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आरक्षण के अंदर आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, पढ़ें सात जजों की संविधान पीठ ने क्या कहा

Supreme Court on Reservation: पीठ ने अपने फैसले में कहा कि राज्य अनुसूचित जाति और जनजाति को उप-वर्गीकृत कर सकते हैं. साथ ही संविधान पीठ ने SC-ST के भीतर उप-वर्गीकरण को बरकरार रखा है.

Supreme Court

सुप्रीम कोर्ट.

Supreme Court on Reservation: आरक्षण के अंदर आरक्षण देने के लिए एससी/एसटी का उप-वर्गीकरण की वैधता को लेकर सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ ने ऐतिहासिक फैसला दिया है. पीठ ने अपने फैसले में कहा कि राज्य अनुसूचित जाति और जनजाति को उप-वर्गीकृत कर सकते हैं. साथ ही संविधान पीठ ने SC-ST के भीतर उप-वर्गीकरण को बरकरार रखा है. सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा- हम ईवी चिन्नैया मामले में फैसले को खारिज करते हैं.

6:1 की बहुमत से फैसला

सुप्रीम कोर्ट के संवैधानिक पीठ ने 6:1 की बहुमत से यह फैसला सुनाया है. संविधान पीठ ने कहा-अनुसूचित जातियां एक समरूप समूह नहीं हैं और सरकार पीड़ित लोगों को 15% आरक्षण में अधिक महत्व देने के लिए उन्हें उप-वर्गीकृत कर सकती है. पीठ ने कहा कि अनुसूचित जाति के बीच अधिक भेदभाव है. पीठ ने चिन्नैया मामले में 2004 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें अनुसूचित जाति के उप-वर्गीकरण के खिलाफ फैसला सुनाया गया था.

जस्टिस बेला एम त्रिवेदी ने जताई असहमति

हालांकि, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी ने असहमति जताई है. पीठ ने कहा कि एससी के बीच जातियों का उप-वर्गीकरण उनके भेदभाव की डिग्री के आधार पर किया जाना चाहिए. राज्यों द्वारा सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश में उनके प्रतिनिधित्व के अनुभवजन्य डेटा के संग्रह के माध्यम से किया जा सकता है. यह सरकारों की इच्छा पर आधारित नहीं हो सकता. सात जजों की संविधान पीठ में CJI डी वाई चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस बी आर गवई, विक्रम नाथ, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी, जस्टिस पंकज मिथल, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने यह फैसला सुनाया है.

संविधान पीठ 2004 से कर रही थी फैसले की वैधता की जांच

मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने इसका समर्थन करते हुए कहा था कि वह सैकडों वर्षो के भेदभाव से पीड़ित लोगों के लिए सकारात्मक कार्रवाई के रूप में आरक्षण नीति के प्रति प्रतिबद्ध है. बता दें कि संविधान पीठ 2004 के अपने फैसले की वैधता की जांच कर रही थी. जिसमें कहा गया था कि राज्यों के पास कोटा देने के लिए एससी/एसटी को आगे उप-वर्गीकृत करने की शक्ति नहीं है. इससे पहले पांच जजों के संविधान पीठ ने फैसला देते हुए कहा था कि जिन जातियों का आरक्षण का लाभ मिल गया है, उन्हें आरक्षण की श्रेणी से बाहर निकलना चाहिए और मामले को 7 जजों की संविधान पीठ के पास भेज दिया था.

मामले की सुनवाई के दौरान पंजाब के एडवोकेट जनरल ने कहा था कि ब्रिथमार्क दर्शन कि एक बार जब आप एसी परिवार में पैदा हो जाते हैं तो आप एससी बन जाते हैं. मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस गवई ने पूछा है कि इसे उप राज्य के संबंध में एससी माना जा सकता है, और दूसरे राज्य के लिए नहीं. इस पर पंजाब के एडवोकेट जनरल ने कहा था कि मैं ऐसा क्यों कह रहा हूं, अन्यथा यदि हम इसमें से डीम्ड शब्द हटा दें तो यह लेख का अर्थ बदल देगा तो यह पढ़ेगा कि इस संविधान के प्रयोजनों के लिए केंद्र शासित प्रदेशों के उस राज्य के संबंध में एससी होंगे क्यों समझा जाएगा? मैं कोई स्पष्टीकरण नहीं दे सका.

30 सालों तक लागू रहा नियम

बता दें कि 1975 में पंजाब सरकार ने आरक्षित सीटों को दो श्रेणियों में विभाजित करके अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण नीति पेश की थी. एक बाल्मीकि और मजहबी सिखों के लिए और दूसरी बाकी अनुसूचित जाति वर्ग के लिए. यह नियम 30 सालों तक लागू रहा. उसके बाद 2006 में ये मामला पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट पहुंचा और ईवी चित्रैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट 2004 के फैसले का हवाला दिया गया.

पंजाब सरकार की झटका लगा और इस नीति को रद्द कर दिया गया. चित्रैया फैसले में कहा कया था कि एससी श्रेणी के भीतर उप-वर्गीकरण की अनुमति नहीं है क्योंकि यह समानता के आधार का उल्लंघन है. बाद में पंजाब सरकार ने 2006 में बाल्मीकि और मजहबी सिखों को फिर से कोटा दिए जाने को लेकर एक नया कानून बनाया, जिसे 2010 में फिर हाई कोर्ट में चुनौती दी गई. हाई कोर्ट ने सरकार द्वारा बनाई गई नई नीति को रद्द कर दिया. जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था.

जस्टिस बीआर गवई ने क्या कहा?

जस्टिस बीआर गवई ने फैसले में दी गई अपनी राय में कहा कि राज्य को एससी एसटी वर्ग के बीच क्रीमीलेयर की पहचान करने और उन्हें सकारात्मक कार्रवाई (आरक्षण) के दायरे से बाहर निकालने के लिए एक नीति विकसित करनी चाहिए. सच्ची समानता हासिल करने का यही एकमात्र तरीका है. जस्टिस गवई की राय से सहमति जताते हुए जस्टिस विक्रम नाथ ने कहा कि मैं भाई जजों की राय से सहमत हूं. उप-वर्गीकरण के किसी भी अभ्यास को अनुभवजन्य डेटा द्वारा समर्थित किया जाना चाहिए. मैं इस बात से सहमत हूं कि क्रीमी लेयर सिद्धांत जो ओबीसी पर लागू होता है, वह एससी पर भी लागू होता है.

-भारत एक्सप्रेस

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