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हिंदू परिवार ने मानवता की मिसाल की पेश, मुस्लिम व्यक्ति को ब्रेन-डेड बेटे का लिवर किया दान

मानवता की मिसाल देते हुए एक हिंदू परिवार ने लिवर सिरोसिस से पीड़ित एक दिव्यांग मुस्लिम व्यक्ति की जान बचाने के लिए अपने ब्रेन-डेड बेटे का लिवर दान कर दिया.

मोहम्मद अबरार

मानवता की मिसाल देते हुए एक हिंदू परिवार ने लिवर सिरोसिस से पीड़ित एक दिव्यांग मुस्लिम व्यक्ति की जान बचाने के लिए अपने ब्रेन-डेड बेटे का लिवर दान कर दिया.

सिरोसिस क्या है?

सिरोसिस एक ऐसी स्थिति है जिसमें लिवर पर निशान पड़ जाते हैं और यह हमेशा के लिए क्षतिग्रस्त हो जाता है. सिरोसिस आमतौर पर हेपेटाइटिस बी या सी से होने वाले परिणामों तथा शराब के लगातार सेवन से लीवर को होने वाले नुकसान से होता है.

मोहम्मद अबरार हेपेटाइटिस बी से थें पीड़ित

नई दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल के डॉक्टरों ने मोहम्मद अबरार में हेपेटाइटिस बी की बीमारी का पता लगाया. उनमें पीलिया, जलोदर (द्रव के संचय के कारण पेट में सूजन) और आंतरिक रक्तस्राव सहित लिवर सिरोसिस के लक्षण भी दिखाई दे रहे थे.

अपनी शारीरिक चुनौतियों के बावजूद अबरार ने एक सक्रिय जीवन जिया. अपनी दुकान पर काम करने के साथ सभी सामाजिक गतिविधियों में भाग लिया. जैसे-जैसे उनकी हालत बिगड़ती गई इसका उनके व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन पर बुरा तरह असर पड़ा.

इस मामले में मेडिकल गैस्ट्रोएंटरोलॉजी के चेयरमैन अनिल अरोड़ा ने तत्काल लिवर ट्रांसप्लांट की सिफारिश की. लंबे समय से सिरोसिस, फेफड़े और हृदय संबंधी समस्याओं के कारण अबरार की स्थिति और भी जटिल हो गई, जिससे यह विशेष रूप से उच्च जोखिम वाली सर्जरी बन गई. पोलियो से अबरार के दाहिने अंग में खराबी के कारण सर्जरी भी कठिन हो गई थी, जिसके कारण ऑपरेशन के लिए जगह सीमित थी.

ब्रेन-डेड युवक से मिला जीवन दान

हालांकि, उसी अस्पताल में एक ब्रेन-डेड युवक से उसे नया जीवन मिला. उसके परिवार ने अबरार को बचाने के लिए उसके अंग दान करने का निर्णय लिया, जिससे पता चलता है कि मानवता अक्सर सबसे अप्रत्याशित परिस्थितियों में भी सामने आ सकती है. अबरार को पूरी तरह ठीक होने के बाद अस्पताल में 15 दिन रहने के बाद छुट्टी दे दी गई. डॉक्टर ने कहा कि अबरार फिर से काम पर लौट गया है.

ब्रेन-डेड क्या है?

ब्रेनडेड एक ऐसी बिमारी है जिसमे मरीज का मस्तिष्क और मस्तिष्क स्टेम की कार्यक्षमता पूरी तरह से नष्ट हो जाती है. इसका मतलब है कि मस्तिष्क में कोई गतिविधि नहीं होती है और मस्तिष्क की गतिविधि वापस नहीं आती है.

अंगदान के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने और इसके बारे में आम गलतफहमियों को दूर करने के लिए हर साल 13 अगस्त को विश्व अंगदान दिवस मनाया जाता है. भारत में मृत शरीर से अंग दान की दर बहुत कम है और देश में प्रति दस लाख लोगों पर एक से भी कम है. इसके उलट पश्चिमी देशों में 70-80 प्रतिशत अंग दान होता है.

-भारत एक्सप्रेस



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