अडानी फाउंडेशन की मुहिम से जनजातियों-आदिवासियों को खासा लाभ हो रहा है.
Adani Foundation’s Suposhan project: भारत के सबसे बड़े उद्योगपति गौतम अडानी ने जन-समाज के हित में कई संस्थाएं शुरू कराई हैं, जो भारत के दूर-दराज के कोनों तक आमजन के बीच बदलाव की बयार बहा रही हैं. अडानी फाउंडेशन उन इलाकों में भी लोगों तक पहुंचा है, जहां स्थानीय समुदाय का तकनीक से वास्ता नहीं रहा. भले ही वे आदिवासी इलाके हों या फिर स्थानीय जनजातियां. अडानी ग्रुप की पहल का लक्ष्य कोनों-कोनों तक पहुंचना और स्थानीय समुदायों को आत्मनिर्भर बनने में सक्षम बनाना है. इन पहलों के बीच तालमेल से ऐसे विकास की शुरूआत हो रही है जो टिकाऊ और प्रभावी है.
अडानी फाउंडेशन के संचालक कहते हैं कि वे अब तक देश के 18 राज्यों में ग्रामीण बस्तियों और भीतरी इलाकों में परिवर्तन लाने वाली मुहिम चला चुके हैं. ऐसे इलाके जिनमें गरीबी-भुखमरी के कारण जीना सहज नहीं है, वहां ‘सुपोषण प्रोजेक्ट’ के तहत मदद के अभियान चलाए. सुपोषण प्रोजेक्ट मई 2016 में शुरू किया गया और इसकी स्थापना के पहले वर्ष के दौरान 276 गांवों और 5 वार्डों को कवर करते हुए 10 स्थानों की पहचान की. अगले वर्ष 4 और स्थान जोड़े और कुल 309 गांवों और 5 वार्डों तक पहुंच बनाई.
पिछड़ी-मलिन बस्तियों में समस्याओं को किया जा रहा दूर
‘सुपोषण प्रोजेक्ट’ के बारे में बताते हुए अडानी फाउंडेशन की ओर से बताया गया कि आज वे 1450 गांवों, 5 वार्डों और 85 मलिन बस्तियों में फैले 22 स्थानों पर 15.6 लाख आबादी को सेवा प्रदान कर रहे हैं. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण- 4 (2015-16) के अनुसार, कुपोषण के शिकार हजारों बच्चों और एनीमिया से ग्रस्त पीड़ितों को मदद की जरूरत है. अडानी फाउंडेशन इस पर ध्यान दे रहा है.
अडानी फाउंडेशन ने छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के सुदूर गांव बुड़िया में अनेक ग्रामीणों की मदद की. जिनमें एक कहानी 32 वर्षीय सरिता राजपूत की है, जिसके दो बेटे थे – बड़ा बेटा आर्यन और छोटा ऋषभ था. उनके पति अनिल (35 वर्ष) खेतों में दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करते हैं, और उनकी महीने की कमाई 5,000 से 7,000 रुपये के बीच थी, वो भी कोविड महामारी से पहले. मार्च 2022 में लॉकडाउन के चलते उनको काम मिलना बंद हो गया था और अनिल ने शराब पीना शुरू कर दिया था. लंबे समय तक वित्तीय संकट और उसकी निराशा, जो पहली महामारी लहर के दौरान शुरू हुई, पूरे परिवार के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही थी. उनके बच्चे भुखमरी से जूझने लगे. पड़ोसियों के सामने भी ऐसी ही दिक्कतें आने लगी थीं.
‘सुपोषण संगिनी’ बनकर महिलाओं ने अपना गांव संवारा
बच्चे कुपोषण के शिकार हो रहे थे, तब अडानी फाउंडेशन के ‘सुपोषण संगिनी’ से उन्हें मदद मिली. फाउंडेशन में प्रोजेक्ट को-ऑर्डिनेटर विवेक यादव और सुपोषण अधिकारी शीतल पटेल बताते हैं कि उन्होंने छत्तीसगढ़ में सरिता राजपूत, महाराष्ट्र के नागपुर में संगिनी ज्योत्सना और सीएसआर के सहायक प्रबंधक अविनाश पाठक अब अपने समुदाय के बीच नायक सिद्ध हुए हैं. महाराष्ट्र में पालघर जिले के दहानू ब्लॉक में एक एकीकृत आदिवासी विकास परियोजना तथा टास्क फोर्स का कई लोग हिस्सा बने. इस व्यापक परियोजना का मुख्य उद्देश्य आदिवासी परिवारों के लिए लाभकारी स्वरोजगार के अवसर पैदा करना है. यह अडानी फाउंडेशन और नाबार्ड (पुणे) की वित्तीय सहायता से किया गया, जिसे सतत आजीविका विकास के लिए BAIF संस्थान द्वारा कार्यान्वित किया गया.
वो इलाका जहां पर जनजातीय परिवारों को कम भूमि जोत, मिट्टी का क्षरण, उच्च कृषि इनपुट लागत, कीटों और बीमारियों की समस्याएं, सीमित कर्ज उपलब्धता और प्रतिकूल बाजार की चुनौतियों का सामना करना पड़ता था, अब वहां दिक्कतें काफी कम होती हैं. ऐसा नहीं है कि अडानी फाउंडेशन ने केवल आर्थिक मदद ही की हो, बल्कि शिक्षा और जागरुकता के लिए भी मुहिम छेड़ी हैं. आज देशभर में अनेक अडानी विद्या मंदिर हैं, जहां लाखों बच्चे अपने सुनहरे भविष्य की तैयारी कर रहे हैं.
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