भारत का इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर आने वाले वर्षों में बड़ी संख्या में रोजगार के अवसर प्रदान करेगा. टीमलीज डिग्री एप्रेंटिसशिप की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस सेक्टर में 2027 तक लगभग 1.2 करोड़ नौकरियां उत्पन्न होने की संभावना है. इसमें 30 लाख सीधी नौकरियां और 90 लाख अप्रत्यक्ष नौकरियां शामिल होंगी.
रिपोर्ट में बताया गया है कि इन सीधी नौकरियों में 10 लाख इंजीनियरों को रोजगार मिलेगा, 20 लाख आईटीआई (औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान) प्रमाणित पेशेवरों की मांग होगी, 2 लाख विशेषज्ञों की जरूरत होगी, जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), मशीन लर्निंग (ML) और डेटा साइंस जैसे आधुनिक क्षेत्रों में काम करेंगे.
अप्रत्यक्ष नौकरियों के जरिए 90 लाख गैर-तकनीकी कामगारों को रोजगार मिलेगा. यह दर्शाता है कि यह सेक्टर न केवल तकनीकी बल्कि गैर-तकनीकी क्षेत्रों में भी आर्थिक प्रगति का एक बड़ा स्रोत बनेगा.
2027 तक $500 बिलियन उत्पादन का लक्ष्य
भारत का इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग 2030 तक $500 बिलियन (लगभग ₹41 लाख करोड़) उत्पादन का लक्ष्य रखता है. इस महत्वाकांक्षी लक्ष्य को हासिल करने के लिए अगले पांच सालों में इस सेक्टर को पांच गुना बढ़ने की जरूरत होगी. फिलहाल, देश में इलेक्ट्रॉनिक्स का कुल उत्पादन $101 बिलियन (₹8.3 लाख करोड़) है. इसमें सबसे बड़ा योगदान मोबाइल फोन का है, जो 43% उत्पादन करते हैं. इसके बाद उपभोक्ता और औद्योगिक इलेक्ट्रॉनिक्स (12% प्रत्येक) और इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट्स (11%) का स्थान है. ऑटो इलेक्ट्रॉनिक्स (8%), एलईडी लाइटिंग (3%), वियरेबल्स और हियरबल्स (1%) और पीसीबीए (1%) जैसे नए क्षेत्रों में भी बड़ी संभावनाएं हैं.
वैश्विक स्तर पर भारत की भूमिका
भारत का इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर, जिसकी कीमत $101 बिलियन है, वैश्विक स्तर पर तेजी से अपनी पहचान बना रहा है. यह सेक्टर दुनिया के कुल इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन में 3.3% और भारत के कुल निर्यात में 5.3% का योगदान देता है. हालांकि, वैश्विक मूल्य श्रृंखला (ग्लोबल वैल्यू चेन) में भारत की हिस्सेदारी अभी केवल 4% है. लेकिन डिज़ाइन और कंपोनेंट निर्माण जैसे क्षेत्रों में बढ़ते अवसर इस हिस्सेदारी को और बढ़ा सकते हैं.
कौशल विकास पर जोर
रोजगार के इन बढ़ते अवसरों को देखते हुए, रिपोर्ट में एप्रेंटिसशिप (शिक्षुता), रिस्किलिंग (पुनः कौशल विकास), और अपस्किलिंग (कौशल सुधार) पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता बताई गई है. इससे भविष्य के लिए तैयार कार्यबल का निर्माण किया जा सकेगा.
रिपोर्ट के अनुसार, देश के औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (आईटीआई) में अभी केवल 51% सीटें भरी जा रही हैं. इसे सुधारने के लिए कंपनियां अपने इन-हाउस ट्रेनिंग सेंटर्स बना सकती हैं और शैक्षणिक संस्थानों के साथ मिलकर वर्क-इंटीग्रेटेड लर्निंग प्रोग्राम्स (WILP) और डिग्री एप्रेंटिसशिप प्रोग्राम्स चला सकती हैं.
सरकारी योजनाओं की भूमिका
टीमलीज डिग्री एप्रेंटिसशिप के सीईओ एआर रमेश ने कहा कि भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर की इस तेजी का श्रेय ‘मेक इन इंडिया’, ‘नेशनल इलेक्ट्रॉनिक्स पॉलिसी’, पीएलआई स्कीम्स (प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव्स) और ‘डिजिटल इंडिया’ जैसी सरकारी पहलों को जाता है.
-भारत एक्सप्रेस
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