फिल्म आगरा का सीन
76वें कान फिल्म समारोह के डायरेक्टर्स फोर्टनाइट में दिखाई गई कनु बहल की फिल्म ‘आगरा’ भारत के निम्न मध्यवर्गीय परिवारों में सेक्स के दमन से पनपते मनोरोग की गहराई से पड़ताल करती है। इस यह दूसरी भारतीय फिल्म है जो कान फिल्म फेस्टिवल के आफिशियल सेलेक्शन में है। अखबारों में आए दिन हम पढ़ते हैं कि पिता ने बेटी से और भाई ने बहन से बलात्कार कर दिया। कनु बहल ने बड़ी संजीदगी से एक काल सेंटर में काम करने वाले 26 वर्षीय अपने मुख्य किरदार गुरू ( मोहित अग्रवाल) और इंटरनेट कैफे चलाने वाली प्रीति ( प्रियंका बोस) के माध्यम से इस समस्या पर फोकस किया है। उत्तर प्रदेश का शहर आगरा दुनिया भर में जिस ताज महल के कारण जाना जाता है, आश्चर्य हैं कि पूरी फिल्म में उस ताजमहल का एक भी दृश्य नहीं है। कनु बहल की पिछली फिल्म ‘ तितली ‘(2014) कान फिल्म फेस्टिवल के अन सर्टेन रिगार्ड खंड में दिखाई गई थी और भारत के साथ फ्रांस में रिलीज भी हुई थी।
आगरा की एक साधारण बस्ती मुस्तफा कालोनी में गुरू अपने मां बाप के साथ एक दो कमरे के दोमंजिला मकान में रहता है। उसके पिता (आशिकी वाले राहुल राय) एक दूसरी औरत ( सोनल झा) के साथ ऊपर वाले कमरे में रहते हैं और उसकी मां ( विभा छिब्बर) ने इसे नियति मानकर स्वीकार कर लिया है। नीचे के एक कमरे में बाकी परिवार रहता है। कुछ दिन के लिए उसकी डेंटिस्ट बहन छवि ( आंचल गोस्वामी)भी हास्टल से घर आ जाती है जिसका एक दूसरे लड़के से प्रेम चल रहा है। उसका पिता घर के लालच में एक तीसरी औरत से प्रेम का नाटक कर रहा है जो अकेली है और उसके पास अपना बड़ा घर है। गुरु अक्सर फैंटेसी में अपनी काल्पनिक प्रेमिका से सेक्स करता है जिसकी परिणति बाथरूम में हस्तमैथुन से होती है। एक दिन उसे इंटरनेट कैफे चलाने वाली एक पैर से विकलांग प्रीति मिलती है जिसे दो बार उसके पतियों ने छोड़ दिया है। गुरु सेक्स के लिए विक्षिप्तता की हद तक पागल है और एक बार तो अपनी सगी बहन के साथ बलात्कार करने लगता है। बड़ी मुश्किल से वह खुद को बचाती है और मामले को रफा-दफा किया जाता है। प्रीति से मिलने के बाद उसे भरपूर और मनचाहा सेक्स मिलता है और वह सामान्य होने लगता है। प्रीति को भी जमाने बाद इस तरह का उन्मादी सेक्स मिला और वह तीसरी बार शादी के लिए राजी हो जाती है। अब समस्या यह है कि शादी के बाद गुरु अपनी पत्नी के साथ रहेगा कहां? दूसरी मंजिल पर एक कमरा और बन तो सकता है पर परिवार में सबकी निगाह उसी कमरे पर है। वे इस समस्या के समाधान के लिए बिल्डर के पास जाते हैं और पुराने मकान को तोड़कर पांच मंजिला इमारत बनाने को कहते हैं। बिल्डर उनसे दस लाख कैश और तीन मंजिल पर अपने मालिकाना हक की शर्त रख देता है। संयुक्त परिवार में संपत्ति और छोटे घरों में निजता का सवाल फिल्म सामने लाती है।
कनु बहल ने आगरा के तलछंट के जीवन और दिनचर्या को बखूबी फिल्माया है और चमक दमक से भरी दुनिया गायब है। कहानी के एक एक किरदार अपने आप में संपूर्ण है और सभी मिलकर भारतीय निम्नवर्गीय परिवार का ऐसा कोलाज बनाते हैं कि कई बार तो घर पागलखाना लगने लगता है। यहां यह भी ध्यान दिलाना जरूरी है कि आगरा शहर अपने पागलखाने के लिए भी जाना जाता है। कनु बहल की पहली फिल्म ‘ तितली ‘ में भी परिवार का इससे भी निर्मम और वीभत्स रूप दिखाया गया है जहां बेहतर जीवन की उम्मीद में हर चरित्र अपनी अपनी मजबूरी में अपनी ही कब्र खोदने पर उतारू है। ‘ आगरा ‘ एक तरह से ‘ तितली ‘ का ही विस्तार है। इसमें कनु बहल के बचपन और जवान होते दिनों के अपने अनुभव भी शामिल हैं जो फिल्म को एक लेजिटीमेसी प्रदान करते हैं। इससे कौन इनकार करेगा कि सेक्स एक ऐसी जरूरत है जिसके लिए इंसान कुछ भी करने को राजी रहता है और लंबे समय तक यदि यह न मिले तो मनोरोगी हो जाना लाजिमी है।
कनु बहल की अगली फिल्म ‘डिस्पैच’ एक बूढ़े हो चले क्राइम रिपोर्टर की कहानी है जो आधुनिक डिजिटल दौर में खुद को लगातार अप्रासंगिक पाता है जहां टेक्नोलॉजी हर रोज बदल रही है। इसमें मुख्य भूमिका मनोज बाजपेई ने निभाई है।
-भारत एक्सप्रेस
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