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ध्वस्त हो रहा है बद्रीनाथ धाम और हेमकुंड साहिब का अंतिम गेटवे जोशीमठ!

वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के भूविज्ञानी डॉ विक्रम गुप्ता कहते हैं कि जोशीमठ में धसाव की समस्या दशकों पुरानी है. शहर में अव्यवस्थित विकास से लेकर बड़ी परियोजनाएं भी सकती हैं.

joshimath

जोशीमठ के मकानों में दरारें (फोटो- सोशल मीडिया)

यूं तो पर्यटन को किसी भी इलाके में आर्थिक समृद्धि का महत्वपूर्ण जरिया माना जाता है. लेकिन देव भूमि उत्तराखंड में पवित्र बद्रीनाथ धाम और हेमकुंड साहिब पहुंचने का अंतिम पड़ाव जोशीमठ, पर्यटकों की बढ़ती संख्या और प्रकृति के प्रतिकूल हो रहे विकास के चलते जमीन में धंस रहा है. पर्यटकों की बढ़ती तादाद के कारण हो रहे खतरनाक व्यावसायिक निर्माण और विकास से जुडी कई परियोजनाओं को इसका जिम्मेदार माना जा रहा है. सरकारी उदासीनता का आलम यह है कि पांच दशक पहले इसका संकेत मिलने के बावजूद तमाम राजनेता और नौकरशाह आंख बंद किए बैठे रहे.

कहां मौजूद है जोशीमठ

ऋषिकेश-बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग (NH 7) पर स्थित करीब 25 हजार की आबादी वाला शहर जोशीमठ पवित्र बद्रीनाथ धाम, हेमकुंड साहिब, पर्यटन स्थल औली, फूलों की घाटी और अन्य ट्रेकिंग मार्गों पर जाने वाले यात्रियों के लिए एक महत्वपूर्ण पड़ाव है. यह शहर विष्णु प्रयाग के दक्षिण-पश्चिम में ई-डब्ल्यू रनिंग रिज पर स्थित है. जो धौली गंगा और अलकनंदा नदियों का संगम भी है. यह भारत-चीन सीमा पर अग्रिम चौकियों का केंद्र भी कारण सामरिक महत्व भी रखता है.

लापरवाह व्यवस्था से बढ़ रहा संकट

जोशीमठ शहर भू स्खलन वाले घने आवरण पर स्थित है. यह क्षेत्र लंबे समय से धीरे-धीरे डूब रहा है और औपचारिक रूप से 1976 में मिश्रा समिति द्वारा पहली बार इसकी सूचना दी गई थी. मगर हैरानी की बात है कि करीब पांच दशक बाद भी सरकार या प्रशासन ने इस पर ध्यान नहीं दिया. यही वजह है कि निरंतर दुश्वार हो रहे हालात से जुडी कोई अध्ययन रिपोर्ट या वैज्ञानिक रूप से मामलों की समीक्षा के तहत तैयार किया गया ऐसा कोई डाटा मौजूद नहीं है, जो हालत का आंकलन करने में मदद कर सके.

2020 से बढ़ा संकट

लम्बे समय के बाद साल 2020 में जोशीमठ की इमारतों में दरार आने का सिलसिला शुरू हुआ था. जो फरवरी 2021 में बरसात के चलते आई बाढ़ के कारण तेजी से बढ़ने लगा. स्थिति इतनी भयावह हो गई कि शहर की करीब 559 इमारतों में आई दरार भयानक तरीके से गहराने लगी है. जिसके चलते चमोली प्रशासन ने दो होटलों को बंद करा दिया है.

सितंबर में हुआ था सर्वे

इसी साल सितंबर में उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के तत्कालीन कार्यकारी निदेशक डॉ पीयूष रतौला के नेतृत्व में गठित विशेषज्ञों की टीम ने यहां एक सर्वे किया था. जिसमे पता लगा कि घाटी डूबती जा रही है. खराब सीवरेज, वर्षा जल और घरेलू अपशिष्ट जल के जमीन में रिसने से मिट्टी में उच्च छिद्र-दबाव की स्थिति पैदा हो गई. जिससे भूमि की सतह कट जाती है और पहाड़ी ढलान पर अस्थिरता बढ़ जाती है. पिछली बाढ़ ने धौली गंगा में आए मलबे के कारण एकत्र हुए पानी की भारी मात्रा ने विष्णु प्रयाग में अलकनंदा के बाएं किनारे के साथ कटाव को बढ़ा दिया. जोशीमठ शहर पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा. इसी के साथ भूकंपीय गतिविधियों और तेजी से बढ़ रहे निर्माण से भू-धंसाव हो रहा है. इतना ही नहीं कई जगह घरेलू निर्माण की गुणवत्ता बहुत खराब मिली।

विनियमित विकास

समिति ने सुझाव दिया था कि जोशीमठ के रवि ग्राम, सुनील और गांधीनगर में सभी निर्माण गतिविधियों पर रोक लगाई जाए और जरुरत पड़े तो परिवारों को वैकल्पिक सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित किया जाए. निर्माण और अन्य बुनियादी ढांचे के संबंध में नींव की उचित गहराई के लिए राष्ट्रीय भवन संहिता में निर्धारित निर्देशों का कड़ाई से पालन कराया जाए. इसके अलावा अनुशंसा की गई कि जोशीमठ शहर में धंसने की समस्या पर योजना बनाने और विस्तृत जांच के लिए एक समिति गठित की जाए. साथ ही क्षेत्र में हो रही विकासात्मक गतिविधियों को यथासंभव सीमित किया जाए. इसके अलावा इस तरह की गतिविधियों के पहले जोखिम का विधिवत मूल्यांकन भी किया जाना चाहिए.

विकास योजनाओं पर सवाल

स्थानीय निवासी संभावित आपदा के लिए तपोवन-विष्णुगाड हाइड्रोलिक पावर प्रोजेक्ट के चलते जोशीमठ के नीचे बनाए गए टनल और हेलांग-विष्णुप्रयाग बाईपास के निर्माण के कारण हुई खुदाई को समस्या का कारण ठहरा रहे हैं. जबकि अध्ययन में यह भी बात सामने आई है कि शहर के ड्रेनेज सिस्टम में खामी और अलकनंदा नदी के साथ प्रोटेक्शन वाल का अभाव भी समस्या का बड़ा कारण है.

क्या कहते हैं विशेषज्ञ

वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के भूविज्ञानी डॉ विक्रम गुप्ता कहते हैं कि जोशीमठ में धसाव की समस्या दशकों पुरानी है. शहर में अव्यवस्थित विकास से लेकर बड़ी परियोजनाएं भी शामिल हो सकती हैं, जिसमें सरकारी परियोजनाएं भी हैं. इसके लिए गहन अध्ययन संभावित खतरों का आंकलन कर एक सुदृढ़ योजना पर काम करने की जरुरत है. किसी भी तरह की लापरवाही खतरनाक साबित हो सकती है.

हर संभव कोशिश की जाएगी

चमोली के जिलाधिकारी हिमांशु खुराना कहते हैं कि हम स्थिति का आंकलन कर रहे हैं. इसके लिए योजना रिपोर्ट तैयार की जाएगी. चूंकि उसे लागू करने का काम जिला स्तर पर संभव नहीं है तो शासन की मदद ली जाएगी. फिलहाल हम लोगों को जागरूक कर रहे हैं कि आपात स्थिति में वह क्या कदम उठाएं. जरुरत पड़ी तो प्रभावित लोगों को वैकल्पिक सुरक्षित स्थानों पर भी स्थानांतरित किया जाएगा.

-भारत एक्सप्रेस



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