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पायलटों की थकान और तनाव को गंभीरता से लें

पायलट थकान एक ऐसी स्थिति है जिसमें लंबे समय तक काम करने, अनियमित कार्यसूची, नींद की कमी, और मानसिक दबाव के कारण पायलट शारीरिक और मानसिक रूप से थक जाते हैं.

pilot fatigue
Edited by Akansha

*लेखक दिल्ली स्थित कालचक्र समाचार ब्यूरो के संपादक हैं

कुछ दिन पहले एयर इंडिया के एक 28 वर्षीय पायलट की दिल्ली हवाई अड्डे पर लैंड करते ही तबीयत ख़राब हुई और कुछ ही पलों में उसकी मृत्यु हो गई. मृत्यु का कारण हार्ट अटैक बताया जा रहा है. पायलट के रिश्तेदार इसे मेडिकल चिकित्सा में देरी को कारण बता रहे हैं. वहीं एयरपोर्ट अथॉरिटी और एयरलाइन इस बात से इनकार कर रहे हैं. मृत्यु का असली कारण तो जाँच के बाद ही आएगा. एयरलाइन पायलटों के सामने कई चुनौतियाँ होती हैं. परंतु इनमें से सबसे बड़ी चुनौती है पायलट की थकान और तनाव, जो न केवल उनकी सेहत को प्रभावित करता है, बल्कि विमान की सुरक्षा को भी खतरे में डाल सकता है. हाल के वर्षों में, तनाव और थकान के कारण पायलटों की मृत्यु व विमान हादसों के कई मामले सामने आए हैं, जिसने इस मुद्दे पर गंभीर चर्चा को जन्म दिया है.

पायलट थकान एक ऐसी स्थिति है जिसमें लंबे समय तक काम करने, अनियमित कार्यसूची, नींद की कमी, और मानसिक दबाव के कारण पायलट शारीरिक और मानसिक रूप से थक जाते हैं. एविएशन में पायलटों को अक्सर लंबी उड़ानों, रात की ड्यूटी, और विभिन्न समय क्षेत्रों में काम करना पड़ता है. इससे उनकी जैविक घड़ी (सर्कैडियन रिदम) बाधित होती है, जिसके परिणामस्वरूप नींद की कमी, एकाग्रता में कमी, और निर्णय लेने की क्षमता में कमी आती है. थकान केवल शारीरिक थकावट तक सीमित नहीं है. यह मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करती है. थकान के कारण पायलटों में चिड़चिड़ापन, तनाव, और अवसाद जैसे लक्षण देखे जा सकते हैं. गंभीर मामलों में, यह हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है, जो अंततः मृत्यु का कारण बन सकता है. पिछले कुछ वर्षों में, कई पायलटों की मृत्यु तनाव और थकान से संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं के कारण हुई है.

कई बार, पायलटों को अपनी स्वास्थ्य समस्याओं को छिपाने के लिए दबाव महसूस होता है, क्योंकि स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ उनकी नौकरी को खतरे में डाल सकती हैं. इस डर से वे समय पर इलाज नहीं करवाते, जिसके परिणामस्वरूप स्थिति और गंभीर हो जाती है. इसके अलावा, एविएशन सेक्टर में कड़ी प्रतिस्पर्धा और आर्थिक दबाव के कारण पायलटों पर अधिक उड़ानें भरने का दबाव भी होता है, जो उनकी थकान और तनाव को और बढ़ाता है.

पायलटों को अक्सर 12-14 घंटे या उससे अधिक समय तक ड्यूटी करनी पड़ती है. रात की उड़ानें और लगातार समय क्षेत्र बदलने से उनकी नींद का पैटर्न बिगड़ता है. जेट लैग और अनियमित नींद के कारण पायलटों को पर्याप्त आराम नहीं मिल पाता. इससे उनकी एकाग्रता और निर्णय लेने की क्षमता प्रभावित होती है. पायलटों पर यात्रियों की सुरक्षा की बड़ी जिम्मेदारी होती है. मौसम की खराबी, तकनीकी समस्याएँ, और समय की कमी जैसे कारक उनके तनाव को बढ़ाते हैं. कई पायलटों को कम वेतन और नौकरी की अनिश्चितता का सामना भी करना पड़ता है, खासकर कम लागत वाली एयरलाइनों में यह उनके मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालता है. लंबी उड़ानों और अनियमित शेड्यूल के कारण पायलट अपने परिवार के साथ समय नहीं बिता पाते, जिससे भावनात्मक तनाव भी बढ़ता है.

पायलट थकान न केवल व्यक्तिगत स्वास्थ्य को प्रभावित करती है, बल्कि विमानन सुरक्षा पर भी गंभीर प्रभाव डालती है. थकान के कारण पायलटों की प्रतिक्रिया समय धीमा हो सकता है, जिससे आपातकालीन स्थिति में गलत निर्णय लेने की संभावना बढ़ती है. विश्व स्तर पर कई विमान दुर्घटनाओं का कारण पायलट थकान को माना गया है. उदाहरण के लिए, 2009 में कोलगन एयर फ्लाइट 3407 दुर्घटना में पायलट थकान को एक प्रमुख कारक माना गया था.

पायलट थकान और तनाव को कम करने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं. विमानन नियामक संस्थाओं को पायलटों की ड्यूटी अवधि को सीमित करना चाहिए और पर्याप्त आराम का समय सुनिश्चित करना चाहिए। उदाहरण के लिए, भारत में डायरेक्टरेट जनरल ऑफ सिविल एविएशन (डीजीसीए) ने पायलटों के लिए अधिकतम उड़ान समय और न्यूनतम आराम समय के नियम बनाए हैं, लेकिन इनका कड़ाई से पालन होना चाहिए. पायलटों की नियमित स्वास्थ्य जाँच होनी चाहिए, जिसमें मानसिक स्वास्थ्य की जाँच भी शामिल हो.  इसके साथ ही, तनाव प्रबंधन के लिए परामर्श और सहायता कार्यक्रम शुरू किए जाने चाहिए.

पायलटों को नींद प्रबंधन और जेट लैग से निपटने के लिए प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए. इससे वे अपनी नींद के पैटर्न को बेहतर ढंग से नियंत्रित कर सकते हैं. एयरलाइनों को ऐसी कार्य संस्कृति को बढ़ावा देना चाहिए जिसमें पायलट बिना अपनी नौकरी खोने के डर के, अपनी स्वास्थ्य समस्याओं को खुलकर बता सकें. उन्नत तकनीकों जैसे ऑटोमेटेड सिस्टम और को-पायलट सपोर्ट सिस्टम का उपयोग करके पायलटों पर काम का बोझ कम किया जा सकता है. पायलटों के लिए हेल्पलाइन शुरू की जानी चाहिए, जहाँ वे अपने तनाव और समस्याओं को साझा कर सकें.

पायलट थकान और तनाव एक गंभीर मुद्दा है, इस समस्या से निपटने के लिए विमानन उद्योग, नियामक संस्थाओं, और सरकारों को मिलकर काम करना होगा. पायलटों की कार्य स्थितियों में सुधार, नियमित स्वास्थ्य जाँच, और तनाव प्रबंधन कार्यक्रमों के माध्यम से इस समस्या को कम किया जा सकता है. इसके साथ ही, समाज को भी पायलटों के योगदान को समझना चाहिए और उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देनी चाहिए. केवल सामूहिक प्रयासों से ही हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि हमारे आसमान सुरक्षित रहें और पायलट स्वस्थ व तनावमुक्त जीवन जी सकें.

-भारत एक्सप्रेस 



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