

Bihar Elections 2025: बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव (Bihar Elections 2025) से पहले चुनाव आयोग (Election Commission) द्वारा मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) (Voter Verification) अभियान की शुरुआत ने सियासी हलकों में हलचल मचा दी है. इस अभियान के तहत 7.89 करोड़ मतदाताओं का सत्यापन किया जा रहा है. इसमें मतदाताओं को अपनी नागरिकता साबित करने के लिए 11 स्वीकार्य दस्तावेजों में से एक जमा करना होगा.
इस प्रक्रिया की टाइमिंग और दस्तावेजों की सख्त शर्तों को लेकर विपक्ष ने गंभीर सवाल उठाए हैं. कुछ लोग इसे दिल्ली में बिहारियों के खिलाफ चल रही बुलडोजर कार्रवाई से जोड़कर देख रहे हैं, जिससे यह आशंका जताई जा रही है कि इसका मकसद बिहार के प्रवासी मतदाताओं को चुनाव में वोट डालने से रोकना हो सकता है. क्या है मतदाता सत्यापन अभियान?
आपको बता दें कि चुनाव आयोग ने 24 जून 2025 को बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण की घोषणा की थी. आयोग का कहना है कि तेजी से बढ़ते शहरीकरण, पलायन, मृत्यु की जानकारी न देना और अवैध प्रवासियों के नाम शामिल होने जैसे कारणों से ये कदम उठाया गया है. इस अभियान का उद्देश्य त्रुटिहीन मतदाता सूची तैयार करना है, ताकि योग्य मतदाता ही वोट डाल सकें.
विपक्ष ने बताया वोट छीनने की साजिश
आपको बता दें कि विपक्षी दल खासकर राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस और टीएमसी ने इस प्रक्रिया को ‘अलोकतांत्रिक’ करार दिया है. राजद नेता तेजस्वी यादव ने आरोप लगाया है कि ये अभियान बिहार के गरीब, दलित, और पिछड़े वर्गों के मताधिकार को छीनने की साजिश है. उन्होंने सवाल उठाया कि आधार कार्ड बिहार के 90 प्रतिशत लोगों के पास है. इसे विशेष गहन पुनरीक्षण के तहत स्वीकार्य दस्तावेजों की सूची से क्यों हटाया गया?
कांग्रेस सांसद अखिलेश प्रसाद सिंह ने कहा, ”25 दिनों में 8 करोड़ लोगों का सत्यापन अवास्तविक है. यह बीजेपी के इशारे पर गरीबों को वोट से वंचित करने की कोशिश है.” टीएमसी सांसद डेरेक ओ’ब्रायन ने तो इसे ‘नाजी शासन’ की तुलना में ‘पूर्वज पास’ की शुरुआत बताया.
दिल्ली में बुलडोजर कार्रवाई से कनेक्शन?
सोशल मीडिया और विपक्षी नेताओं के बीच यह चर्चा जोरों पर है कि दिल्ली में बिहारियों के खिलाफ चल रही बुलडोजर कार्रवाई और बिहार में मतदाता सत्यापन अभियान के बीच कोई संबंध हो सकता है. दिल्ली में हाल के महीनों में अवैध निर्माण के नाम पर कई बिहारी प्रवासियों के घर और दुकानें तोड़ी गई हैं. कुछ नेताओं का दावा है कि यह अभियान बिहार के प्रवासी मतदाताओं को उनके गृह राज्य में वोट डालने से रोकने की रणनीति का हिस्सा हो सकता है, क्योंकि प्रवासी बिहारी मतदाता अक्सर बीजेपी और जेडीयू के पक्ष में वोट करते हैं.
हालांकि, इस दावे का कोई ठोस सबूत नहीं है, और बीजेपी ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि विपक्ष अपनी संभावित हार के लिए बहाने बना रहा है. बीजेपी नेता जनक राम ने कहा, ”विपक्ष बांग्लादेशी और रोहिंग्या की राजनीति करना चाहता है. बिहार की जनता अब उनके झांसे में नहीं आएगी.”
दस्तावेजों की कमी से परेशानी
बिहार में गरीब और कम शिक्षित आबादी के लिए जन्म प्रमाणपत्र या मैट्रिकुलेशन प्रमाणपत्र जैसे दस्तावेज जुटाना मुश्किल है. विशेषज्ञों की मानें, तो इस अभियान से 2.4-2.6 करोड़ लोग मताधिकार से वंचित हो सकते हैं, खासकर दलित, महादलित, और प्रवासी मजदूर.
चुनाव आयोग का जवाब
चुनाव आयोग ने इन आरोपों को खारिज किया है. उनका मकसद केवल योग्य मतदाताओं को वोटिंग का अधिकार सुनिश्चित करना है. यह सुनिश्चित करने के लिए कि कोई भी योग्य मतदाता छूट न जाए. दरअसल, बिहार में 20,603 बूथ लेवल ऑफिसर यानी बीएलओ इस प्रक्रिया में लगे हैं. आयोग ने ये भी कहा कि बुजुर्गों, दिव्यांगों और बीमार लोगों का खास ध्यान रखा जाएगा.
सुप्रीम कोर्ट में याचिका
इस मामले ने अब कानूनी मोड़ ले लिया है. एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स और योगेंद्र यादव ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर इस अभियान पर रोक लगाने की मांग की है. दरअसल, याचिका में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले बड़े पैमाने पर मतदाताओं के मताधिकार से वंचित होने की आशंका जताई गई है.
क्या प्रभावित होगा बिहार का चुनावी समीकरण?
बिहार में इस अभियान की टाइमिंग और प्रक्रिया को लेकर सियासी तनाव बढ़ता जा रहा है. विपक्ष के नेता इसे ‘साजिश’ बता रहे हैं. वहीं, सत्तारूढ़ NDA इसे पारदर्शी और निष्पक्ष चुनाव के लिए जरूरी कदम करार दे रहा है. इन सबके बीच आम मतदाता दस्तावेज जुटाने की भागदौड़ में जुट गए हैं. अब सवाल ये है कि क्या वाकई ये अभियान बिहार के चुनावी समीकरण को प्रभावित करेगा या नहीं?
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