
फोटो: ईवीएम से वोटिंग (प्रतीकात्मक तस्वीर)

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने पिछले दिनों एक बयान देकर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) पर फिर से सवाल खड़े कर दिये हैं. उन्होंने अपने बयान में कहा कि “चुनावों के लिए सबसे सुरक्षित माध्यम बैलट पेपर ही है.” राष्ट्रपति ट्रम्प ने टेक्नोलॉजी दिग्गज एलोन मस्क के साथ हुई बातचीत का हवाला देते हुए कहा कि मस्क का भी यही मानना है कि “कंप्यूटर वोटिंग के लिए नहीं है.” ट्रंप के बैलेट पेपर के समर्थन के बयान पर भारत में लगभग सभी विपक्षी दलों ने खूब शोर मचाना शुरू कर दिया. कांग्रेस लंबे समय से चुनाव में बैलेट पेपर की वापसी की मांग कर रही है. कांग्रेस समेत कई विपक्षी दल लगातार ईवीएम से चुनाव में हेरफेर का आरोप लगाते रहे हैं. ऐसे में अमेरिका जैसे देश के राष्ट्रपति के बयान ने तो आग में घी डालने का काम किया है.
जब भी कभी देश में चुनाव होते हैं तो ईवीएम फिर से चर्चा में ज़रूर आती है. चुनावों के बाद सत्ता परिवर्तन होगा या नहीं होगा यह तो नतीजों के बाद ही पता चलता है. परंतु बीते कुछ चुनावों में यह देखा गया है कि इलाक़े की जनता की नाराज़गी के बावजूद वहाँ के मौजूदा विधायक या सांसद ने पिछले चुनावों के मुक़ाबले काफ़ी अधिक संख्या से जीत हासिल की. ऐसे में चुनावी मशीनरी पर सवाल खड़े होना ज़ाहिर सी बात है. जो भी नेता हारता है वो ईवीएम या चुनावी मशीनरी को दोषी ठहराता है.
ऐसा नहीं है कि किसी एक दल के नेता ही ईवीएम की गड़बड़ी या उससे छेड़-छाड़ का आरोप लगाते आए हैं. इस बात के अनेकों उदाहरण हैं, जहां हर प्रमुख दलों के नेताओं ने कई चुनावों के बाद ईवीएम में गड़बड़ी का आरोप लगाया है. चुनाव आयोग की बात करें तो वो इन आरोपों का शुरू से ही खंडन कर रहा है. आयोग के अनुसार ईवीएम में गड़बड़ी की कोई गुंजाइश ही नहीं है. 1998 में दिल्ली, राजस्थान और मध्य प्रदेश के विधान सभा की कुछ सीटों पर ईवीएम का इस्तेमाल हुआ था. परंतु 2004 के आम चुनावों में पहली बार हर संसदीय क्षेत्र में ईवीएम का पूरी तरह से इस्तेमाल हुआ. 2009 के चुनावी नतीजों के बाद इसमें गड़बड़ी का आरोप भाजपा द्वारा लगा. गौरतलब है कि दुनिया के 31 देशों में ईवीएम का इस्तेमाल हुआ परंतु ख़ास बात यह है कि अधिकतर देशों ने इसमें गड़बड़ी कि शिकायत के बाद वापस बैलट पेपर के ज़रिये ही चुनाव किये जाने लगे.
किसी भी समस्या की शिकायत करने से उसका हल नहीं खोजा जाता. परंतु जब शिकायत के साथ समाधान का सुझाव भी दिया जाए तो उस पर गौर करना चाहिए. 2023 में मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्य मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह ने विधान सभा चुनावों में ईवीएम की गड़बड़ी पर आरोप लगाए और उन्हें रोकने के लिए सुझाव भी दिया. सिंह ने आरोप लगाया कि मध्य प्रदेश में ईवीएम के ट्रायल के दौरान इसमें गड़बड़ी पायी गई. उन्होंने केंद्रीय चुनाव आयोग को सुझाव दिया कि यदि ईवीएम से निकलने वाली VVPAT की पर्ची को मतदाता को दे दिया जाए और इन पर्चियों को अलग से रखी मतपेटी में डाल दिया जाए. तो न सिर्फ़ मतदाता को इस बात की संतुष्टि हो जाएगी कि उसके द्वार चुने गये उम्मीदवार को ही उसका वोट मिला. मशीनों से किसी भी तरह की छेड़छाड़ नहीं हुई. इसके साथ ही मतगणना के पहले ऐसी किसी भी दस पेटियों के वोट गिन लिए जाएँ और बाद में उनका मिलान काउंटिंग यूनिट के साथ कर लिया जाए. यदि नतीजे मेल खाते हैं तो काउंटिंग यूनिट के नतीजे को घोषित कर दिया जाए. दिग्विजय सिंह के इस सुझाव पर सोशल मीडिया पर हज़ारों प्रतिक्रियाएँ आई और अधिकतर लोगों ने इस सुझाव को व्यावहारिक माना है.
जब भी कभी कोई प्रतियोगिता होती है तो उसका संचालन करने वाले शक के घेरे में न आएँ इसलिए उस प्रतियोगिता के हर कृत्य को सार्वजनिक रूप से किया जाता है. आयोजक इस बात पर ख़ास ध्यान देते हैं कि उन पर पक्षपात का आरोप न लगे. इसीलिए जब भी कभी आयोजकों को कोई सुझाव दिये जाते हैं तो यदि वे उन्हें सही लगें तो उसे स्वीकार लेते हैं. ऐसे में उन पर पक्षपात का आरोप नहीं लगता. ठीक उसी तरह एक स्वस्थ लोकतंत्र में होने वाली सबसे बड़ी प्रतियोगिता चुनाव हैं. उसके आयोजक यानी चुनाव आयोग को उन सभी सुझावों को खुले दिमाग़ से और निष्पक्षता से लेना चाहिए. चुनाव आयोग एक संविधानिक संस्था है, इसे किसी भी दल या सरकार के प्रति पक्षपात होता दिखाई नहीं देना चाहिए. यदि चुनाव आयोग ऐसे सुझावों को जनहित में लेती है तो मतदाताओं के बीच भी एक सही संदेश जाएगा, कि चाहे ईवीएम पर गड़बड़ियों के आरोप लगें पर चुनाव आयोग किसी भी दल के साथ पक्षपात नहीं करता.
जहां तक ईवीएम पर एक बार फिर से खड़े हुए विवाद की बात है तो सभी राजनैतिक दलों को इस बात को गंभीरता से लेना चाहिए. सभी राजनैतिक दलों को एकजुट हो कर अमरीकी राष्ट्रपति के ताज़ा बयान के चलते चुनाव आयोग के पास एक प्रस्ताव लेकर जाना चाहिए और आगामी विधान सभा चुनावों में ईवीएम के बजाय बैलट पेपर से चुनाव की माँग करनी चाहिए. यदि यह संभव न हो और चुनाव आयोग को ईवीएम की गुणवत्ता और उसकी कार्य पद्धति पर पूरा विश्वास है तो उसे कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह के सुझाव पर एक प्रयोग करा लेना चाहिए. ऐसा प्रयोग करने से दूध का दूध और पानी का पानी सामने आ जाएगा. इतना ही नहीं भारत जैसे मज़बूत लोकतंत्र को और मज़बूती भी मिलेगी.
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