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नरेंद्र मोदी सरकार भारत के सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री को दे रही आकार, लेकिन चुनौतियां बरकरार

भारत ने सेमीकंडक्टर क्षेत्र में मजबूत शुरुआत की है, लेकिन इसे बनाए रखने के लिए निवेश, नीति समर्थन, कुशल प्रतिभा और सप्लाई चेन पर ध्यान देना जरूरी है.

Indian Semiconductor Industry

भारत ने सेमीकंडक्टर क्षेत्र में खुद को मजबूत बनाने की दिशा में तीन साल पहले कदम बढ़ाया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार ने इस सेक्टर को विकसित करने के लिए ₹76,000 करोड़ की योजना को मंजूरी दी थी. इसका उद्देश्य सेमीकंडक्टर डिजाइन, निर्माण और पैकेजिंग सहित एक संपूर्ण इकोसिस्टम खड़ा करना था. इस साल के बजट में सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले निर्माण कार्यक्रम के लिए ₹7,000 करोड़ का आवंटन किया गया है, जो पिछले साल के ₹6,903 करोड़ की तुलना में थोड़ा अधिक है.

सेमीकंडक्टर योजना पर सरकार की रणनीति

इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव का कहना है कि “भारत की सेमीकंडक्टर योजना 20 साल से भी अधिक की योजना है.” अब तक इस योजना में वैश्विक सेमीकंडक्टर कंपनियां विभिन्न तरीकों से शामिल हो चुकी हैं. कुछ कंपनियां सीधे निवेश कर रही हैं, जबकि कुछ तकनीक हस्तांतरण और साझेदारी के जरिए आगे बढ़ रही हैं. मंत्री को उम्मीद है कि भारत अगले पांच वर्षों में सेमीकंडक्टर डिजाइन और निर्माण में एक बड़ा खिलाड़ी बनकर उभरेगा.

भारत सरकार 70-75% प्रोजेक्ट लागत को केंद्र और राज्य सरकारों की मदद से कवर कर रही है. इससे अब तक ₹1.5 लाख करोड़ से अधिक का निवेश आकर्षित किया जा चुका है. पहले चरण में ₹76,000 करोड़ का बड़ा हिस्सा पांच प्रमुख परियोजनाओं के लिए आवंटित किया गया है. इनमें माइक्रोन का एटीएमपी (Assembly, Testing, Marking, and Packaging) प्लांट, टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स की फैब्रिकेशन यूनिट, और CG पावर व केन्स टेक्नोलॉजी के ओएसएटी (Outsourced Semiconductor Assembly and Test) प्लांट शामिल हैं.

पहली सेमीकंडक्टर चिप 2025 तक तैयार होगी

इनमें से ज्यादातर कंपनियों ने निर्माण कार्य शुरू कर दिया है. माइक्रोन का एटीएमपी प्लांट 2025 के अंत तक पहली सेमीकंडक्टर चिप तैयार करेगा. अन्य परियोजनाएं उसके बाद उत्पादन शुरू करेंगी.

वीएलएसआई सोसायटी के अध्यक्ष सत्य गुप्ता बताते हैं कि पिछले दो सालों में सरकार ने प्रोजेक्ट्स को मंजूरी देने, योजना तैयार करने और जरूरी अनुमति हासिल करने में समय लगाया. इस साल मुख्य रूप से सिविल इंफ्रास्ट्रक्चर और क्लीन-रूम कंस्ट्रक्शन पर काम होगा. 2025 में मशीनरी खरीदने और उत्पादन शुरू करने पर फोकस किया जाएगा.

वैश्विक कंपनियों की भागीदारी जरूरी

भारत पहली बार सेमीकंडक्टर निर्माण में मजबूत शुरुआत कर चुका है. लेकिन इसे बनाए रखने के लिए देश को बड़ी वैश्विक कंपनियों को आकर्षित करना होगा. मौजूदा समय में, माइक्रोन को छोड़कर, सभी स्वीकृत प्रोजेक्ट भारतीय कंपनियों द्वारा संचालित किए जा रहे हैं. इन कंपनियों के पास सेमीकंडक्टर निर्माण का कोई पूर्व अनुभव नहीं है. हालांकि, सरकार की नीति के अनुसार, ये कंपनियां अंतरराष्ट्रीय सेमीकंडक्टर विशेषज्ञों के साथ साझेदारी कर रही हैं.

इसी कड़ी में इजराइल की टावर सेमीकंडक्टर और अडानी समूह मिलकर भारत में एक फैब्रिकेशन प्लांट स्थापित करने जा रहे हैं. इसके अलावा, Zoho और हिरानंदानी जैसी भारतीय कंपनियां भी इस क्षेत्र में रुचि दिखा रही हैं.

क्या भारत को और फैब्रिकेशन प्लांट्स की जरूरत है?

भारत में अभी एक ही फैब्रिकेशन प्लांट और कुछ टेस्टिंग व पैकेजिंग यूनिट्स हैं. यह भारत को शीर्ष पांच सेमीकंडक्टर देशों में शामिल करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा. ताइवान में 80 से अधिक सेमीकंडक्टर फैब्रिकेशन प्लांट हैं, जबकि जापान में 103 और चीन में 81 हैं.

टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स का प्रस्तावित प्लांट केवल पावर मैनेजमेंट सर्किट, डिस्प्ले ड्राइवर, माइक्रोकंट्रोलर और हाई-परफॉर्मेंस कंप्यूटिंग लॉजिक तक सीमित रहेगा. इसका मतलब है कि भारत को और अधिक व्यापक सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम विकसित करने की जरूरत है.

टैगोरटेक जैसी कंपनियों के लिए अभी भी भारत में कोई स्पेशलाइज्ड सेमीकंडक्टर निर्माण सुविधा उपलब्ध नहीं है. गैलियम नाइट्राइड (GaN) और गैलियम आर्सेनाइड (GaAs) जैसे उन्नत सेमीकंडक्टर मटेरियल के लिए फैब्रिकेशन सुविधा नहीं होने के कारण कंपनियों को अभी भी विदेशों पर निर्भर रहना पड़ रहा है.

भारत के सामने मुख्य चुनौतियां

भारत को सेमीकंडक्टर निर्माण में केवल फैब्रिकेशन प्लांट और टेस्टिंग यूनिट्स पर ही ध्यान नहीं देना चाहिए, बल्कि सप्लाई चेन, स्किल्ड टैलेंट और स्थिर नीतियों पर भी काम करना होगा.

काउंटरप्वाइंट रिसर्च के वरिष्ठ विश्लेषक अश्वथ राव का कहना है, “वैश्विक कंपनियां भारत में निवेश को लेकर सतर्क हैं, क्योंकि सप्लाई चेन, कुशल प्रतिभा और नीति स्थिरता को लेकर अभी भी कई सवाल हैं.” इसके अलावा, बदलते भू-राजनीतिक हालात, जैसे अमेरिका में ट्रंप प्रशासन की संभावित वापसी, वैश्विक व्यापार और टेक्नोलॉजी साझेदारी को प्रभावित कर सकती है.

सेमीकंडक्टर डिजाइनिंग में भारत की भूमिका

भारत को सिर्फ सेमीकंडक्टर निर्माण पर नहीं, बल्कि सेमीकंडक्टर डिजाइनिंग पर भी ध्यान देना होगा. यदि भारत में बनी चिप्स के लिए घरेलू ग्राहक नहीं होंगे, तो इस क्षेत्र में निवेश टिकाऊ नहीं होगा.

EPIC फाउंडेशन के चेयरमैन अजय चौधरी कहते हैं, “हमारी फैब्रिकेशन यूनिट्स तो बन रही हैं, लेकिन भारत में हमारे पास इन चिप्स को खरीदने वाले ग्राहक नहीं हैं. हमने 30 उत्पादों और 30 चिप्स की पहचान की थी, जिन्हें भारत में डिजाइन किया जा सकता है. सरकार को इसे लागू करना चाहिए.”

सेमीकंडक्टर डिजाइन लिंक्ड इंसेंटिव (DLI) योजना के तहत सरकार सेमीकंडक्टर डिजाइन कंपनियों को समर्थन दे रही है, लेकिन भारत को क्वालकॉम और एनवीडिया जैसी वैश्विक स्तर की डिजाइन कंपनियां विकसित करने की जरूरत है.

टैलेंट की कमी सबसे बड़ी बाधा

Fab Economics के अनुसार, आने वाले वर्षों में सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री को चिप की नहीं, बल्कि कुशल टैलेंट की कमी का सामना करना पड़ेगा.

Fab Economics के सीईओ दानिश फारूकी बताते हैं, “वैश्विक स्तर पर 2025 के बाद सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री में टैलेंट की भारी कमी होगी. भारत में स्वीकृत फैब और ओएसएटी प्रोजेक्ट्स अगले दो साल में उत्पादन शुरू करेंगे, लेकिन हमारे पास पर्याप्त कुशल इंजीनियर नहीं हैं.”

सरकार ने अगले पांच साल में 85,000 से ज्यादा इंजीनियरों को प्रशिक्षित करने की योजना बनाई है. लेकिन वीएलएसआई सोसायटी के सत्य गुप्ता का मानना है कि भारत में सेमीकंडक्टर निर्माण का अनुभव न होने के कारण हमारे शिक्षण संस्थानों में भी व्यावहारिक प्रशिक्षण की कमी है.

भारत ने सेमीकंडक्टर क्षेत्र में एक मजबूत शुरुआत की है, लेकिन इसे बनाए रखने के लिए निवेश, नीति समर्थन, कुशल प्रतिभा और सप्लाई चेन पर ध्यान देना बेहद जरूरी है. अगर भारत इन चुनौतियों से निपटने में सफल रहता है, तो आने वाले वर्षों में वह वैश्विक सेमीकंडक्टर हब के रूप में उभर सकता है.


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-भारत एक्सप्रेस



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