Bharat Express

दिल्ली के अस्पतालों में हीमोफीलिया के इलाज में खामियों के मामले में सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई याचिका

दिल्ली उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई है, जिसमें हीमोफीलिया रोगियों के लिए उचित उपचार और सुविधाओं की मांग की गई है.

Supreme Court of India

सुप्रीम कोर्ट.

केन्द्र व दिल्ली सरकार के अस्पतालों में जन्म से ही एक दुर्लभ आनुवंशिक रक्त विकार, हीमोफीलिया ए के इलाज की उचित चिकित्सा, दवाओं का अभाव, हेमेटोलॉजिस्ट की अनुपलब्धता व प्रयोगशाला रिपोर्टों पर मेडिकल प्रैक्टिशनर के बजाय तकनीशियन हस्ताक्षर करने को लेकर हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई है. याचिका पर बृहस्पतिवार को सुनवाई होगी.

यह याचिका सागर शर्मा निवासी 181 सहकारी नगर, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश ने दायर की है. याचिका में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग, लोक नायक अस्पताल, गुरु तेग बहादुर अस्पताल, दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल को पक्ष बनाया गया है.

याचिकाकर्ता ने तर्क रखा कि वह जन्म से ही एक दुर्लभ आनुवंशिक रक्त विकार, हीमोफीलिया ए से पीड़ित है. पिछले 15 वर्षों से याचिकाकर्ता का लोक नायक अस्पताल में हीमोफीलिया डे केयर सेंटर से उपचार चल रहा है. हीमोफीलिया एक आजीवन, जीवन-धमकाने वाला आनुवंशिक विकार है, जिसमें थक्के बनाने वाले प्रोटीन, विशेष रूप से फैक्टर आठ और फैक्टर नौ की कमी होती है, जिसके परिणामस्वरूप अत्यधिक और अनियंत्रित रक्तस्राव होता है.

हीमोफीलिया के लिए मानक उपचार में इंजेक्शन का प्रशासन शामिल है, जो प्रथम दृष्टया जीवन रक्षक दवाएं हैं. याची ने कहा उच्च न्यायालय ने विकार की अनोखी और गंभीर प्रकृति को देखते हुए लोक नायक अस्पताल, दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल और गुरु तेग बहादुर अस्पताल व साथ ही सफदरजंग अस्पताल, एम्स और राम मनोहर लोहिया अस्पताल को हीमोफीलिया का इलाज उपलब्ध कराने का निर्देश दिया था. याची ने कहा जनवरी 2024 से एलएनएच, जीटीबीएच और डीडीयूएच में एंटीहेमोफिलिक फैक्टर इंजेक्शन की गंभीर कमी का सामना कर रहे हैं, जिससे हीमोफीलिया रोगियों के उचित उपचार पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है.

याची ने कहा इसके अलावा इन अस्पतालों में हेमेटोलॉजिस्ट की हेमेटोलॉजिस्ट की नियुक्ति नहीं की है वर्तमान में, जूनियर रेजिडेंट डॉक्टर हीमोफीलिया रोगियों के उपचार की देखरेख कर रहे हैं, जबकि एक योग्य हेमेटोलॉजिस्ट को विश्व हीमोफीलिया फेडरेशन द्वारा जारी उपचार दिशानिर्देशों के अनुसार उचित देखभाल और उपचार प्रदान करने में जूनियर डॉक्टरों के प्रबंधन और मार्गदर्शन के लिए जिम्मेदार होना चाहिए.

याची ने तर्क रखा है कि सर्वोच्च न्यायालय ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए निर्देश दिया था कि प्रयोगशाला रिपोर्टों पर केवल पैथोलॉजी में स्नातकोत्तर योग्यता रखने वाले पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी द्वारा ही हस्ताक्षर किए जाने चाहिए. इस आदेश के विपरीत प्रयोगशाला का प्रबंधन और संचालन एक तकनीशियन द्वारा किया जा रहा है, जो स्थापित मानदंडों, निर्देशों और दिशा-निर्देशों का उल्लंघन है. इसके अलावा, तकनीशियन न केवल प्रयोगशाला का संचालन कर रहा है, बल्कि प्रयोगशाला रिपोर्टों पर हस्ताक्षर भी कर रहा है.

उन्होंने कहा यह कदाचार और भी आगे बढ़ जाता है, क्योंकि हीमोफीलिया रोगियों के लिए विकलांगता प्रमाण पत्र तकनीशियन द्वारा हस्ताक्षरित प्रयोगशाला रिपोर्टों के आधार पर जारी किए जा रहे हैं. वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ हीमोफीलिया (डब्ल्यूएफएच) द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार हर 10,000 व्यक्तियों में से लगभग 1 हीमोफीलिया से पीड़ित है. इन अनुमानों के आधार पर भारत में लगभग 100,000 हीमोफीलिया के रोगी हैं. हालाँकि, पर्याप्त निदान सुविधाओं की अनुपस्थिति के कारण लगभग 80 प्रतिशत हीमोफीलिया के मामले निदान के बिना ही रह जाते हैं.

याची ने कहा जब इन अस्पतालों के आपातकालीन वार्डों में एंटीहेमोफिलिक फैक्टर (एएचएफ) उपलब्ध होता है, तो उपस्थित चिकित्सक एक प्रिस्क्रिप्शन स्लिप पर एएचएफ खुराक निर्धारित करता है और रोगी को उपचार देता है. हालांकि फिर पर्चे को रोगी से वापस ले लिया जाता है और अस्पताल द्वारा रख लिया जाता है, जिससे रोगी को उनके उपचार रिकॉर्ड की कोई भी प्रति प्राप्त करने से प्रभावी रूप से रोका जाता है. याची ने अदालत से आग्रह किया कि उपरोक्त तथ्यों का निदान करने के अलावा सभी अस्पतालों में प्रयोगशाला बनाने व योग्य डाक्टरों को नियुक्त करने का निर्देश दिया जाए.

-भारत एक्सप्रेस



इस तरह की अन्य खबरें पढ़ने के लिए भारत एक्सप्रेस न्यूज़ ऐप डाउनलोड करें.

Also Read