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तेजस फाइटर विमानों की धीमी आपूर्ति पर वायुसेना प्रमुख की कड़ी टिप्पणी– प्रौद्योगिकी में देरी मतलब प्रौद्योगिकी से वंचित

भारतीय वायुसेना के प्रमुख एयर चीफ मार्शल ए.पी. सिंह ने मंगलवार को सरकारी उपक्रम HAL द्वारा तेजस फाइटर्स की धीमी आपूर्ति पर चिंता जाहिर की है.

Chief Marshal A.P. Singh

चीफ मार्शल ए.पी. सिंह (फाइल फोटो)

भारतीय वायुसेना के प्रमुख एयर चीफ मार्शल ए.पी. सिंह ने मंगलवार को सरकारी उपक्रम हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) द्वारा तेजस फाइटर्स की धीमी आपूर्ति पर कड़ी टिप्पणी की. उन्होंने कहा कि “प्रौद्योगिकी में देरी का अर्थ प्रौद्योगिकी से वंचित रहना है.”
एयर चीफ मार्शल ने अफसोस जताते हुए कहा कि 2016 में शुरू हुई डिलीवरी के बावजूद HAL अभी तक पहले 40 तेजस फाइटर्स भी वायुसेना को नहीं सौंप सका है.

उत्पादन प्रक्रिया में तेजी की आवश्यकता

एयर चीफ मार्शल ए.पी. सिंह उन्नत निर्माण प्रक्रियाओं और निजी क्षेत्र को शामिल करने पर जोर दिया.
वायुसेना प्रमुख ने कहा, “उत्पादन एजेंसियों को अपनी निर्माण प्रक्रियाओं में निवेश करना होगा ताकि गति बढ़ाई जा सके. अपनी जनशक्ति को प्रशिक्षित करना होगा और उत्पादन का स्तर भी बढ़ाना होगा. तेजस की कहानी 1984 में इसकी परिकल्पना से शुरू होती है. पहला विमान 2001 में उड़ा—17 वर्षों बाद. फिर इसका इंडक्शन 15 वर्षों बाद 2016 में शुरू हुआ. आज 2024 में भी मेरे पास पहले 40 विमान नहीं हैं.”

निजी क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा बढ़ाने की जरूरत

वायुसेना प्रमुख ने निजी क्षेत्र की भागीदारी की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि “हमें कुछ निजी कंपनियों को लाना होगा. हमें प्रतिस्पर्धा बढ़ानी होगी ताकि उत्पादन एजेंसियों को ऑर्डर खोने का डर रहे. तभी चीजों में सुधार होगा.”

पड़ोसी देशों के बढ़ते सैन्यकरण पर चिंता

ए.पी. सिंह ने चीन और पाकिस्तान द्वारा सीमाओं पर बढ़ाए जा रहे सैन्यकरण को भारत के लिए सुरक्षा चुनौती बताते हुए कहा कि, “चीन अपनी वायुसेना में भारी निवेश कर रहा है. हाल ही में उसने अपने नए स्टेल्थ फाइटर विमान का अनावरण किया है, जो उसकी सैन्य क्षमता का परिचायक है.”

उन्होंने आगे कहा कि चीन ने अपने इस नए विमान को “White Elephant” (J-36) का उपनाम दिया है. वहीं, भारत अभी अपने पांचवीं पीढ़ी के फाइटर प्रोग्राम ‘Advanced Medium Combat Aircraft(AMCA)’पर काम कर रहा है, जो फिलहाल डिजाइन और विकास के चरण में है.

42 स्क्वाड्रनों की आवश्यकता

वायुसेना प्रमुख ने बताया कि मौजूदा समय में वायुसेना को लड़ाकू विमानों की कमी का सामना करना पड़ रहा है. आवश्यक 42 स्क्वाड्रनों के मुकाबले वायुसेना के पास फिलहाल केवल 30 स्क्वाड्रन हैं.

आत्मनिर्भरता के लिए और खर्च की आवश्यकता

सिंह ने आत्मनिर्भरता की राह में आने वाली लागत को स्वीकार करने की बात कही. उन्होंने कहा, “हमें आत्मनिर्भरता के लिए अधिक खर्च करना पड़ सकता है और ऊंची कीमतों पर खरीद करनी पड़ सकती है. सीमित उत्पादन संख्या और R&D लागत को देखते हुए कीमतें बढ़ेंगी, लेकिन इससे हमें आवश्यक आत्मनिर्भरता मिलेगी.”

2047 तक विकसित राष्ट्र बनने में एयरोस्पेस क्षेत्र महत्वपूर्ण

सिंह ने कहा कि यदि भारत 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनने की दिशा में बढ़ रहा है, तो एयरोस्पेस क्षेत्र इसमें एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा. उन्होंने जोर देकर कहा कि “यदि भारत को विश्व में अपनी जगह बनानी है, तो एयरोस्पेस क्षेत्र को प्रमुख योगदान देना होगा.”


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-भारत एक्सप्रेस



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