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भौगोलिक सीमाओं को पार कर हिंदी ने पूरी दुनिया में बनाई अपनी पहचान, यूएन के राजदूतों ने की सराहना

यूएन के वैश्विक संचार विभाग के निदेशक इयान फिलिप्स ने अपने भाषण की शुरुआत ‘नमस्कार दोस्तों’ से की. उन्होंने हिंदी की वैश्विक पहुंच को प्रभावशाली बताया और बताया कि आज यह 600 मिलियन से ज्यादा लोगों द्वारा बोली जाती है.

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हिंदी दिवस पर UN में कार्यक्रम आयोजित.

संयुक्त राष्ट्र ने हिंदी भाषा के वैश्विक प्रचार पर जोर दिया है. यूएन मुख्यालय में आयोजित एक विशेष कार्यक्रम में वैश्विक संचार विभाग (डीजीसी) के निदेशक, इयान फिलिप्स ने बताया कि हिंदी ने भौगोलिक सीमाओं को पार करते हुए पूरी दुनिया में अपनी पहचान बनाई है. उन्होंने इस बात पर बल दिया कि हिंदी एक ऐसी भाषा है जो समावेशिता और वैश्विक संवाद को बढ़ावा देती है, और इसे वैश्विक स्तर पर सशक्तिकरण के लिए बढ़ावा देने की आवश्यकता है.

हिंदी दिवस के मौके पर कार्यक्रम आयोजित

भारत के स्थायी मिशन द्वारा हिंदी दिवस के अवसर पर आयोजित इस कार्यक्रम में भारतीय संसद के कई सदस्य भी उपस्थित थे. इस मौके पर सांसद बीरेंद्र प्रसाद बैश्य ने विभिन्न देशों में हिंदी के बढ़ते प्रभाव और इसकी वैश्विक लोकप्रियता पर चर्चा की.

‘नमस्कार दोस्तों’ से की भाषण की शुरुआत

यूएन के वैश्विक संचार विभाग के निदेशक इयान फिलिप्स ने अपने भाषण की शुरुआत ‘नमस्कार दोस्तों’ से की. उन्होंने हिंदी की वैश्विक पहुंच को प्रभावशाली बताया और बताया कि आज यह 600 मिलियन से ज्यादा लोगों द्वारा बोली जाती है. हिंदी, अंग्रेजी और मंदारिन के बाद दुनिया की तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है. उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि 1949 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में पहली बार हिंदी का उपयोग किया गया था. फिलिप्स ने कहा कि जब कृत्रिम बुद्धिमत्ता का प्रभाव बढ़ रहा है, ऐसे में हिंदी संवाद के एक महत्वपूर्ण माध्यम के रूप में उभरी है.

हिंदी ने संबंधों को दी मजबूती- नेपाल

नेपाल के स्थायी प्रतिनिधि, राजदूत लोक बहादुर थापा ने भी हिंदी की भूमिका पर अपने विचार साझा किए. उन्होंने कहा कि हिंदी ने भारत और नेपाल के बीच संबंधों को मजबूती दी है और दोनों देशों के बीच व्यापार, पर्यटन और सीमा पार व्यापार को बढ़ावा दिया है. थापा ने यह भी कहा कि हिंदी ने शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक विकास जैसे क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा दिया है.

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मॉरीशस के स्थायी प्रतिनिधि जगदीश धरमचंद कुन्जुल ने हिंदी के महत्व पर बात करते हुए बताया कि यह भाषा 19वीं सदी में गिरमिटिया मजदूरों के माध्यम से मॉरीशस पहुंची थी. उन्होंने बताया कि इसके बावजूद हिंदी ने वहां अपनी पहचान बनाई और अब यह न केवल संवाद का साधन है, बल्कि मॉरीशस की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर को बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है.

-भारत एक्सप्रेस



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