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उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के मायने

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के खिलाफ विपक्षी दलों द्वारा अविश्वास प्रस्ताव लाया जाना राजनीति के उच्च स्तर पर एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम है. हालांकि वास्तविकता यह है कि इस प्रस्ताव के पास सफलता की संभावना बेहद कम है.

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़.

राज्यसभा के सभापति और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को लेकर हाल ही में एक गहरी राजनीतिक बहस शुरू हुई है. कांग्रेस और उसके सहयोगी विपक्षी दलों ने उन्हें संसद की कार्यवाही में पक्षपाती और असंवैधानिक तरीके से आचरण करने का आरोप लगाया है. खासकर जॉर्ज सोरोस के मुद्दे पर उनके रुख को लेकर इंडिया गठबंधन के नेता बहुत नाराज हैं.

इस प्रस्ताव के जरिये विपक्ष ने जगदीप धनखड़ के खिलाफ तर्क दिया है कि वे सरकार के पक्ष में कार्य कर रहे हैं. अब यह देखना होगा कि विपक्ष इस प्रयास में सफल हो पाता है या नहीं, क्योंकि राज्यसभा में तो एनडीए का बहुमत है ही, लोकसभा में भी उसके पास पर्याप्त बहुमत है.

जॉर्ज सोरोस का मुद्दा


बीते सोमवार (9 दिसंबर) को राज्यसभा में जॉर्ज सोरोस का मुद्दा प्रमुख रूप से उठा और इस मुद्दे ने कांग्रेस सहित विपक्षी दलों को राज्यसभा के सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए प्रेरित किया. बीजेपी ने जॉर्ज सोरोस के कांग्रेस से कथित संबंधों का आरोप लगाया, जबकि कांग्रेस ने इस आरोप का विरोध करते हुए इसे राजनीति से प्रेरित बताया. विपक्षी दलों का कहना था कि धनखड़ ने सदन में इस मुद्दे पर जिस तरह से पक्षपाती रवैया अपनाया, वह स्वीकार्य नहीं था और इससे संसद की कार्यवाही का उद्देश्य ही प्रभावित हुआ.

विपक्ष का आरोप: पक्षपाती रवैया

कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने सार्वजनिक रूप से आरोप लगाया कि सभापति धनखड़ का आचरण अत्यधिक पक्षपाती था और उन्होंने विपक्ष की आवाज को दबाने का प्रयास किया. इस आरोप के बाद कांग्रेस और इंडिया गठबंधन के अन्य दलों ने उनके खिलाफ औपचारिक अविश्वास प्रस्ताव तैयार किया. इस प्रस्ताव पर 60 सांसदों ने हस्ताक्षर किए, जिसमें तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी और अन्य विपक्षी दल शामिल हैं. विपक्ष का यह मानना है कि धनखड़ ने हमेशा सत्ता पक्ष का पक्ष लिया और विपक्ष की आलोचनाओं को अनदेखा किया.

अविश्वास प्रस्ताव का राजनीतिक निहितार्थ


विपक्षी दलों का यह कदम एक अप्रत्याशित और साहसिक राजनीतिक निर्णय के रूप में देखा जा रहा है, लेकिन इस प्रस्ताव के सफल होने की संभावना कम है. राज्यसभा में एनडीए के पास 115 से अधिक सांसद हैं, जो इस प्रस्ताव के खिलाफ मतदान करने के लिए पर्याप्त संख्या में हैं. इसके बावजूद, विपक्षी दल इसे एक राजनीतिक संदेश के रूप में देख रहे हैं, जिससे वे सरकार की आलोचना कर सकें और यह दर्शा सकें कि वे सत्ता के दबाव के खिलाफ खड़े हैं. ये अलग बात है कि उपराष्ट्रपति जैसे सम्मानित पद पर बैठे व्यक्ति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश होना ही अपने आप में एक बड़ी बात है और जगदीप धनखड़ की छवि को इससे बहुतत नुकसान होना तय है.

संविधानिक प्रावधान और प्रक्रिया

भारत के संविधान के अनुच्छेद 67(बी) में उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति को हटाने की प्रक्रिया स्पष्ट रूप से परिभाषित की गई है. इसके तहत राज्यसभा में उनके खिलाफ प्रस्ताव लाने के लिए कम से कम 50 सदस्य हस्ताक्षर कर सकते हैं, जिसके बाद यह प्रस्ताव राज्यसभा में रखा जाता है. इस प्रस्ताव को पारित करने के बाद लोकसभा से भी इसे अनुमोदन प्राप्त करना आवश्यक है, क्योंकि उपराष्ट्रपति का पद राज्यसभा के सभापति के रूप में भी कार्य करता है. एनडीए के पास वर्तमान में दोनों सदनों में बहुमत है. ऐसे में इस प्रस्ताव के पारित होने की संभावना बहुत कम है.

धनखड़ के खिलाफ आरोप: राजनीतिक और व्यक्तिगत


राज्यसभा के सभापति पर यह आरोप लंबे समय से लगते रहे हैं कि वे सत्ता पक्ष की ओर झुके हुए हैं, खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चल रही सरकार के प्रति उनकी निष्ठा पर सवाल उठाए गए हैं. विपक्षी दलों का कहना है कि धनखड़ ने हमेशा सत्ता पक्ष के पक्ष में कार्यवाही की है और विपक्ष के सदस्यों को अपनी बात रखने का पर्याप्त अवसर नहीं दिया. इस प्रकार, विपक्षी दलों का यह मानना है कि उनका आचरण संसदीय लोकतंत्र के सिद्धांतों के खिलाफ है और इसी कारण से उन्हें पद से हटाने का प्रयास किया जा रहा है.

जॉर्ज सोरोस का विवाद: भारतीय राजनीति में विदेशी प्रभाव

जॉर्ज सोरोस का नाम भारतीय राजनीति में कई बार विवादों में रहा है. उनकी फाउंडेशन और उनकी सक्रियता पर सवाल उठाए जाते रहे हैं, खासकर जब से उन्होंने भारत में व्यापारिक और राजनीतिक मुद्दों पर टिप्पणी की है. भाजपा और उसकी समर्थक मीडिया ने आरोप लगाया है कि सोरोस और कांग्रेस के बीच संबंध भारत की राजनीति में विदेशी हस्तक्षेप को बढ़ावा देते हैं. कांग्रेस ने इन आरोपों को सिरे से नकारा किया है, लेकिन यह मुद्दा राज्यसभा में तूल पकड़ चुका है.


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क्या होगा अब आगे

जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव राजनीति के उच्च स्तर पर एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम है. विपक्षी दलों का यह प्रयास संसदीय लोकतंत्र और उनकी आलोचनाओं की आवाज को जिंदाबाद रखने के लिए प्रतीकात्मक कदम है, लेकिन वास्तविकता यह है कि इस प्रस्ताव के पास सफलता की संभावना बेहद कम है.

एनडीए का बहुमत इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर देगा. फिर भी, यह घटनाक्रम दर्शाता है कि राजनीति में संघर्ष केवल सत्ता के पक्ष और विपक्ष के बीच ही नहीं, बल्कि संसदीय प्रक्रियाओं और सिद्धांतों के संरक्षण के लिए भी होता है. इसकी कोई उम्मीद नहीं है कि जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित हो पाएगा, लेकिन यह भी तय है कि जगदीप धनखड़ की पहचान जरूर इसी बात के लिए होगी कि उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आया था.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक-सामाजिक चिंतक हैं)



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