरे निवाले को मुंह में डालती है तो बाल आ जाता है और तीसरा निवाला डालते ही उसके पति की मृत्यु की सूचना उसे मिलती है. ऐसे में वह शोक मनाते हुए विलाप करने लगती है.

उसकी भाभी यह सब कुछ देख रही थी और उसे भाई द्वारा बनाए गए नकली चांद के बारे में पूरी सच्चाई पता थी. उसने अपनी ननद को पूरी हकीकत बताई और कहा कि गलत तरीके से व्रत के टूटने के कारण ही देवता रुष्ट हो गए हैं और इसके कारण ऐसा हुआ है. यह जानकर वह काफी दुखी होती है और अपने पति का अंतिम संस्कार ना करने का फैसला करती है. उसी क्षण अपने सतीत्व के बल से पति को पुनः जीवित करने का प्रण लेती है.

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पूरे एक साल तक वह अपने पति के शव के पास बैठकर उसकी देखभाल करती है और पति के ऊपर उगने वाली सुईनुमा घास को इकट्ठा करती रहती है. एक साल बाद जैसे ही करवाचौथ आता है वह फिर से व्रत रहती है और संध्याकाल में करवा चौथ की पूजा करने वाली सुहागिन महिलाओं से निवेदन करती है ‘ यम सूई ले लो -पिय सूई दे दो’ अपनी तरह सुहागिन बना दो. लेकिन उसकी यह बात वहां मौजूद सुहागिन महिलाएं नहीं मानती. किसी तरह उसकी पुकार सुन एक सुहागिन महिला मान जाती है और उसका व्रत पूरा हो जाता है. व्रत के पूरा होते ही उसका पति फिर से जीवित हो उठता है.



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