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नेहरू नहीं, सुभाष चंद्र बोस बने थे देश के पहले PM, सिंगापुर में बनाई थी अस्थाई भारत सरकार, इन देशों ने दी थी मान्यता

सुभाष चंद्र बोस ने अपनी पूरी कैबिनेट का गठन किया, जिसमें एसी चटर्जी वित्त विभाग के प्रभारी थे, एसए अय्यर प्रचार और प्रसार मंत्री बने, लक्ष्मी स्वामीनाथन को महिला मामलों का मंत्रालय सौंपा गया.

Subhash Chandra Bose

सुभाष चंद्र बोस और जवाहरलाल नेहरू.

21 अक्टूबर 1943 को सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) ने सिंगापुर में अस्थायी भारत सरकार बनाई थी, जिसे आजाद हिंद सरकार के नाम से भी जाना जाता है. सुभाष चंद्र बोस इस सरकार के पहले प्रधानमंत्री बने और उन्होंने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और सेनाध्यक्ष, तीनों भूमिकाएं निभाईं.

Subhash Chandra Bose ने गठित की कैबिनेट

सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) ने अपनी पूरी कैबिनेट का गठन किया, जिसमें एसी चटर्जी वित्त विभाग के प्रभारी थे, एसए अय्यर प्रचार और प्रसार मंत्री बने, लक्ष्मी स्वामीनाथन को महिला मामलों का मंत्रालय सौंपा गया. आजाद हिंद फौज के कई अधिकारी भी इस कैबिनेट में शामिल थे. इस सरकार को जर्मनी, जापान, फिलीपींस, कोरिया, चीन, इटली, मांचुकु और आयरलैंड जैसे देशों ने मान्यता दी.

बोस की आजाद हिंद फौज का गठन भी इस संघर्ष का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था. 4 जुलाई 1943 को सिंगापुर में रासबिहारी बोस ने आजाद हिंद फौज की कमान सुभाष चंद्र बोस को सौंप दी. बोस ने इसका नेतृत्व करते हुए इसे एक मजबूत संगठन में तब्दील किया, जिसका उद्देश्य द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई करना था. जापान ने इस फौज को काफी सहयोग प्रदान किया और इसमें देश के बाहर रह रहे भारतीय भी शामिल हुए थे.

भारत में अपना झंडा फहराया

आजाद हिंद फौज ने 19 मार्च 1944 को भारत में अपना झंडा फहराया. कर्नल शौकत मलिक के नेतृत्व में मणिपुरी सैनिकों ने झंडा फहराने का काम किया था. इसके बाद 6 जुलाई 1944 को रंगून रेडियो स्टेशन से महात्मा गांधी को संबोधित करते हुए सुभाष चंद्र बोस ने अपनी स्थिति स्पष्ट की और उनसे मदद की अपील की थी. 21 मार्च 1944 को ‘चलो दिल्ली’ के नारे के साथ आज़ाद हिंद फ़ौज भारत की धरती पर पहुंची. ये भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण था.

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सुभाष चंद्र बोस और आजाद हिंद सरकार का योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अविस्मरणीय है. उनका दृष्टिकोण और नेतृत्व आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं, और उनके कार्यों ने भारतीय जनमानस में स्वतंत्रता के प्रति जागरूकता और संघर्ष की भावना को बढ़ाया.

-भारत एक्सप्रेस

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