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भारत के सबसे कम उम्र के क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी, जिन्हें ब्रिटिश सरकार ने 16 साल की उम्र में दी थी फांसी की सजा

खुदीराम और प्रफुल्ल चाकी अलग-अलग भाग निकले. उस समय खुदीराम वैनी स्टेशन के नाम से जाने जाने वाले स्टेशन (अब इसका नाम बदलकर खुदीराम बोस पूसा स्टेशन) तक पहुंचने से पहले 25 मील तक चले.

Khudiram Bose PUSA

खुदीराम बोस (फोटो- सोशल मीडिया)

11 अगस्त 1908 को, भारत के सबसे कम उम्र के क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानियों में से एक, खुदीराम बोस को ब्रिटिश सरकार ने फांसी दे दी थी. वह केवल 18 वर्ष का था. 1889 में बंगाल प्रेसीडेंसी के मिदनापुर जिले में जन्मे खुदीराम बोस जब केवल 6 वर्ष के थे तब उनके माता-पिता की मृत्यु हो जाने के बाद उनकी बड़ी बहन ने एक मां की तरह उनका पालन-पोषण किया था. एक स्कूली छात्र के रूप में भी, खुदीराम स्वतंत्रता आंदोलन की ओर आकर्षित थे.

वह अरबिंदो और सिस्टर निवेदिता (स्वामी विवेकानन्द की शिष्या) से प्रेरित हुए जब उन्होंने क्रमशः 1902 और 1903 में उनके जिले में सार्वजनिक व्याख्यान आयोजित किए. उनमें क्रांति की भावना जागृत हो चुकी थी.

उस समय कितनी थी उम्र

16 साल की उम्र में उन्होंने पुलिस स्टेशनों के पास बम रखे थे और सरकारी अधिकारियों को निशाना बनाया था. खुदीराम ने मजिस्ट्रेट की दिनचर्या और उनके कोर्ट और क्लब के समय को ध्यान में रखते हुए बमबारी की तैयारी की. गाड़ी को देखते ही उसने तुरंत कार्रवाई की और उस पर बम फेंक दिया. इसमें विस्फोट हो गया जिससे यात्रियों की मौत हो गई.और इसके कसूरवार खुदीराम बोस ही थे.

घटना में कौन कौन थे शामिल

खुदीराम और प्रफुल्ल चाकी अलग-अलग भाग निकले. उस समय खुदीराम वैनी स्टेशन के नाम से जाने जाने वाले स्टेशन (अब इसका नाम बदलकर खुदीराम बोस पूसा स्टेशन) तक पहुंचने से पहले 25 मील तक चले. एक चाय की दुकान पर उसे दो सिपाहियों ने देखा. बम विस्फोट की खबर हर जगह पहुंच गई थी और पुलिस को दोनों हमलावरों की तलाश के लिए नोटिस दिया गया था. खुदीराम को सिपाहियों ने पकड़ लिया और काबू कर लिया. प्रफुल्ल चाकी भी भाग गया था, जिसे पुलिस ने पकड़ लिया. इससे पहले कि पुलिस उसे पकड़ पाती, उसने खुद को गोली मार ली. 21 मई 1908 को खुदीराम पर मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी गई.

बचाव पक्ष के वकीलों ने क्या दलीलें रखी

हालांकि बचाव पक्ष के वकीलों ने खुदीराम को हल्की सज़ा दिलाने की पूरी कोशिश की, लेकिन ब्रिटिश न्यायाधीश ने उन्हें मौत की सजा सुनाई. वकीलों ने तर्क दिया था कि ऐसे अन्य लोग भी थे जो हमलों की साजिश रच सकते थे और अदालत से प्रतिवादी की कम उम्र पर विचार करने के लिए भी कहा था. खुदीराम की फांसी के विरोध में पूरा कलकत्ता भड़क उठा.

एक बेहद ही कम उम्र के शहीद लड़के का शव जेल से रिहा होने के बाद, अंतिम संस्कार के जुलूस में हजारों लोग शामिल हुए, जो मालाओं और फूलों के साथ सड़कों पर उमड़ पड़े थे.हालांकि वह आज़ादी के लिए अपने जीवन का बलिदान देने वाले भारत के सबसे युवा और सबसे शुरुआती क्रांतिकारी नेताओं में से एक हैं, लेकिन आज लोग अपेक्षा अनुसार बहुत ही कम लोग खुदीराम बोस और उनके बारे में जानते हैं.

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-भारत एक्सप्रेस

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