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इस स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के पोते ने संभाल के रखा है बापू का चश्मा… आजादी से जुड़े डाक टिकट को लेकर सुनाए दिलचस्प किस्से

वह कहते हैं कि मुझे डाक टिकट जमा करने का शौक बचपन से है. मेरी खास दिलचस्पी देश के स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन और इसके नायकों पर आधारित डाक टिकट जुटाने में है.

Bapu's glasses

फोटो-सोशल मीडिया

Freedom Movement: स्वतंत्रता दिवस यानी 15 अगस्त को लेकर पूरे देश में उत्साह का माहौल है. देश भर में कल को लेकर तैयारी तेज गति से आगे बढ़ रही है. एक दिन पहले से ही जगह-जगह देश भक्ति गाने गूंजने लगे हैं. तो वहीं आजादी के दिनों से जुड़े तमाम किस्से-कहानियां भी सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है. इसी क्रम में इंदौर के एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के पोते की खबर सामने आ रही है जिन्होंने आज भी बापू का चश्मा संजोकर रखा है.

ये तो सभी जानते हैं कि देश की आजादी के आंदोलन में महात्मा गांधी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी तो वहीं स्वतंत्रता संग्राम के इस पोते ने बापू और ब्रितानी राज का अंत करने वाले अन्य राष्ट्रीय नायकों पर आधारित 1,000 से ज्यादा डाक टिकट जुटा कर रखे हुए हैं. इस व्यक्ति के नायाब संग्रह में महात्मा गांधी का वह चश्मा भी है जो बापू ने उनके दादा को उपहार के तौर पर दिया था.

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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कन्हैयालाल खादीवाला के पोते आलोक खादीवाला (53) ने मंगलवार को न्यूज एजेंसी पीटीआई-भाषा को बताया, मुझे डाक टिकट जमा करने का शौक बचपन से है. मेरी खास दिलचस्पी देश के स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन और इसके नायकों पर आधारित डाक टिकट जुटाने में है. वह कहते हैं कि उनके पास वर्ष 1947 में देश के आजाद होने से लेकर अब तक जारी 1,000 से ज्यादा डाक टिकट हैं जो स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन, इसके नायकों और राष्ट्रीय प्रतीकों पर आधारित है.

उन्होंने बताया कि ये डाक टिकट जवाहरलाल नेहरू, सुभाषचंद्र बोस, भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, चंद्रशेखर आजाद और लक्ष्मीबाई जैसी हस्तियों के मातृभूमि के प्रति योगदान को नमन करने के लिए गुजरे बरसों में जारी किए गए हैं. वह आगे कहते हैं कि उनके संग्रह में भारतीय डाक टिकटों के अलावा वे डाक टिकट और सिक्के भी हैं जो महात्मा गांधी और अन्य राष्ट्रीय नायकों पर संयुक्त राष्ट्र, ब्रिटेन, अमेरिका, जर्मनी, इंडोनेशिया और दूसरे देशों ने जारी किए हैं.

कोविड के बाद बदल गए हैं हालात

खादीवाला बताते हैं कि कोविड-19 महामारी से पहले डाक टिकट संग्राहक डाक टिकटों का नि:शुल्क आदान-प्रदान करते थे, लेकिन इस महामारी के कारण डिजिटलीकरण को काफी बढ़ावा मिलने से अब हालात काफी बदल गए हैं. वह कहते हैं कि कोविड-19 के प्रकोप के बाद कागज का इस्तेमाल कम होता जा रहा है और डाक टिकट जुटाना खासा महंगा शगल बन गया है क्योंकि दुर्लभ डाक टिकटों के बदले ऊंची कीमत मांगी जाने लगी है.

बापू ने दादा को भेंट किया था चश्मा

वह कहते हैं कि महात्मा गांधी का वह चश्मा भी उन्होंने बड़े ही जतन के साथ संजो कर रखा है. वह कहते हैं कि बापू ने उनके दादा कन्हैयालाल खादीवाला को ये चश्मा भेंट किया था. उन्होंने आगे कहा कि वर्ष 1947 में भारत की आजादी के बाद जवाहरलाल नेहरू की अगुवाई में बनी सरकार ने मेरे दादा को राजस्थान के अजमेर का प्रभारी बनाकर वहां भड़के सांप्रदायिक दंगे को शांत करने भेजा था. अमन कायम होने के बाद वह महात्मा गांधी को अजमेर के हालात से अवगत कराने दिल्ली गए थे. इस दौरान बापू ने मेरे दादा को अपना चश्मा भेंट किया था.

-भारत एक्सप्रेस

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