अनुरा कुमारा दिसानायके
Sri Lanka New President: आर्थिक संकट से जूझ रहे श्रीलंका को नया राष्ट्रपति मिल गया है. अनुरा कुमारा दिसानायके ने सोमवार को श्रीलंका के 9वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ले ली है. वह पहले वामपंथी नेता हैं, जो श्रीलंका के राष्ट्रपति पद तक पहुंचे हैं. ऐसे में यहां यह जानना जरूरी हो जाता है कि अनुरा कुमारा दिसानायके कौन हैं और श्रीलंका की कमान उनके पास आने के बाद भारत-श्रीलंका के रिश्तों पर कितना प्रभाव पड़ेगा.
दरअसल, श्रीलंका में आर्थिक संकट के कारण 2022 में हुए विद्रोह के बाद यह पहला राष्ट्रपति चुनाव था. इस चुनाव में कुल 39 उम्मीदवार राष्ट्रपति पद के लिए दावेदारी ठोक रहे थे, जिनमें से पूर्व राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे, विपक्षी नेता साजिथ प्रेमदासा और अनुरा कुमारा के बीच मुख्य मुकाबला था.
नेशनल पीपुल्स पावर गठबंधन के प्रमुख हैं दिसानायके
55 वर्षीय दिसानायके नेशनल पीपुल्स पावर (एनपीपी) गठबंधन के प्रमुख हैं, जिसमें उनकी जनता पार्टी विमुक्ति पेरामुना (जेवीपी) और पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट भी शामिल है. उनके गठबंधन को चुनाव में जीत मिली, इसके बाद अनुरा कुमारा को श्रीलंका का नया राष्ट्रपति चुना गया.
आर्थिक संकट के बीच 2022 में बने जनांदोलन का चेहरा
इससे पहले वह साल 2022 में उस वक्त सुर्खियों में आए थे, जब श्रीलंका में आर्थिक संकट के दौरान एक जन विद्रोह हुुआ, वह इस आंदोलन के प्रमुख चेहरा बनकर उभरे. विद्रोह के दौरान उन्होंने जनता की आवाज को बुलंद किया. इसके चलते श्रीलंका के राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे को सत्ता छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा. इस घटनाक्रम के बाद उनकी लोकप्रियता में इजाफा हुआ. यही नहीं, जब श्रीलंका में चुनाव का ऐलान हुआ तो उन्होंने चुनाव अभियान के दौरान देश की अर्थव्यवस्था में सुधार की बात को प्रमुखता के साथ उठाया.
वामपंथ की ओर रहा झुकाव, चीन से नजदीकियां ज्यादा
बताया जाता है कि वामपंथी नेता अनुरा कुमारा की चीन से नजदीकियां हैं, जिसका श्रीलंका-भारत के रिश्तों पर भी असर पड़ सकता है. चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने भारत के साथ चल रही कई योजनाओं को लेकर टिप्पणी की थी और इसे बंद करने की बात कही थी.
पहली बार 1987 में चर्चा में आए थे अनुरा, भारत से थे खफा
बता दें कि अनुरा कुमारा दिसानायके साल 1987 में ही पहली बार चर्चा में आए थे. इस दौरान उनकी पार्टी जनता विमुक्ति पेरामुना (जेवीपी) ने 80 के दशक में श्रीलंका और भारत के बीच शांति समझौते का विरोध किया था. श्रीलंका चुनाव पर भारत की पहले से ही नजर थी. हालांकि, अब ऐसी आशंका जताई जा रही है कि उनके राष्ट्रपति चुने जाने के बाद वहां कुछ बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है.
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— भारत एक्सप्रेस