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आधुनिक युद्ध में हवाई खतरों को देखते हुए DRDO के सहयोग से विकसित यह अत्याधुनिक प्रणाली उभरते हवाई खतरों के खिलाफ भारत की रक्षा तैयारियों को बढ़ाने में एक महत्वपूर्ण कदम है.

रक्षा मंत्रालय ने मंगलवार को कहा कि रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने स्क्रैमजेट कॉम्बस्टर का सफलतापूर्वक जमीनी परीक्षण किया है, जो हाइपरसोनिक मिसाइलों में परिचालन उपयोग के लिए इसकी क्षमता को प्रदर्शित करता है.

रक्षा मंत्रालय ने कहा कि स्वदेशी रूप से विकसित तीसरी पीढ़ी की एंटी-टैंक फायर-एंड-फॉरगेट गाइडेड मिसाइल नाग एमके 2 का हाल ही में भारतीय सेना के वरिष्ठ अधिकारियों की मौजूदगी में पोखरण फील्ड रेंज में सफलतापूर्वक फील्ड मूल्यांकन परीक्षण किया गया.

भारतीय सेना के 'Make In India' पहल के तहत निर्मित वाहनों को लेबनान में तैनात भारतीय बटालियन ने संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन में शामिल किया है, जिससे भारत की आत्मनिर्भरता और वैश्विक भूमिका को मजबूती मिल रही है.

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने DRDO के 67वें स्थापना दिवस पर संगठन की उपलब्धियों की सराहना की और स्वदेशी रक्षा क्षमताओं को बढ़ावा देने में इसके योगदान को रेखांकित किया.

रक्षा मंत्रालय के अनुसार, AIP प्लग के निर्माण और इसके एकीकरण के लिए मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड के साथ लगभग 1,990 करोड़ और EHWT के एकीकरण के लिए नेवल ग्रुप, फ्रांस के साथ लगभग 877 करोड़ रुपये का अनुबंध साइन किया गया.

भारत इस अत्याधुनिक SFDR तकनीक को विकसित करने वाला पहला देश है, जो 300 किलोमीटर से अधिक की दूरी पर सुपरसोनिक गति से तेज गति से चलने वाले हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलों को विकसित करने में मदद करेगी.

केंद्र सरकार ने उद्योगों, विशेष रूप से MSME और Startup को विभिन्न रक्षा प्रौद्योगिकियों को विकसित करने के लिए प्रोत्साहित करते हुए TDF योजना को मंजूरी दी है.

हाइपरसोनिक मिसाइलों की तेज गति के कारण दुश्मनों के लिए इनका पता लगाना और रोकना बहुत कठिन होता है. इस सफल परीक्षण से देश की सामरिक क्षमता और राष्ट्रीय सुरक्षा मजबूत हुई है.

सेना ने पहली बार 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान पिनाका मल्टीपल बैरल रॉकेट लॉन्चर (MBRL) द्वारा मचाई गई तबाही देखी थी, जब इसने पाकिस्तानी घुसपैठियों के ठिकानों पर दागे जाने पर भयानक तबाही मचाई थी.