दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि किराएदार को यह अधिकार नहीं है कि वह मकान मालिक को अपनी संपत्ति के उपयोग के बारे में निर्देश दे. अदालत ने स्पष्ट किया कि किराएदार संपत्ति के बेहतर उपयोग के बारे में मकान मालिक को सलाह नहीं दे सकता. इस फैसले के साथ ही अदालत ने किराएदार को छह महीने में संपत्ति खाली करने का आदेश दिया.
किराएदार के खिलाफ मकान मालिक की याचिका पर कोर्ट का निर्णय
न्यायमूर्ति तारा वितस्ता गंजू ने यह फैसला किराएदार को बेदखल करने के लिए दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए सुनाया. उन्होंने कहा कि किराएदार का यह अधिकार नहीं है कि वह मकान मालिक को यह बताए कि उसकी संपत्ति का किस तरह से उपयोग किया जाना चाहिए. अदालत ने कहा कि मकान मालिक को ही अपनी संपत्ति के उपयोग के बारे में निर्णय लेने का अधिकार है, क्योंकि वह अपनी आवश्यकताओं को सबसे बेहतर ढंग से समझता है.
मकान मालिक के स्वास्थ्य और पारिवारिक स्थिति का हवाला
मकान मालिक ने याचिका में कहा था कि उसकी स्वास्थ्य समस्याओं के कारण उसे नर्सिंग स्टाफ और अपनी तलाकशुदा बेटी को घर में रखने के लिए स्थान की आवश्यकता है. हालांकि, किराएदार ने इस बात को नकारते हुए कहा कि मकान मालिक के पास अपने परिवार और कर्मचारियों के लिए पर्याप्त जगह है.
निचली अदालत के फैसले को हाई कोर्ट ने खारिज किया
निचली अदालत ने मकान मालिक की दलीलों को खारिज करते हुए किराएदार के पक्ष में फैसला सुनाया था, यह कहते हुए कि मकान मालिक के स्वास्थ्य संबंधी दावों के लिए पर्याप्त प्रमाण नहीं थे. लेकिन दिल्ली हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले से असहमति जताई और कहा कि मकान मालिक ने अपने दावों को साबित करने के लिए पर्याप्त दस्तावेज प्रस्तुत किए थे. इनमें मेडिकल रिकॉर्ड, याचिकाकर्ता और उसकी पत्नी की तस्वीरें, तलाक का आदेश और अस्थायी रोजगार प्रमाणपत्र शामिल थे.
किराएदार को छह महीने का समय दिया गया
अदालत ने किराएदार को आदेश दिया कि वह छह महीने के भीतर संपत्ति को खाली कर दे और मकान मालिक को शांतिपूर्वक कब्जा वापस कर दे.
यह भी पढिए: उत्तराखंड के CM पुष्कर सिंह धामी का ऐलान- जनवरी 2025 से लागू होगा Uniform Civil Code
इस तरह की अन्य खबरें पढ़ने के लिए भारत एक्सप्रेस न्यूज़ ऐप डाउनलोड करें.