केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह.
नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के कार्यान्वयन को लेकर छिड़े विवाद के बीच ये सवाल उठाए जा रहे हैं कि नागरिकता के योग्य दूसरे देशों के शरणार्थियों में मुस्लिम समुदाय के लोगों को क्यों नहीं शामिल किया. इतना ही नहीं कुछ ने CAA को मुस्लिम विरोधी तक बताया है.
अब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस महत्वपूर्ण सवाल को स्पष्ट किया है कि सीएए के तहत पारसी और ईसाई पात्र क्यों हैं और मुस्लिम क्यों नहीं हैं?
सीएए नियमों के तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई, जिन्होंने 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत में प्रवेश किया है, नागरिकता के पात्र होंगे. सीएए नियमों के तहत इन समुदायों के शरणार्थी अब इन देशों का वैध पासपोर्ट या वैध वीजा प्रस्तुत किए बिना भारतीय नागरिकता प्राप्त कर सकते हैं.
क्या बोले गृह मंत्री
समाचार एजेंसी एएनआई को दिए एक वीडियो इंटरव्यू में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, ‘इस देश का विभाजन धर्म के आधार पर होना ही नहीं चाहिए था, मगर उस वक्त ऐसा किए गया. जब धर्म के आधार पर विभाजन होता है और वहां जो अल्पसंख्यक हैं, उन लोगों पर ढेर सारे अत्याचार हों, उनका धर्म परिवर्तन कराया जाए, उनकी महिलाओं को अपमानित किया जाए. वो मां-बहन-बेटी के लिए भारत की शरण में आएं, तो क्या उनका यहां नागरिकता का अधिकार नहीं है.’
उन्होंने कहा, ‘और स्वयं कांग्रेस के नेताओं ने आजादी के वक्त सैकड़ों भाषणों में कहा है कि अभी मार-काट चल रही है, अभी जहां कहीं भी हैं, वहां रह जाइए, बाद में जब कभी भी भारत में आएंगे, आपका स्वागत है. बाद में वोट बैंक की राजनीति चालू हो गई, अपीजमेंट (Appeasement) के कारण वो वादा कांग्रेस पार्टी ने कभी पूरा नहीं किया, जो आज नरेंद्र मोदी पूरा कर रहे हैं.’
पाकिस्तान के हिंदू और सिख कहां गए?
हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख, ये ऐसे धर्म हैं, जिनका जन्म भारत में हुआ, पर अगर आप पारसी और ईसाइयों को ला सकते हैं, जो धर्म भारत में नहीं पैदा हुए हैं, तो मुसलमानों को क्यों नहीं, इस सवाल के जवाब में अमित शाह ने कहा, ‘देखिए, मुस्लिम आबादी की वजह से ही वो हिस्सा आज भारत का भाग नहीं है. वो भूमि दी ही इसीलिए गई थी. फिर तो हर देश से जो अव्यवस्था से आए, उसके लिए भारत के दरवाजे खोल दो, भारत कहां बचता है.’
उन्होंने कहा, ‘अखंड भारत का जो हिस्सा थे और जिन पर धार्मिक प्रताड़ना हुई है, उनको शरण देना, मैं मानता हूं कि हमारी नैतिक और संवैधानिक जिम्मेदारी है. इस बात की गहराई में जाइए. जब पाकिस्तान में विभाजन हुआ, तब वहां 23 प्रतिशत हिंदू और सिख थे. आज 3.7 प्रतिशत बचे हुए हैं. कहां गए सारे? इतने सारे लोग तो यहां आए नहीं… उन्हें अपमानित किया गया, उनका धर्म परिवर्तन किया गया, दोयम दर्जे के नागरिक के रूप में इनको रखा गया. कहां जाएंगे ये लोग, क्या देश इस पर विचार नहीं करेगा. देश के राजनीतिक दलों को इस पर विचार नहीं करना चाहिए.’
विभाजन के बाद शरणार्थियों को क्यों लिया गया?
शाह ने कहा, ‘मैं बांग्लादेश की बात करता हूं. 1951 में यहां 22 प्रतिशत हिंदू थे. 2011 की जनगणना में वो 10 प्रतिशत रह गए हैं. कहां गए वो लोग? अफगानिस्तान में 1992 के पहले लगभग 2 लाख सिख और हिंदू थे और आज करीब करीब 500 बच गए हैं. क्या इन लोगों को अपने धार्मिक विश्वास के साथ जीने का अधिकार नहीं है. जब भारत एक था, तब वे हमारे ही थे, हमारे ही भाई-बहन थे. अगर इस थ्योरी को अपना लो तो विभाजन के बाद इतने सारे शरणार्थियों को क्यों लिया. उसका भी तर्क नहीं है फिर तो.’
मुसलमान के अधिकार
धर्म के नाम पर दूसरा मुल्क बना, वहां पर शिया, अहमदी और बलोच भी तो प्रताड़ित हैं, इस सवाल पर गृह मंत्री ने कहा, देखिए, ‘वो प्रताड़ना आंकड़ों के आधार पर इतनी सिद्ध नहीं है और पूरी दुनिया में ये सारा ब्लॉक, मुस्लिम ब्लॉक माना जाता है. शिया, अहमदियों को छोड़िए, मुसलमान को भी अधिकार है, यहां आवेदन देने का अधिकार है. हमारे संविधान ने रास्ता खोला हुआ है. रिफ्यूजी के तौर पर नहीं नागरिकता लेने के लिए अप्लाई कर सकते हैं. भारत की सरकार, सुरक्षा और बाकी पहलुओं पर विचार करने के बाद उस पर निर्णय करेगी. रास्ता किसी के लिए बंद नहीं है.’
क्यों लाया गया CAA
गृह मंत्री शाह ने कहा, ‘ये स्पेशल एक्ट (CAA) इसलिए बनाया है कि ये किसी भी वैध डॉक्यूमेंट के बिना बॉर्डर क्रॉस कर शरण में आए हैं. जिनके पास कोई भी दस्तावेज नहीं है, उनके लिए बाद में रास्ता ढूंढेगे. पर जिनके पास दस्तावेज है, वे मेरे रफ अंदाजे से 85 प्रतिशत से ज्यादा हैं.’
नागरिकता के आवेदन को लेकर उन्होंने कहा, ‘अपील के लिए कोई समयसीमा नहीं रखी गई. सब लोग आराम से कर सकते हैं. आवेदन देश की सभी भाषाओं में है, आप अपनी भाषा में डाउनलोड कर सकते हैं और आपकी समय की अनुकूलता के हिसाब से भारत सरकार आपको इंटरव्यू और डॉक्यूमेंट के ऑडिट के लिए बुलाएगी. इंटरव्यू फेस-टू-फेस होगा. ओरिजिनल डॉक्यूमेंट लेकर आना पड़ेगा.’
सेंकेंड जेनरेशन शरणार्थियों से जुड़े सवाल पर उन्होंने कहा, ‘15 अगस्त 1947 से लेकर 31 दिसंबर 2014 तक जो भी आए हैं वो और उनके बच्चों का भारत में स्वागत है.’
-भारत एक्सप्रेस
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