विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) की महासचिव सेलेस्टे साउलो ने मंगलवार को कहा कि पेरिस समझौता (Paris Agreement) गंभीर खतरे में है और दुनिया को ग्रीनहाउस गैसों को कम करने और अक्षय ऊर्जा में बदलाव को गति देने के लिए 2025 को निर्णायक जलवायु कार्रवाई के वर्ष के रूप में मनाना चाहिए.
नई दिल्ली में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) की 150वीं वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित कार्यक्रमों में शामिल हुई साउलो (Celeste Saulo) ने कहा कि यह उत्सव एक ग्रहों के लिए महत्वपूर्ण समय में मनाया जा रहा है. उन्होंने बताया कि 2024 भारत और वैश्विक स्तर पर अब तक का सबसे गर्म वर्ष था.
उन्होंने कहा कि 2024 में भारत को लंबे समय तक अत्यधिक गर्मी का सामना करना पड़ा, जिसका मानव स्वास्थ्य, कृषि, जल आपूर्ति और ऊर्जा आपूर्ति पर बहुत बुरा असर पड़ा.
Compliments to the India Meteorological Department on completing 150 glorious years. They have a pivotal role in national progress.
Took part in the programme at Bharat Mandapam to mark this special occasion. pic.twitter.com/qq8QtNSKbK
— Narendra Modi (@narendramodi) January 14, 2025
2024 पहला वर्ष जिसका तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक
WMO की महासचिव सेलेस्टे साउलो ने कहा, “भारी मानसूनी बारिश रुकावट और मौत का कारण बनी, जैसा कि हमने जुलाई में केरल में दुखद भूस्खलन के रूप में देखा. हाल ही में देश के कई हिस्सों में वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर पर पहुंच गया.” WMO प्रमुख ने कहा कि 2024 ऐसा पहला कैलेंडर वर्ष भी बन जाएगा जिसका औसत तापमान पूर्व-औद्योगिक (Pre-Industrial) औसत से 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक होगा, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि पेरिस समझौता खत्म हो गया है.
2025 को निर्णायक वर्ष के रूप में मनाना चाहिए
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्री जितेंद्र सिंह (Jitendra Singh) की मौजूदगी में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा, “लेकिन जैसा कि हम सभी जानते हैं, यह बहुत गंभीर खतरे की बात है. हमें 2025 को ग्रीनहाउस गैसों को कम करने और नवीकरणीय ऊर्जा में बदलाव को गति देने के लिए निर्णायक जलवायु कार्रवाई के वर्ष के रूप में मनाना चाहिए.”
WMO के छह डेटासेट के विश्लेषण के अनुसार, वैश्विक औसत सतही तापमान 1850-1900 के औसत से 1.55 डिग्री सेल्सियस अधिक था. इसका मतलब है कि ग्रह ने अभी-अभी पहला कैलेंडर वर्ष देखा है, जिसमें वैश्विक औसत तापमान 1850-1900 बेसलाइन से 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक है. यह वह अवधि है जब जीवाश्म ईंधन जलाने जैसी मानवीय गतिविधियों ने जलवायु को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करना शुरू किया था,
हालांकि, पेरिस समझौते में तय किए 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा का स्थायी उल्लंघन 20-30 साल की अवधि में लंबे समय की चेतावनी को दर्शाता है.
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-भारत एक्सप्रेस
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