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कौन थे वीपी मेनन? जिन्होंने 565 रियासतों के भारत व‍िलय में निभाई थी अहम भूमिका, माने जाते थे सरदार पटेल के राइट हैंड

सरदार पटेल, वीपी मेनन से पहले से ही काफी प्रभावित थे. बाद में जब देश आजाद हुआ तो उन्हें सरदार पटेल के अधीन राज्य मंत्रालय में सचिव की जिम्मेदारी दी गई.

VP Menon

सरदार पटेल के राइट हैंड थे वीपी मेनन.

15 अगस्त 1947… देश की आजादी के बाद भारत के सामने ना केवल आर्थिक चुनौतियां थीं, बल्कि देश को एकजुट भी करना किसी चुनौती से कम नहीं था, लेकिन इस काम को करने का बीड़ा उठाया ‘लौह पुरुष’ सरदार पटेल ने, जिनके नेतृत्व में 565 रियासतों के भारत विलय का सपना साकार हुआ. इस मुह‍िम में पर्दे के पीछे एक और शख्स ने अहम भूमिका निभाई थी, जो भारतीय रियासतों के एकीकरण में सरदार पटेल के मुख्य सहयोगी थे.

हम बात कर रहे हैं वीपी मेनन की, जो लॉर्ड लुइस माउंटबेटन के राजनीतिक सलाहकार भी थे. जब देश आजाद हुआ, तो वह सरदार पटेल के सचिव बने, जिनकी वजह से रियासतों का विलय सफल हो पाया.

आजादी के बाद सरदार पटेल के सचिव बने

30 सितंबर 1893 को वप्पला पांगुन्नी मेनन का जन्म केरल के पलक्कड़ जिले में हुआ था. उन्होंने अपने करियर का आगाज तो रेलवे में कोयला झोंकने, खनिक और एक तंबाकू कंपनी के क्लर्क के रूप में किया. मगर जब सफलता ने उनके कदमों को चूमा, तो वह ब्रिटिश काल में वायसराय के सचिव पद तक पहुंचे.

वीपी मेनन ने निभाई अहम भूमिका

सरदार पटेल, वीपी मेनन से पहले से ही काफी प्रभावित थे. बाद में जब देश आजाद हुआ तो उन्हें सरदार पटेल के अधीन राज्य मंत्रालय में सचिव की जिम्मेदारी दी गई. इस दौरान उन्होंने पटेल के साथ मिलकर भारत के विभाजन के दौरान और बाद में भारत के राजनीतिक एकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. मेनन की सूझबूझ की मदद से 565 रियासतों को एकजुट करने की कार्रवाई को अमल में लाया गया और धीरे-धीरे उनकी योजना सफलता की सीढ़ियां चढ़ने लगी. इस दौरान कुछ अड़चन भी आई, मगर पटेल और मेनन की जोड़ी ने इस बाधा को भी सकुशल पार किया.

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मेनन ने जूनागढ़ और हैदराबाद जैसे राज्यों के खिलाफ सैन्य कार्रवाई करने पर पटेल के साथ मिलकर काम किया. इसके साथ ही उन्होंने पाकिस्तान के साथ संबंधों और कश्मीर संघर्ष पर नेहरू और पटेल को सलाह भी दी, इसके बाद कैबिनेट ने 1947 में कश्मीर को भारत में विलय कराने के लिए मेनन को ही चुना था.

ओडिशा के राज्यपाल बने

वह साल 1951 में ओडिशा (उड़ीसा ) के राज्यपाल भी नियुक्त किए गए. उन्होंने भारत के राजनीतिक एकीकरण पर एक किताब लिखी, जिसमें भारतीय राज्यों के एकीकरण की कहानी और भारत के विभाजन को बताया गया है. हालांकि, बाद के दिनों में वह स्वतंत्र पार्टी में शामिल हो गए, लेकिन कभी चुनाव नहीं लड़ा. 31 दिसंबर 1965 को 72 साल की उम्र में उनका निधन हो गया.

-भारत एक्सप्रेस



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