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दुनिया के सबसे खुशहाल देश में क्यों बढ़ रही है डिप्रेशन की समस्या?

फिनलैंड को पिछले सात सालों से दुनिया का सबसे खुशहाल देश घोषित किया जा रहा है, लेकिन यहां के लोगों में बढ़ते डिप्रेशन और आत्महत्या के मामलों ने इस सूची पर सवाल खड़े कर दिए हैं.

Depression in world's happiest country Finland

पिछले सात सालों से फिनलैंड को दुनिया का सबसे खुशहाल देश घोषित किया जा रहा है. यह घोषणा यूनाइटेड नेशन्स के सस्टेनेबल डेवलपमेंट सॉल्यूशन्स नेटवर्क की वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट द्वारा की जाती है. लेकिन फिनलैंड के लोगों के बढ़ते डिप्रेशन के आंकड़े इस सूची पर सवाल खड़े कर रहे हैं.

कुछ साल पहले तक दुनिया के बड़े नेता और नीति निर्माता यह मानते थे कि जीडीपी, बड़े कारखाने और पार्क जैसी सुविधाएं लोगों की खुशी के लिए काफी हैं. इसी उलझन को सुलझाने के लिए 2012 में यूनाइटेड नेशन्स ने वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट शुरू की. इसका उद्देश्य यह पता लगाना था कि लोगों को असल में खुशहाल क्या बनाता है.

इस सोच की शुरुआत भूटान से हुई. सत्तर के दशक में वहां के राजा ने यह कहकर दुनिया को चौंका दिया था कि उनके लिए जीडीपी से ज्यादा ग्रॉस नेशनल हैप्पीनेस महत्वपूर्ण है. यही विचार आगे चलकर संयुक्त राष्ट्र तक पहुंचा. लगभग 150 देशों में यह सर्वे होता है और फिनलैंड पिछले सात सालों से पहले स्थान पर है. इसके बाद डेनमार्क, नॉर्वे और आइसलैंड जैसे देश आते हैं.

कई देशों ने रिपोर्ट पर उठाए सवाल

लेकिन इस सूची पर कई देशों ने सवाल उठाए हैं. रिपोर्ट में अक्सर भारत को पाकिस्तान और बांग्लादेश से पीछे रखा गया है, जिससे कई लोग सहमत नहीं होते. अमेरिका ने भी इस रिपोर्ट पर आपत्ति जताई है, क्योंकि वहां के लोग आर्थिक रूप से समृद्ध हैं लेकिन फिर भी उनकी रैंकिंग कम है.

हालांकि आंकड़े बताते हैं कि फिनलैंड के लोग खुश हैं, लेकिन हकीकत इसके उलट है. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के अनुसार, यहां करीब 9% लोग गंभीर डिप्रेशन से जूझ रहे हैं. यूरोपीय संघ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, फिनलैंड में आत्महत्या की दर अन्य यूरोपीय देशों से ज्यादा है. 14 से 24 साल के युवाओं में आत्महत्या की घटनाएं सबसे ज्यादा हैं जो चिंता का विषय है.

डिप्रेशन के कारण

फिनलैंड की सरकार ने इस समस्या को समझते हुए एक रिपोर्ट जारी की, जिसका नाम है “इन द शैडो ऑफ हैप्पीनेस”. यह रिपोर्ट बताती है कि यहां के युवा और बुजुर्ग दोनों तनाव में हैं.

अकेलापन: फिनलैंड की संस्कृति में स्वतंत्रता और व्यक्तिगत स्पेस को बहुत महत्व दिया जाता है. यहां के लोग अक्सर परिवार और दोस्तों से दूरी बनाए रखते हैं और अकेले रहना पसंद करते हैं. यह आदत मानसिक तनाव के समय अकेलेपन को और बढ़ा देती है.

लंबी और अंधेरी सर्दियां: यहां सर्दियां बहुत लंबी होती हैं और कई-कई दिनों तक सूरज नहीं निकलता है. इस “पोलर नाइट” के कारण सेरोटोनिन का स्तर गिर जाता है, जिससे डिप्रेशन और सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर (SAD) जैसी समस्याएं बढ़ती हैं.

शहरी और ग्रामीण विभाजन: फिनलैंड में शहरी क्षेत्रों में मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं आसानी से उपलब्ध हैं, लेकिन ग्रामीण इलाकों में संसाधनों की कमी है और लोगों को लाभ के लिए महीनों तक कतार लगनी पड़ती है. ग्रामीण क्षेत्रों में इन सेवाओं की कमी के कारण लोग समय पर सहायता नहीं प्राप्त कर पाते.

शराब का सेवन: फिनलैंड में शराब का सेवन करना एक आम बात है. लेकिन अत्यधिक शराब सेवन मानसिक स्वास्थ्य को और बिगाड़ सकता है और आत्महत्या के जोखिम को बढ़ा सकता है.

फिनलैंड में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं पर सब्सिडी दी जा रही है. सरकार इस बात पर काम कर रही है कि जरूरतमंदों तक मदद सबसे पहले पहुंचे.

फिनलैंड को भले ही सबसे खुशहाल देश का दर्जा मिला हो, लेकिन उसकी सच्चाई उतनी सीधी नहीं. आंकड़ों के पीछे छुपे डिप्रेशन और आत्महत्या के मामलों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. यह रिपोर्ट यह भी दर्शाती है कि खुशी केवल आर्थिक स्थिरता या सामाजिक सुविधाओं पर निर्भर नहीं करती.

-भारत एक्सप्रेस



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