भारत का संविधान
केंद्र की मोदी सरकार ने साल 2019 में अनुच्छेद 370 (Article 370) के तहत जम्मू कश्मीर (Jammu Kashmir) को मिले विशेष राज्य (Special Status) के दर्जे को खत्म कर इसे दो केंद्रशासित प्रदेशों – जम्मू कश्मीर और लद्दाख (Ladakh) – में विभाजित कर दिया था.
हालांकि उसके बाद से लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची (Sixth Schedule) में शामिल और पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग के साथ लगातार विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. इस मांग को लेकर प्रदर्शनों का नेतृत्व कर रहे ‘लेह अपेक्स बॉडी’ और ‘करगिल डेमोक्रेटिक अलायंस’ नामक संगठनों के प्रतिनिधिमंडल की बीते 4 मार्च को केंद्र सरकार के साथ चौथे दौर की बातचीत बेनतीजा रही है. लद्दाख के नेताओं का कहना है कि इस बैठक में कोई ‘ठोस’ नतीजा नहीं निकला.
अब यह सामने आया है कि मोदी सरकार इस केंद्रशासित प्रदेश को अनुच्छेद 371 (Article 371) के प्रावधानों के तहत सुरक्षा देने पर विचार कर रहा है. मीडिया में आईं खबरों के अनुसार, बीते चार मार्च को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ हुई बैठक में उन्होंने कहा है कि भूमि, नौकरियों और संस्कृति के बारे में उनकी सभी चिंताओं का समाधान संविधान के अनुच्छेद 371 के तहत विशेष प्रावधानों के माध्यम से किया जाएगा.
संविधान के अनुच्छेद 371 में पूर्वोत्तर (North-East) के छह राज्यों सहित 11 राज्यों के लिए विशेष प्रावधान शामिल हैं.
छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग
संविधान के अनुच्छेद 244 के तहत छठी अनुसूची का प्रावधान है. लद्दाख के लोग इसे इस अनुसूची में भी शामिल करने की मांग कर रहे हैं. यह अनुसूची आदिवासी आबादी की रक्षा करती है, जिससे भूमि, सार्वजनिक स्वास्थ्य और कृषि पर कानून बनाने की अनुमति मिलती है. इस अनुसूची में कुछ विधायी, न्यायिक और प्रशासनिक स्वायत्तता के साथ एक राज्य के भीतर स्वायत्त प्रशासनिक प्रभागों के गठन का प्रावधान है.
हालांकि शाह ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि सरकार के लिए लद्दाख क्षेत्र को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग को पूरा कर पाना संभव नहीं होगा.
लद्दाख विधानसभा की मांग
लद्दाख की एक और मांग है. विभाजन के समय जहां जम्मू कश्मीर के लिए विधानसभा का प्रावधान किया गया था, वहीं लद्दाख को बिना विधानसभा वाला केंद्रशाासित प्रदेश बनाया गया है. लद्दाख के लोग यहां विधानसभा की मांग भी कर रहे हैं.
हालांकि ऐसी भनक है कि केंद्र ने उनकी इस मांग को भी ठुकरा दिया है.
विधायिका की मांग को ठुकराते हुए अमित शाह ने लेह और करगिल के प्रतिनिधिमंडलों को आश्वासन दिया कि सरकार हिल काउंसिल के माध्यम से स्थानीय लोगों का प्रतिनिधित्व और भागीदारी सुनिश्चित करेगी. बैठक में शामिल एक नेता ने कहा, ‘उन्होंने (शाह) कहा कि पहाड़ी परिषदों को भी पर्याप्त शक्तियां दी जा सकती हैं और उनका बजट एक राज्य जितना अच्छा होगा.’
सरकार द्वारा नियुक्त एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति पहले से ही क्षेत्र की इन मांगों पर विचार कर रही है. मंत्रालय के सूत्र बताते हैं कि सरकार लद्दाख के लिए संस्कृति, भाषा, भूमि और नौकरियों की सुरक्षा प्रदान करने की इच्छुक है, लेकिन उस तरह से नहीं जैसा यहां के प्रतिनिधि चाहते हैं.
प्रतिनिधिमंडल की मांगों में दो लोकसभा सीटें – करगिल और लेह के लिए एक-एक – देने की भी मांग है. लद्दाख में वर्तमान में एक लोकसभा सीट है. पूर्ववर्ती जम्मू कश्मीर विधानसभा में लद्दाख के चार प्रतिनिधि हुआ करते थे.
क्या है अनुच्छेद 371
संविधान के अनुच्छेद 371 के तहत पूर्वोत्तर के छह राज्यों सहित 11 राज्यों के लिए ‘विशेष प्रावधान’ किए गए हैं. अनुच्छेद 369 से 392 संविधान के भाग XXI (यानी 21) में आते हैं, जिसका शीर्षक ‘अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष प्रावधान’ है.
अनुच्छेद 370 ‘जम्मू और कश्मीर राज्य के संबंध में अस्थायी प्रावधान’ से संबंधित था, वहीं अनुच्छेद 371, 371ए, 371बी, 371सी, 371डी, 371ई, 371एफ, 371जी, 371एच और 371जे दूसरे राज्य (या राज्यों) के संबंध में विशेष प्रावधानों को परिभाषित करते हैं.
अनुच्छेद ‘371आई’ गोवा से संबंधित है, लेकिन इसमें ऐसा कोई प्रावधान शामिल नहीं है, जिसे ‘विशेष’ माना जा सके. 26 जनवरी 1950 को जब संविधान को अपनाया गया, तब से अनुच्छेद 370 और 371 इसका हिस्सा है (जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को अब खत्म कर दिया है). वहीं, अनुच्छेद ‘371ए से 371जे’ तक को बाद में शामिल किया गया था.
अनुच्छेद 371 महाराष्ट्र और गुजरात से संबंधित है, वहीं अनुच्छेद 371ए (13वां संशोधन अधिनियम, 1962) नगालैंड के लिए विशेष प्रावधान सुनिश्चित करता है.
इसके अलावा अनुच्छेद 371बी (22वां संशोधन अधिनियम, 1969) असम, अनुच्छेद 371सी (27वां संशोधन अधिनियम, 1971) मणिपुर और अनुच्छेद 371डी (32वां संशोधन अधिनियम, 1973; आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2014 द्वारा प्रतिस्थापित) में आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के लिए विशेष प्रावधान हैं.
अनुच्छेद 371ई संसद के कानून द्वारा आंध्र प्रदेश में एक विश्वविद्यालय की स्थापना की अनुमति देता है, लेकिन इस भाग के अन्य प्रावधानों के अर्थ में यह कोई ‘विशेष प्रावधान’ नहीं है.
इसी तरह अनुच्छेद 371एफ (36वां संशोधन अधिनियम, 1975) में सिक्किम, अनुच्छेद 371जी (53वां संशोधन अधिनियम, 1986) में मिजोरम, अनुच्छेद 371एच (55वां संशोधन अधिनियम, 1986) में अरुणाचल प्रदेश और अनुच्छेद 371जे (98वां संशोधन अधिनियम, 2012) में कर्नाटक के लिए विशेष प्रावधान करने की शक्ति दी गई है.
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