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भारत की गहरी प्रौद्योगिकी क्रांति: वैश्विक दौड़ में शामिल होने का समय

भारत की डीप टेक क्रांति का बिगुल बज चुका है. पुन: प्रयोज्य रॉकेट, जेनरेटिव एआई और उड़ने वाली टैक्सियों के दौर में भारत वैश्विक नवाचार की दौड़ में शामिल हो रहा है. नीतिगत सुधार और निवेश इसे गति देंगे.

India China

1957 में जब सोवियत संघ ने स्पूतनिक, पहला मानव-निर्मित उपग्रह, अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया, तो इसने अमेरिका को झकझोर दिया. तत्कालीन राष्ट्रपति ड्वाइट डी. आइजनहावर ने अमेरिकी उद्योगों और विश्वविद्यालयों से गहन वैज्ञानिक अन्वेषण के युग की “कठिन मांगों” के लिए तैयार होने का आह्वान किया. आज, लगभग सात दशक बाद, इतिहास फिर से खुद को दोहराता नजर आ रहा है. पुन: प्रयोज्य रॉकेट, जेनरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई), ह्यूमनॉइड रोबोट, फ्यूजन तकनीक और उड़ने वाली टैक्सियों के दौर में हर राष्ट्र अपनी वैज्ञानिक और तकनीकी नवाचारों की ताकत का आकलन कर रहा है. भारत के वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने हाल ही में गहरी प्रौद्योगिकी (डीप टेक) स्टार्टअप्स की कमी पर टिप्पणी की है, जिसे एक सख्त लेकिन प्रेरक आह्वान के रूप में देखा जाना चाहिए. यह आह्वान भारत को वैश्विक नवाचार की दौड़ में तेजी से शामिल होने का है.

डीप टेक क्या है?

डीप टेक कोई साधारण चर्चा का विषय नहीं है; यह उन वैज्ञानिक और तकनीकी सफलताओं पर आधारित है जो उद्योगों को बदल देती हैं. यह वह क्षेत्र है जो मंगल ग्रह पर रॉकेट लैंडिंग, कोड और कविताएं लिखने वाले चैटबॉट्स, या मोटापे से लेकर अवसाद तक का इलाज करने वाली दवाओं जैसे चमत्कारों को संभव बनाता है. डीप टेक में निवेश और नवाचार भविष्य की अर्थव्यवस्थाओं और राष्ट्रीय सुरक्षा की रीढ़ हैं. विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (WIPO) की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, 2014 से 2023 के बीच चीन ने जेनरेटिव एआई से संबंधित 38,000 से अधिक पेटेंट दाखिल किए, जो अमेरिका से छह गुना ज्यादा हैं. ऑस्ट्रेलियाई रणनीतिक नीति संस्थान (ASPI) के अध्ययन से पता चलता है कि चीन 64 में से 57 महत्वपूर्ण तकनीकों में वैश्विक नेतृत्व कर रहा है. इस दौड़ में भारत को अपनी स्थिति मजबूत करने की जरूरत है.

वैश्विक दौड़ और भारत की स्थिति

वैश्विक स्तर पर अनुसंधान और विकास (R&D) में निवेश की बात करें तो अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी और जापान अपने सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 3 प्रतिशत से अधिक खर्च करते हैं. चीन 2.68 प्रतिशत खर्च करता है, जबकि भारत का हिस्सा 1 प्रतिशत से भी कम है. फिर भी, भारत में उम्मीद की किरणें दिखाई दे रही हैं. डीप टेक में प्रगति दशकों की मेहनत मांगती है, और भारत अब इस दिशा में कदम बढ़ा रहा है. स्काईरूट, अग्निकुल जैसे स्टार्टअप अंतरिक्ष प्रक्षेपण वाहन बना रहे हैं, तो सरला और ई-प्लेन उड़ने वाली टैक्सियों पर काम कर रहे हैं. रोबोटिक्स में एडवर्ब और सिनएलआर, उपग्रहों में पिक्सल और ध्रुव स्पेस, जीन एडिटिंग में क्रिस्परबिट्स, सेमीकंडक्टर में माइंडग्रोव, और क्वांटम सॉल्यूशंस में क्यूनू लैब्स जैसे उद्यमी भारत के भविष्य को आकार दे रहे हैं. 2022 में स्काईरूट के विक्रम-एस रॉकेट ने निजी अंतरिक्ष प्रक्षेपणों का रास्ता खोला, जो भारत की तकनीकी महत्वाकांक्षा का प्रतीक है.

आर्थिक और सामरिक महत्व

डीप टेक केवल आर्थिक विकास का साधन नहीं है; यह आत्मनिर्भरता का आधार भी है. पूर्व नीति आयोग सीईओ अमिताभ कांत का मानना है कि जेनरेटिव एआई जैसे नवाचार 2030 तक भारत के जीडीपी में 1 ट्रिलियन डॉलर जोड़ सकते हैं. यह तकनीक न केवल अर्थव्यवस्था को गति देगी, बल्कि भू-राजनीतिक अनिश्चितताओं और आपूर्ति श्रृंखला की कमजोरियों से बचाव भी प्रदान करेगी. डीप टेक में स्वदेशी क्षमता विकसित करना भारत को वैश्विक मंच पर मजबूत बनाएगा.

चुनौतियां और समाधान

भारत के सामने कई चुनौतियां हैं. डीप टेक में सफलता के लिए लंबा समय चाहिए, जो वेंचर कैपिटल की त्वरित रिटर्न की अपेक्षाओं से मेल नहीं खाता. इसके अलावा, भारत में इंजीनियरों की बड़ी संख्या के बावजूद, अत्याधुनिक तकनीकों में विशेषज्ञता रखने वाले पेशेवरों की कमी है. लेकिन ये समस्याएं हल की जा सकती हैं. सरकार ने हाल के वर्षों में कई कदम उठाए हैं. 2021 में शुरू हुई भारत सेमीकंडक्टर मिशन ने 76,000 करोड़ रुपये का आवंटन किया है. 2024 में भारतएआई मिशन के लिए 10,371 करोड़ रुपये और डीप टेक फंड ऑफ फंड्स के लिए 10,000 करोड़ रुपये की घोषणा की गई. अंतरिक्ष-तकनीक के लिए 1,000 करोड़ रुपये का वेंचर कैपिटल फंड भी नवाचार को बढ़ावा देगा.

नीतिगत सुधार और भविष्य की दिशा

भारत ने डीप टेक को बढ़ावा देने के लिए कई नीतिगत सुधार किए हैं. भारतीय अंतरिक्ष नीति 2023, उदार ड्रोन नियम 2024, राष्ट्रीय डीप टेक स्टार्टअप नीति (NDTSP) ड्राफ्ट 2023, और परमाणु ऊर्जा विस्तार नीति 2024 जैसे कदम निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित कर रहे हैं. एनडीटीएसपी में STEM (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित) शिक्षा और प्रशिक्षण पर जोर दिया गया है. भारत को अमेरिका के DARPA और NASA जैसे संस्थानों से प्रेरणा लेनी चाहिए, जो साहसिक नवाचारों को प्रोत्साहित करते हैं. पेटेंट स्वीकृति प्रक्रिया को भी तेज करने की जरूरत है.

संतुलित विकास का रास्ता

डीप टेक और उपभोक्ता-तकनीक (कंज्यूमर टेक) के बीच कोई टकराव नहीं होना चाहिए. क्विक कॉमर्स जैसे क्षेत्रों ने भारत में जोखिम लेने की संस्कृति को बढ़ावा दिया है और रोजगार सृजन में योगदान दिया है. 65 प्रतिशत से अधिक आबादी 35 वर्ष से कम उम्र की होने के कारण, ये क्षेत्र आर्थिक और सामाजिक स्थिरता प्रदान करते हैं. भारत को न केवल घरों तक किराना पहुंचाने, बल्कि उपग्रहों को अंतरिक्ष में प्रक्षेपित करने की क्षमता विकसित करनी होगी.

आह्वान का जवाब देने का समय

भारत की डीप टेक क्रांति का बिगुल बज चुका है. यह वह क्षण है जब भारत को अपनी वैज्ञानिक और तकनीकी महत्वाकांक्षाओं को नई ऊंचाइयों तक ले जाना है. नीतिगत सुधार, निवेश, और शिक्षा में बदलाव के साथ, भारत न केवल वैश्विक दौड़ में शामिल हो सकता है, बल्कि नेतृत्व भी कर सकता है. यह समय साहसिक कदम उठाने और भविष्य को आकार देने का है.

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-भारत एक्सप्रेस



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