Bharat Express

अदम गोंडवी : ‘जन जन के कवि’, जिनकी ‘गुर्राहट’ ने शोषित वर्ग की खामोशी को दी आवाज

नेताओं और अधिकारियों की सांठगांठ, सरकारी मशीनरी में लगा भ्रष्टाचार का जंग और इन सबसे त्रस्त आम इंसान. वह आम इंसान किस चीज को अपना आदर्श मानेगा, जिसकी सुबह-शाम जिंदगी की बुनियादी जरूरतों को तलाशते हुए डूब जाती हों.

Adam Gondvi

अदम गोंडवी (फाइल फोटो)

एक भारतीय कवि जिनके कपड़े अक्सर बहुत साफ नहीं होते थे. धोती-कुर्ते के अलावा गले में सफेद गमछा डालकर वह श्रोताओं के सामने हाजिर होते थे. बात कहने का अंदाज भी ठेठ था, लेकिन वह बात लोगों के दिल तक पहुंचती थी. ऐसा नहीं कि लोगों को लुभाने के लिए उन्होंने कोई खास शैली विकसित की थी. सरल, सहज, बिल्कुल आम आदमी की तरह मुखातिब होने वाली यह शख्सियत थी अदम गोंडवी (Adam Gondvi), जिनका जन्म 22 अक्टूबर को उत्तर प्रदेश के गोंडा में हुआ था.

समाज के दबे कुचले लोगों की आवाज थे गोंडवी

गोंडवी (Adam Gondvi) सिर्फ वेश भूषा में आम आदमी नहीं थे, बल्कि यह उनके अंदर का व्यक्तित्व था जो आम लोगों से स्वाभाविक ही जुड़ा था. वह समाज के दबे कुचले लोगों की आवाज थे और जुबान में वैसा ही फक्कड़ अंदाज था. इसलिए कबीर परंपरा का उन पर गहरा प्रभाव रहा. वे गांव के लोगों की जिंदगी के बारे में बहुत अच्छी तरह से लिखते थे. जैसी लेखनी थी, वैसी ही उनकी आवाज, जिसके बारे में कहा जाता है कि सुनने वाले का कलेजा चीर देती थी.

अदम गोंडवी मुशायरे के मंच पर रंग जमाते थे. उनकी आवाज में आम जन की पीड़ा की अभिव्यक्ति थी और व्यवस्था के खिलाफ गुर्राहट थी. कहा जाता है उनकी शायरी मंच पर न वाह करने देती थी न ही आह लेने देती थी. वह बस चुभन की तरह चुभ जाती थी जिसमें दर्द भी था और आक्रोश भी. इसलिए एक बार अपने गांव का पता बताते हुए अदम गोंडवी ने लिखा है, मेरा गांव वहीं है जहां, “फटे कपड़ों में तन ढ़ाके गुजरता है जहां कोई….”

राजनीति और राजनेताओं पर वह खासकर मुखर थे

राजनीति और राजनेताओं पर वह खासकर मुखर थे. ऐसे ही उन्होंने एक बार लिखा है, “सदन में घूस देकर बच गई कुर्सी तो देखोगे, ये अगली योजना में घूसखोरी आम कर देंगे…..” ऐसे ही नौकरशाही पर भी वह निर्मम थे, “…..हजारों रास्ते हैं सिन्हा साहब की कमाई के मिसेज सिन्हा के हाथों में जो बेमौसम खनकते हैं, पिछली बाढ़ के तोहफे हैं ये कंगन कलाई के.”

ऐसे ही विधायक के घर का वर्णन उन्होंने कुछ इस तरह से किया है, “काजू भुने प्लेट में व्हिस्की गिलास में….पक्के समाजवादी हैं, तस्कर हों या डकैत, इतना असर है खादी के उजले लिबास में…यह बात कर रहा हूं मैं होशो-हवास में.”

नेताओं और अधिकारियों की सांठगांठ, सरकारी मशीनरी में लगा भ्रष्टाचार का जंग और इन सबसे त्रस्त आम इंसान. वह आम इंसान किस चीज को अपना आदर्श मानेगा, जिसकी सुबह-शाम जिंदगी की बुनियादी जरूरतों को तलाशते हुए डूब जाती हों. ऐसे लोगों के दर्द के कुछ इस तरह के शब्दों से अदम गोंडवी ने व्यक्त किया है, “……शबनमी होंठों की गर्मी दे न पाएगी सुकून, पेट के भूगोल में उलझे हुए इंसान को.”

यह भी पढ़ें- कौन हैं बालमणि अम्मा, जिन्हें कहा जाता है ‘मलयालम साहित्य की दादी’, बिना स्कूल गए लिखी थीं 500 से ज़्यादा कविताएं

गोंडा जनपद को अपने साहित्य से पहचान दिलाने वाले गोंडवी के कई गजल संग्रह भी बड़े चर्चित रहे जिसमें ‘धरती की सतह पर’ व ‘समय से मुठभेड़’ मुख्य है. उनकी हिंदी गजलें भारत में बड़ी लोकप्रिय हुई थीं. साल 1998 में उनको ‘दुष्य कुमार पुरस्कार’ भी दिया गया था. 18 दिसंबर, 2011 को जन कवि अदम गोंडवी का लीवर सिरोसिस की बीमारी के कारण निधन हो गया था. अदम गोंडवी नाम उनके माता-पिता ने नहीं दिया था. बचपन में उनका नाम रामनाथ सिंह था. गोंडा के परसपुर में उनका जन्म स्थान गोस्वामी तुलसीदास के गुरु स्थान से जुड़ा है.

-भारत एक्सप्रेस

Also Read