(सांकेतिक तस्वीर)
साइबर अपराधों में लिप्त अपराधी हर दिन नये ढंग से अपने शिकारों को फँसाने के तरीक़े खोजते रहते हैं। यदि आप जागरूक हैं तो आप इनके जाल में फँसने से बच सकते हैं। यदि आप घबराहट में कुछ ऐसा-वैसा कर बैठते हैं तो आप इनके जाल में आसानी फँस सकते हैं। आज इस कॉलम में साइबर अपराध के एक नये तरीक़े ‘वॉइस क्लोनिंग’ के बारे में बात करेंगे जो आजकल सीधे सादे लोगों को अपना शिकार बना रहा है।
कुछ समय पहले तक साइबर अपराधियों द्वारा ह्वाट्सऐप पर वीडियो कॉल करके लोगों से पैसा ऐंठा जा रहा था। जैसे-जैसे इस तरह के साइबर अपराध के बारे में ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को पता चला तो इन साइबर ठगों के अपराधों में कमी आने लगी। परंतु ‘आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस’ के इस नये दौर में साइबर ठगी के नये तरीक़े भी सामने आने लगे हैं। इनमें एक ताज़ा तरीक़ा है ‘वॉइस क्लोनिंग’। यह एक ऐसी तकनीक है जिससे कि कंप्यूटर द्वारा किसी की भी आवाज़ की नक़ल आसानी से बनाई जा सकती है। आवाज़ की इस नक़ल को पहचान पाना बहुत ही मुश्किल होता है।
कुछ दिन पिछले मुझे मेरे एक मित्र जतिन का घबराहट में फ़ोन आया। उसकी घबराहट का कारण ये था कि ख़ुद को दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच का एक अधिकारी बताने वाला व्यक्ति उसे धमका रहा था। उस व्यक्ति ने जतिन को फ़ोन पर यह कहते हुए धमकाया कि उसका बेटा पुलिस हिरासत में हैं। जब उसने अपने बेटे की गिरफ़्तारी की वजह पूछी तो उसे बताया गया कि उसका बेटा अपने कॉलेज की लड़कियों को अश्लील मेसेज भेजता और उन्हें ब्लैकमेल करता है। चूँकि जतिन का बेटा आजकल के युवाओं की तरह ‘मस्त-मौला’ विचारों का नहीं है इसलिए उसे इस बात पर यक़ीन नहीं हुआ। परंतु फिर भी एक घबराए हुए पिता की तरह जतिन ने भी यह जानना चाहा कि उसका बेटा कौनसे थाने में है और उसे कैसे छुड़ाया जा सकेगा? परंतु तभी किसी कारण से फ़ोन कट गया।
इसी बीच जतिन ने मुझे फ़ोन कर अपनी परेशानी बताई। सबसे पहले मैंने उससे पूछा कि उसका बेटा इस समय कहाँ है? उसने बताया कि वो कॉलेज गया है। मैंने उससे पूछा कि फ़ोन किस नंबर से आया था? क्या फ़ोन उसके बेटे के फ़ोन से आया था? चेक करने पर पता चला कि फ़ोन किसी अनजान नम्बर से आया था। इतना ही नहीं उस नंबर से पहले +92 लगा था, जिससे संदेह हुआ कि यह एक फ्रॉड कॉल है। क्योंकि भारत के सभी फ़ोन नंबरों से पहले +92 नहीं बल्कि +91 लगता है। मैंने जतिन को शांत करते हुए यह बात समझाई कि यदि पुलिस किसी छात्र को गिरफ़्तार कर उसके माता-पिता से बात करती है तो या तो वो थाने के फ़ोन से करेगी या छात्र के ही फ़ोन से या पुलिस अधिकारी अपने फ़ोन से कॉल करेगा जिसके पहले +91 लगा होगा।
इस पर जतिन को कुछ बात तो समझ में आई। लेकिन उसने यह भी कहा कि उस पुलिस अधिकारी ने उसके बेटे की फ़ोन रिकॉर्डिंग के कुछ अंश भी सुनाए हैं, जिसे सुन कर उसे चिंता हुई। इस पर मैंने जतिन से कहा कि क्या उसने अपने बेटे से उसी के फ़ोन पर बात की? तो वो बोला घबराहट में उसने पहला फ़ोन मुझे ही किया। जैसे ही जतिन ने दूसरे फ़ोन से अपने बेटे से बात की तो उसे पता चला कि वो बिलकुल सकुशल है और अपने कॉलेज में ही है। मैंने जतिन को ‘वॉइस क्लोनिंग’ स्कैम के बारे में जो बताया वो आपके साथ साझा करना भी आवश्यक है। उगाही के इस नये ढंग को यदि आप जान लेंगे तो शायद आप भी इन जालसाज़ों का शिकार होने से बच सकेंगे।
‘वॉइस क्लोनिंग’ साइबर ठगों का सबसे ताज़ा हथियार साबित हो रहा है। साइबर ठग आपके फ़ोन पर किसी बैंक, फ़ोन या बीमा कंपनी का अधिकारी बन कर आपसे बात करते हैं। ऐसे में ये आपके साथ हो रही पूरी बात को रिकॉर्ड भी कर लेते हैं। इसके बाद ‘आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस’ की मदद से ‘वॉइस क्लोनिंग’ सॉफ्टवेर में आपकी आवाज़ में आसानी से बदलाव लाकर, आपकी आवाज़ की नक़ल या ‘वॉइस क्लोनिंग’ कर लेते हैं। मतलब आपकी ही आवाज़ में बातचीत का विषय बदल देते हैं। इन साइबर ठगों के पास आपके करीबी रिश्तेदारों के नंबर होना कोई बड़ी बात नहीं है। इसी के चलते वे ‘वॉइस क्लोनिंग’ की मदद से आपकी नक़ली आवाज़ के ज़रिए स्कैम करने में कामयाब हो रहे हैं। इसलिए आप सभी के लिये कुछ बातों को समझना ज़रूरी है।
पहला, यदि आपको किसी अनजान नंबर से ऐसा ‘वॉइस क्लोनिंग’ वाला फ़ोन आए तो पहले यह सुनिश्चित कर लें कि आपके जिस रिश्तेदार के बारे में बात की जा रही है, क्या वो उसी की आवाज़ है? दूसरा, किसी न किसी बहाने से फ़ोन को काट कर अपने उसी रिश्तेदार को फ़ोन कर उससे बात अवश्य करें। तीसरा, यदि कोई भी ख़ुद को पुलिस अधिकारी बताता है तो पहले उस व्यक्ति का पूरा परिचय माँग लें और आधिकारिक फ़ोन नंबर माँग लें। यदि संभव हो तो फ़ौरन उसके दिये परिचय की पुष्टि भी कर लें। कभी भी अनजान नंबर से आने वाली कॉल, ख़ासकर जिस नम्बर से पहले +92 लगा हो उसे न उठाएँ। कॉल करने वाले के लाख कहने पर भी उनकी बातों में न आएँ। अपने बैंक खाते या अन्य ज़रूरी जानकारी को कभी शेयर न करें। ऐसे नंबरों को तुरंत ‘ब्लॉक’ करें। जैसे ही यह पता चले कि आपके साथ ठगी हो सकती हैया आप इनके शिकार हो चुके हैं तो पुलिस को इसकी इत्तला तुरंत दें। आप जानकार रहेंगे तभी तो सुरक्षित रहेंगे।
-भारत एक्सप्रेस
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