हिंदी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा; इसे अपनाने के लिए अंग्रेजी का त्याग नहीं, दोस्ताना व्यवहार चाहिए: महेश दर्पण
आज राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत (NBT) के सभागार में हुए विशेष आयोजन के दौरान 'वर्तमान परिवेश में हिंदी की प्रासंगिकता' विषय पर व्याख्यान दिए गए. इसमें वरिष्ठ पत्रकार महेश दर्पण समेत कई लेखक शामिल हुए.
प्रभा खेतान: जिन्होंने स्त्री विमर्श को दी नई आवाज; रचनाओं में मिलता है बोल्ड और निर्भीक औरत का चित्रण
स्त्रियों को एक स्त्री ही समग्रता से समझ सकती है और प्रख्यात साहित्यकार प्रभा खेता ने साहित्य साधना में स्त्री के सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक और नैतिक मूल्यों को गहराई से समझा था.
शरद जोशी: समाज, सरकार और सिस्टम पर व्यंग्य बाण चलाने वाला अनूठा साहित्यकार
व्यंग्यकार शरद जोशी ने अपनी एक किताब में लिखा है कि चुने हुए मुख्यमंत्रियों की तीन जात होती हैं. एक तो काबिलियत से चुने जाते हैं, दूसरे वे जो गुट, जाति, रुपयों आदि के दम जीतते हैं और तीसरे वे, जो कोई विकल्प न होने की स्थिति में चुन लिए जाते हैं.
हरिशंकर परसाई: गाय का ‘धर्म’ और राजनीति का ‘मर्म’ समझाने वाले व्यंग्यकार
प्रख्यात लेखक और व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई लिखते हैं कि निंदा में विटामिन और प्रोटीन होते हैं. निंदा खून साफ करती है, पाचन-क्रिया ठीक करती है, बल और स्फूर्ति देती है.
हिंदी साहित्य के एक ऐसे कवि, जिन्होंने अद्भुत लेखनी से शेक्सपीयर और मिल्टन को छोड़ दिया था पीछे; जानें कितनी भाषाओं का था ज्ञान?
सीमाओं और जातियों के बंधनों से दूर उन्होंने ऐसी कृतियां गढ़ी, जिनकी आज भी खूब प्रशंसा होती है.
साहित्य जगत के दो नक्षत्र- मनोहर श्याम जोशी और शिवपूजन सहाय, जिन्होंने अपनी लेखनी से सामाजिक कुरीतियों पर की चोट
प्रख्यात लेखक मनोहर श्याम जोशी को ने भारतीय टेलीविजन पर धारावाहिकों के युग की शुरुआत करने के लिए जाना जाता है. शिवपूजन सहाय हिंदी के उन चंद लेखकों में से एक थे, जिन्होंने भोजपुरी क्षेत्र की स्थानीय बोलियों और मुहावरों का इस्तेमाल अपनी लेखनी में किया.
भीष्म साहनी की लेखनी में दिखा समाज का आईना, हिंदी साहित्य में दिया है बहुमूल्य योगदान
प्रख्यात रचनाकार भीष्म साहनी का जन्म 8 अगस्त 1915 को रावलपिंडी (वर्तमान पाकिस्तान) में हुआ था. अपनी अद्भुत लेखनी के दम पर उन्होंने समाज के हर चेहरे को अपने नाटकों, कहानियों और उपन्यासों में उतारा.