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हिंदी साहित्य के एक ऐसे कवि, जिन्होंने अद्भुत लेखनी से शेक्सपीयर और मिल्टन को छोड़ दिया था पीछे; जानें कितनी भाषाओं का था ज्ञान?

सीमाओं और जातियों के बंधनों से दूर उन्होंने ऐसी कृतियां गढ़ी, जिनकी आज भी खूब प्रशंसा होती है.

Trilochan Shastri

फोटो-सोशल मीडिया

Trilochan Shastri: समाज को उन्होंने जिस नजर से देखा, उसे उसी तरह से शब्दों में पिरो कर पन्नों पर उतार दिया. वह हिंदी साहित्य के एक ऐसे कवि थे जो किसी व्यक्ति विशेष या समाज को किसी खास चश्मे से नहीं देखते थे. वह एक कोमल दिल और मजबूत समझ वाले थे. इसको उन्होंने अपनी लेखनी के द्वारा साबित किया. हम यहां पर बात कर रहे हैं हिंदी साहित्य में प्रगतिशील काव्य धारा के कवि त्रिलोचन शास्त्री की, जिन्होंने अपनी लेखनी से शेक्सपीयर और मिल्टन जैसे दिग्गजों को भी पीछे छोड़ दिया था. उन्होंने अपनी लेखनी से समाज की उन ज्वलंत समस्याओं की तरफ इशारा किया, जो उनके समय में हाशिए पर सुस्ता रहे थे.

सुल्तानपुर में हुआ था जन्म

कवि त्रिलोचन का जन्म 20 अगस्त 1917 को उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर के चिरानी पट्टी में हुआ था. इस तरह से आज उनका जन्म दिन है. ‘हिंदवी’ वेबसाइट के मुताबिक उनका मूल नाम वासुदेव सिंह था. उन्हें ‘शास्त्री’ की उपाधि मिली थी. इसी वजह से उनको कवि त्रिलोचन शास्त्री कहा जाता है. वह हमेशा पीड़ित वर्गों के दुख-दर्द, पीड़ा, अत्याचार की आवाज बने. जानकार बताते हैं कि वह हमेशा कहते थे कि ‘हमेशा पुरानी पीढ़ी नई पीढ़ी से निराश रही है. नई पीढ़ी भी पुरानी पीढ़ी बनकर निराश होती रही है.’ उनकी इस बात से आज भी लोग जरूर इत्तेफाक रखते होंगे. सीमाओं और जातियों के बंधनों से दूर त्रिलोचन ने ऐसी कृतियां गढ़ी, जिनकी आज भी खूब प्रशंसा होती है. उन्होंने सारी मानव जाति को एक साथ आकर आगे बढ़ने की प्रेरणा दी.

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1945 में प्रकाशित हुआ ता पहला कविता संग्रह

‘1945’ में उनका पहला कविता संग्रह ‘धरती’ प्रकाशित हुआ, जिसे लोगों ने खूब पसंद किया था और इसे खूब सराहा गया. उनके ‘गुलाब और बुलबुल’, ‘उस जनपद का कवि हूं’, ‘ताप के ताए हुए दिन’, ‘शब्द’, ‘तुम्हें सौंपता हूं’, ‘जीने की कला’ जैसे कविता संग्रह लोगों को इतने पसंद आइ कि लोग उनकी कविता के बहाने हिंदी से जुड़ते गए. इस तरह से कवि त्रिलोचन ने उन तक समाज के मर्म को भी पहुंचाया. उनकी खासियत मुक्त छंद की छोटी और लंबी कविताएं भी रही, जिन्हें आज भी समाज का एक बड़ा तबका पसंद करता है. सोशल मीडिया के इस दौर में भी त्रिलोचन की कविताएं आपकी आंखों के सामने से गुजरती जरूर हैं. त्रिलोचन की कविताओं में देश की माटी की सोंधी खूश्बू है तो देशज शब्दों से भरे गांव-शहर के अंतर्द्वंद्व में उलझे मानव के संघर्ष की व्यथा भी है. शायद, ‘बिस्तरा है न चारपाई है, ज़िंदगी खूब हमने पाई है’ कविता त्रिलोचन की उसी भाव को समाहित करता है, जिसके वो उस्ताद थे.

हिंदी में स्थापित किया सॉनेट

त्रिलोचन समाज के हर वर्ग को अपने शब्दों में शामिल किया और अपनी रचना के रूप में समाज के सामने रखा. बता दें कि अंग्रेजी के सॉनेट (अंग्रेजी छंद) के भारतीय युवा फैन हुआ करते थे. तो वहीं त्रिलोचन को हिंदी में सॉनेट को स्थापित करने का श्रेय दिया जाता है. इस विद्या में उन्होंने इतनी रचनाएं की, जितनी शायद विलियम शेक्सपीयर, मिल्टन और एडमंड स्पेंसर जैसे कवियों ने भी नहीं की थी. उन्होंने गीत, ग़ज़ल से लेकर चतुष्पदियां (सॉनेट) और कुंडलियां तक लिखी.

मिले कई सम्मान

त्रिलोचन शास्त्री को कई सम्मान मिले. उन्हें हिंदी अकादमी ने शलाका सम्मान दिया. इसी के साथ ही हिंदी साहित्य के पोषण के लिए ‘शास्त्री’ और ‘साहित्य रत्न’ जैसी उपाधियां भी मिली. उन्हें 1981 में ‘ताप के ताए हुए दिन’ के लिए साहित्य अकादमी जैसा प्रतिष्ठित सम्मान भी मिला. उन्होंने अपने जीवन काल में कई उपलब्धियां हासिल की. अपनी रचनाओं से समाज को दिशा दिखाते रहे. जीवन के अंतिम समय में भी त्रिलोचन लिखने-पढ़ने और गढ़ने में व्यस्त रहे. हरिद्वार के पास ज्वालापुर में वह निवास करते रहे. 9 दिसंबर 2007 को गाजियाबाद में उनका निधन हुआ था.

बाजारवाद के रहे मुखर विरोधी

त्रिलोचन शास्त्री को अपनी मातृ भाषा हिंदी से इतना लगाव था कि उन्होंने हिंदी में प्रयोगधर्मिता को खूब समर्थन दिया. वह बाजार वाद के मुखर विरोधी भी रहे. उनका हमेशा कहना था कि भाषा में जितने ज्यादा प्रयोग किए जाएंगे, वह भाषा उतनी ही ज्यादा समृद्ध होती चली जाएगी. केदारनाथ सिंह ने कहा था, “भाषा के प्रति त्रिलोचन एक बेहद ही सजग कवि हैं. त्रिलोचन की कविता में अपरिचित शब्द जितनी सहजता से आकर अपनी जगह बनाते हैं, कई बार संस्कृत के कठिन शब्द भी उतनी ही सहजता से उनकी लेखनी में शामिल हो जाते हैं और चुपचाप अपनी जगह बना लेते हैं.” यही बात उन्हें खास और दूसरे कवियों से अलग बनाती है.

पत्रकार बनकर समाज को दिखाया मार्ग

काशी से अंग्रेज़ी और लाहौर से संस्कृत की शिक्षा प्राप्त करने के बाद त्रिलोचन शास्त्री ने पत्रकारिता का रास्ता चुना. उन्हें हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत के अलावा अरबी और फारसी का भी ज्ञान था. उन्होंने कई नामचीन प्रकाशन ‘प्रभाकर’, ‘हंस’, ‘आज’, ‘समाज’ आदि पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया और उन्हें विशिष्ट से अति विशिष्ट बनाने में सफल हुए. त्रिलोचन की कविताओं में मेहनतकश और समाज के दबे-कुचले वर्ग की व्यथा और आवाज़ समाहित थी.

-भारत एक्सप्रेस

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